कहीं ‘हाथ’ की राह कठिन न कर दे ‘तीन मसले’

punjabkesari.in Thursday, Dec 14, 2017 - 10:29 AM (IST)

नई दिल्ली: गुजरात चुनाव को लेकर भले ही कांग्रेस के शीर्ष नेता से लेकर राज्य के स्थानीय नेता जीत का दावा कर रहे हों लेकिन इसका एक और पहलू भी है। दरअसल दूसरे चरण के मतदान को लेकर पार्टी उतनी सहज नजर नहीं आ रही है जितनी वह पहले में दिख रही थी। कांग्रेस को इस चरण में न केवल सहयोगी दलों के प्रत्याशियों का बोझ उठाना होगा बल्कि पार्टी के विद्रोहियों से भी निपटना होगा, जो करीब 12 विधानसभा सीटों पर ताल ठोंक रहे हैं। इसके अलावा भाजपा ने इस चरण के लिए अपने जनजातीय वोट बैंक को भी लुभाने का खूब प्रयास किया है। ऐसे में डगर उतनी आसान है नहीं जितनी बताई जा रही है। गौरतलब है कि दूसरे व इस चरण में 93 सीटों पर चुनाव होना है। 


बागियों का बोझ
उत्तरी गुजरात में विधानसभा की 32 सीटें हैं जो कि इस चरण में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं। पिछली बार यहां की स्थिति कांग्रेस के पक्ष में रही थी और पार्टी ने 17 सीटों पर जीत हासिल कर भाजपा पर बढ़त हासिल की थी। हालांकि उपरोक्त कारणों के चलते इस बार ऊंट किस करवट बैठेगा? यह कहना काफी मुश्किल है। कांग्रेस के लिए यहां परेशानी का सबसे बड़ा सबब यह है कि यहां कम से कम 13 विधानसभा सीटों पर करीब कांग्रेस के ही 16 बागी चुनावी रण में पार्टी प्रत्याशियों के ही खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।  बनासकांठा में तो कांग्रेस के लिए सबसे अधिक चुनौती दिखाई दे रही है। यहां की नौ सीटों में से पांच पर पार्टी को बागियों का सामना करना पड़ रहा है। इन पांच सीटों में शामिल हैं- थराड, वडगाम, दीसा, देवदर और कांकरेज। खास बात यह है कि कई सीटों पर कांग्रेस एक हजार से भी कम मतों से जीती थी।

भारी न पड़ जाए गठबंधन 
गठबंधन की राजनीति के सहारे इस बार के चुनावी रण में उतरी कांग्रेस के लिए अब यही राजनीति कहीं भारी न पड़ जाए। दरअसल माना जा रहा है कि कांग्रेस बातचीत की मेज पर कमजोर पड़ गई और गठबंधन करने के उतावले में अधिक कीमत चुका बैठी। अब यही कमजोरी कांग्रेस की सीटों की संख्या में कटौती भी करवा सकती है। कांग्रेस के एक नेता भी इस तथ्य को स्वीकारते हैं। उनका कहना है कि छोटू भाई वसावा की भारतीय जनजातीय पार्टी को सात सीटें देना व जेडीयू इसका उदाहरण हैं। गठबंधन करते समय हमें अच्छी स्थिति में रहना चाहिए था। यूं तो वडगाम कांग्रेसी गढ़ रहा है लेकिन इस बार यहां से पार्टी जिग्नेश मेवानी को समर्थन दे रही है जो कि निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। हालांकि यहां पर रोचक पहलू यह है कि मेवानी को कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही कांग्रेस के दो बागी उम्मीदवार भी वडगाम में मेवानी के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस के समर्थन के बावजूद सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने मेवानी के लिए चुनावी वैतरणी पार करना आसान नहीं होगा। 

आरक्षित सीटों की चुनौती
कांग्रेस के लिए एक और बड़ी चुनौती है अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 सीटें। अनुसूचित जनजाति की बहुलता वाले पंचमहल, छोटा उदयपुर और दाहोद जिलों में भी इसी अंतिम चरण में मतदान होना है। कांग्रेस के लिए यहां परेशानी यह है कि भाजपा ने इन क्षेत्रों में विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जरिए अपनी पहुंच को पिछले कुछ समय में बढ़ाया है। विश्व हिंदू परिषद ने अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए एकल विद्यालय शुरू किए हैं जहां पर बच्चों को बेहतर शिक्षा, रहने की सुविधा, ड्रेस व भोजन उपलब्ध करवाया जाता है। वहीं संघ प्रचारकों के माध्यम से भी अनुसूचित जनजाति के लोगों की मूलभूत समस्याओं को जानने व दूर करने का प्रयास किया है। मौजूदा स्थिति में कांग्रेस इन 27 में से 16 सीटें अपने खाते में रखती है। हालांकि मौजूदा समीकरणों के चलते स्थिति किस तरफ झुकेगी? अभी कहना मुश्किल है।


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