''समलैंगिक संबंध अब एक बार का रिश्ता नहीं, अब ये रिश्ते हमेशा टिके रहने वाले'': CJI

punjabkesari.in Thursday, Apr 20, 2023 - 04:57 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सामने समलैगिंक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने से जुड़ी याचिकाओं पर गुरुवार को लगातार तीसरे दिन सुनवाई हुई। इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे प्रधानमंत्री जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि क्या विवाह के लिए पति-पत्नी को दो अलग-अलग लिंग से होना आवश्यक है। इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एसआर भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएम नरसिम्हा भी शामिल हैं।

समलैंगिक विवाह को लेकर दायर याचिकाओं पर जारी सुनवाई की सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट और यूट्यूब पर लाइव स्क्रीनिंग हो रही है। मामले में सुनवाई के तीसरे दिन सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम इन (समलैंगिक) संबंधों को एक बार का रिश्ता नहीं, बल्कि हमेशा के लिए टिके रहने वाले रिश्तों के रूप में देखते हैं। जो ना सिर्फ शारीरिक बल्कि भावनात्मक रूप से मिलन भी है।’

विवाह की विकसित धारणा को फिर से परिभाषित करना होगा
सीजेआई ने इसके साथ ही सवाल किया कि, ‘हमें विवाह की विकसित धारणा को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है, क्योंकि विवाह के लिए पति-पत्नी के लिए अलग लिंग का होना क्या जरूरी आवश्यकता है।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 1954 में विशेष विवाह अधिनियन के लागू होने के बाद से पिछले 69 वर्षों में कानून महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ है। यह कानून दो अलग धर्मों के अलावा उन लोगों को शादी की इजाजत देता है जो पर्सनल लॉ के अनुसार विवाह बंधन में नहीं बंधना चाहते।

समान लिंग के लोग स्थाई संबंधों में रह सकेंगे
उन्होंने समलैंगिकता को लेकर वर्ष 2018 के आदेश का हवाला देते हुए कहा, ‘समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके, हमने न केवल एक ही लिंग के सहमति देने वाले वयस्कों के बीच संबंधों को मान्यता दी है, बल्कि हमने यह भी माना है कि जो लोग एक ही लिंग के हैं, वे भी स्थिर संबंधों में रह सकेंगे।’ चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है, जब सरकार ने इन याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया है कि ये बस ‘शहरी अभिजात्य मानसिकता’ (अर्बन एलीट) है और इस मुद्दे पर चर्चा के लिए अदालत नहीं बल्कि संसद ही सही मंच है।

अर्बन एलीट वाली केंद्र की दलील बिल्कुल गलत
वहीं मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने दलील देते हुए कहा कि पंजाब के अमृतसर में एक युवती काजल ने दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की, वो दलित है, जबकि उसकी चंडीगढ़ निवासी पार्टनर भावना ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखती है। उनके परिवार भी साधारण हैं। उनको अर्बन एलीट तो कतई नहीं माना जा सकता. ऐसे में केंद्र सरकार की ये अर्बन एलीट यानी शहरी अभिजात्य मानसिकता वाली दलील काल्पनिक और असंवेदनशील है।

इन लड़कियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में सुरक्षा मुहैया कराने की गुहार लगाते हुए अर्जी दाखिल की थी। उनके लिए समाज और परिवारों से सुरक्षा और संरक्षा का मतलब उनके विवाह को कानूनी मान्यता मिलना ही है। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं का केंद्र सरकार ने यह कहते हुए विरोध किया कि भारतीय परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और बच्चों की है, जिसकी समलैंगिक विवाह से तुलना नहीं की जा सकती है।


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Content Writer

Yaspal

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