नेपाल की लड़कियां इतनी कम उम्र में बन जाती हैं मां, जानें कितना है यहां का फर्टिलिटी रेट?
punjabkesari.in Sunday, Nov 09, 2025 - 01:56 PM (IST)
नेशनल डेस्क। नेपाल में एक ऐसी सामाजिक विसंगति मौजूद है जहां एक ओर कानूनी सुधार हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर सामाजिक दबाव किशोरियों को मां बनने की ज़िम्मेदारी झेलने पर मजबूर कर रहा है। भले ही नेपाल में शादी और मातृत्व की न्यूनतम कानूनी आयु 20 साल है लेकिन ग्रामीण और वंचित समुदायों में बाल विवाह और पारंपरिक सोच के चलते कई लड़कियां 18 साल से पहले ही मां बन जाती हैं।
कानून के बावजूद क्यों जारी है कम उम्र में मातृत्व?
नेपाल का कानून स्पष्ट रूप से लड़के और लड़की दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 20 साल निर्धारित करता है। इसके बावजूद यह चलन निम्न कारणों से जारी है:
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कमजोर कानूनी पालन: ग्रामीण इलाकों में कानूनी प्रावधानों का पालन अक्सर कमज़ोर रहता है जिससे बाल विवाह और कम उम्र में मातृत्व की दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
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सामाजिक और आर्थिक दबाव: परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने और परंपरागत सोच के कारण लड़कियों को कम उम्र में ही शादी और मातृत्व का बोझ उठाना पड़ता है।
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बाल विवाह का प्रभाव: हालांकि नेपाल में बाल विवाह की दर भारत और पाकिस्तान की तुलना में कम हुई है लेकिन यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है जिससे 18 से 21 साल की उम्र की लड़कियां मां बनती दिखती हैं।
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नेपाल की प्रजनन दर में ऐतिहासिक गिरावट: असली कारण क्या?
एक तरफ जहां कम उम्र में मातृत्व की चुनौती है वहीं नेपाल एक और बड़ा जनसांख्यिकीय बदलाव देख रहा है। पिछले दशकों में देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) में ऐतिहासिक गिरावट आई है:
| वर्ष | अनुमानित प्रजनन दर (बच्चे प्रति महिला) |
| 1990 का दशक | लगभग 4-5 |
| 2022 | 2.1 |
| 2023 | लगभग 1.98 |
| 2025 (अनुमानित) | 1.76 से 1.8 |
गिरावट के मुख्य कारण
प्रजनन दर में आई यह गिरावट महिलाओं को कम बच्चे पैदा करने की स्वतंत्रता मिलने का संकेत देती है। इसके प्रमुख कारण ये हैं:
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परिवार नियोजन: गर्भनिरोधक साधनों और परिवार नियोजन सेवाओं की आसान पहुंच।
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शिक्षा और सशक्तिकरण: महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण में लगातार वृद्धि।
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आर्थिक बदलाव: ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन और बेहतर आर्थिक अवसरों का मिलना।
यह गिरावट दर्शाती है कि जहाँ एक ओर शिक्षा और आधुनिकता ने महिलाओं को मातृत्व पर नियंत्रण दिया है वहीं दूसरी ओर कम उम्र में मातृत्व जैसी सामाजिक चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं जिन पर ध्यान देने की सख्त ज़रूरत है।
