India-Pakistan border: बॉर्डर पर टूटते रिश्ते: अटारी पर रोती माएं, बिछड़ते बच्चे और दो देशों के बीच फंसी ज़िंदगियां
punjabkesari.in Saturday, Apr 26, 2025 - 06:16 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत-पाकिस्तान सीमा पर इस बार कागज़ों से नहीं, इंसानी जज़्बातों से बनी दीवारें खड़ी हो गईं। अटारी बॉर्डर पर शुक्रवार को एक ओर जहां 191 पाकिस्तानी नागरिकों को भारत से रवाना किया गया, वहीं दूसरी ओर 287 भारतीय नागरिकों की वापसी हुई। लेकिन इसी प्रक्रिया के दौरान कुछ महिलाओं की दुनिया वहीं ठहर गई—बॉर्डर के उस पार उनके बच्चे चले गए और ये माएं पीछे छूट गईं।
नागरिकता के दस्तावेज नहीं, रिश्तों की ज़ंजीरें थीं
यह घटनाक्रम मेरठ में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे में देश छोड़ने के निर्देश के तहत हुआ। अमृतसर के अटारी बॉर्डर पर जब यह अदला-बदली शुरू हुई, तो कुछ पाकिस्तानी महिलाओं को रोक दिया गया। उनका कसूर बस इतना था कि उनके पास पाकिस्तानी नागरिकता के कागजात नहीं थे। जबकि उनके साथ आए बच्चे-जो पाकिस्तान के नागरिक थे-उन्हें जाने की इजाजत मिल गई।
"मेरे बच्चे उस पार चले गए, मैं यहां रह गई"
दिल्ली की रहने वाली शनीजा की कहानी दिल दहला देने वाली है। कराची में शादी के बाद वह भारत आई थी अपने मां-बाप से मिलने। लेकिन लौटते समय उसे अटारी बॉर्डर पर रोक लिया गया। उसकी नागरिकता का मामला पाकिस्तानी अदालत में लंबित है, और इसी अनिश्चितता ने उसकी ज़िंदगी थाम दी। आंसुओं में डूबी आवाज़ में उसने कहा, “मेरे शौहर वाघा बॉर्डर पर मेरा इंतजार कर रहे हैं। सिर्फ एक गुज़ारिश है—मुझे मेरे बच्चों के पास जाने दो।”
अफसीन की तड़प: “क्या यही इंसाफ है?”
राजस्थान की अफसीन जहांगीर भी अपने नन्हें बच्चों से बिछड़ गई। वह भी कराची में ब्याही गई थी और अपने परिवार से मिलने भारत आई थी। उसके बच्चों को बॉर्डर पार जाने दिया गया, लेकिन उसे रोक दिया गया। उसकी आंखें एक माँ की मजबूरी की सबसे सच्ची तस्वीर थीं। वो कहती है, “मेरे बच्चे वहां हैं और मैं यहां अकेली रह गई हूं। मुझे समझ नहीं आता—क्या मां होना गुनाह है?”
अरूदा का सवाल: "क्या हम सिर्फ कागज़ों की चीज़ हैं?"
पाकिस्तान में बसी अरूदा अपने मायके वालों से मिलने भारत आई थीं। लेकिन वापसी के वक़्त उन्हें रोक दिया गया, जबकि उनके दोनों बच्चे पाकिस्तान लौट गए। अरूदा बोली, “हम तो सिर्फ अपने घर वापस जाना चाहते हैं। यहां हमें इंसान नहीं, बस एक केस की तरह देखा जा रहा है।”
दीवारें सिर्फ पत्थर की नहीं होतीं
अटारी बॉर्डर पर बिछड़े ये परिवार अब दो देशों की नीतियों, नागरिकता के दस्तावेजों और अदालती फैसलों के बीच फंस चुके हैं। जिन महिलाओं ने अपनी ज़िंदगी दो मुल्कों के बीच समर्पित की, वो अब न इधर की रहीं, न उधर की। सीमा पर खड़ी इन औरतों की आंखों में आंसू नहीं, सवाल हैं—जो सिर्फ़ इंसानियत से ही जवाब मांगते हैं।