New GST Rates: GST की नई दरों से बिगड़ सकता है सरकार का बजट, सलाना इतने हजार करोड़ नुकसान होने का अनुमान
punjabkesari.in Thursday, Sep 04, 2025 - 03:58 PM (IST)

नेशनल डेस्क : जीएसटी रिफॉर्म के तहत जो घोषणाएं करनी थीं, वे पूरी हो चुकी हैं। आम जीवन में उपयोग होने वाले कई जरूरी सामानों पर टैक्स में कटौती कर मिडिल और लोअर मिडिल क्लास को बड़ी राहत दी गई है। इस रिफॉर्म से घरेलू मांग में बढ़ोतरी की उम्मीद है, लेकिन इसके कारण सरकार को रेवेन्यू लॉस का सामना भी करना पड़ेगा। यह नुकसान ऐसे वक्त में सामने आ रहा है, जब सरकार का टैक्स कलेक्शन पहले से ही दबाव में है।
जीएसटी रिफॉर्म की अहमियत
यह रिफॉर्म बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें जीएसटी 1.0 की कई कमियों को दूर किया गया है। टैक्स स्लैब की संख्या चार से घटाकर दो (5% और 18%) कर दी गई है, जिसमें 40% टैक्स छूट सिन प्रोडक्ट्स के लिए आरक्षित है। अब आम उपभोग की वस्तुओं पर कम दरों पर टैक्स लगेगा, जिससे घरों पर आर्थिक बोझ कम होगा और घरेलू मांग मजबूत होगी। साथ ही, जीएसटी काउंसिल ने व्यापार सुगमता के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को सरल बनाया है, वर्गीकरण विवादों का समाधान किया है और उलटे शुल्क ढांचे को समाप्त किया है। राज्यों के जीएसटी रेवेन्यू में पहले पांच सालों की कमी को पूरा करने के लिए लिए गए लोन का भुगतान हो जाने के बाद कंपंसेशन सेस को भी समाप्त कर दिया जाएगा। नई दरें 22 सितंबर से लागू होंगी, जो त्योहारों के मौसम से ठीक पहले हैं।
सरकार को कितना नुकसान होगा?
सरकार का अनुमान है कि 2023-24 के उपभोग पैटर्न के आधार पर सालाना रेवेन्यू में करीब 48,000 करोड़ रुपए की कमी आएगी। राजस्व सचिव अरविंद श्रीवास्तव ने बताया कि नेट रेवेन्यू में लगभग 48,000 करोड़ रुपए की कमी की संभावना है। हालांकि, उन्होंने कहा कि केवल एक आंकड़े पर ध्यान केंद्रित करना पूरी तस्वीर नहीं दिखाता।
क्या यह नुकसान बड़ा है?
अधिकारियों का मानना है कि यह नुकसान बहुत बड़ा नहीं है। फिजूलखर्ची में कटौती करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा, जीएसटी 2.0 के तहत बेहतर उपभोग और बेहतर टैक्स कंप्लायंस से मध्यम अवधि में इस नुकसान की काफी हद तक भरपाई हो जाएगी।
क्या टैक्स कलेक्शन सरकार के लिए चिंता का विषय है?
वर्तमान में, सरकार के लिए ग्रॉस टैक्स कलेक्शन चिंता का विषय है। वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स कलेक्शन बजट अनुमान से कम रहा है। बजट में अनुमानित 12% वृद्धि के मुकाबले डायरेक्ट टैक्स संग्रह 4% कम हैं, जो सुस्त कारोबारी माहौल और कम इनकम टैक्स स्लैब के कारण है। इनडायरेक्ट टैक्स भी पिछड़े हैं, जो कमजोर नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ को दर्शाता है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि रेवेन्यू लक्ष्य पूरा करने के लिए टैक्स संग्रह में दोगुना उछाल लाना होगा, जो चुनौतीपूर्ण है।
सरकार इस स्थिति में क्या कर रही है?
जीएसटी दरों में कटौती को आर्थिक ग्रोथ को पुनर्जीवित करने के व्यापक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। पहले की गई आयकर कटौतियों के साथ यह कदम उपभोग को बढ़ावा देने, निजी निवेश को पुनर्जीवित करने और जीडीपी वृद्धि को गति देने के लिए है। मजबूत आर्थिक वृद्धि से राजस्व में बढ़ोतरी होगी, जिससे राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखना आसान होगा। हालांकि, मांग बढ़ने में समय लगेगा, इसलिए जीएसटी कटौती को त्योहारी सीजन से जोड़ा गया है ताकि इसका प्रभाव तेज़ हो।
क्या सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से चूक सकती है?
नरेंद्र मोदी सरकार का राजकोषीय कंसोलिडेशन का रिकॉर्ड मजबूत है और इस प्रतिष्ठा से समझौता होने की संभावना कम है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सरकार ने जीडीपी के 4.4% का राजकोषीय घाटा लक्ष्य रखा है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि यदि रेवेन्यू कम भी रहा, तो सरकार पूंजीगत खर्च और गैर-जरूरी खर्चों में कटौती कर इस लक्ष्य को पूरा कर सकती है। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से मिलने वाले उच्च लाभांश तथा आईडीबीआई बैंक और एलआईसी से अपेक्षित डिसइंवेस्टमेंट से भी सरकार को वित्तीय सहायता मिलेगी।