जानिए, LG और केजरीवाल सरकार के टकराव का पूरा घटनाक्रम

punjabkesari.in Thursday, Jul 05, 2018 - 05:40 AM (IST)

नेशनल डेस्क: अपने एक अहम फैसले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि उपराज्यपाल अनिल बैजल को निर्णय करने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है और वह मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करने के लिये बाध्य हैं। केंद्र एवं दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों की रस्साकशी से संबद्ध मामले में घटनाक्रम इस प्रकार हैं। इसकी शुरुआत वर्ष 2014 में उस वक्त हुई थी जब तत्कालीन अरविंद केजरीवाल शासन ने संप्रग मंत्री एम वीरप्पा मोइली एवं मुरली देवड़ा सहित रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल), मुकेश अंबानी एवं अन्य के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की थी। इन सभी पर गैस दरों को ‘‘फिक्स करने ’’ का आरोप था।
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2 मई, 2014 : आरआईएल ने प्राथमिकी रद्द कराने के लिये उच्च न्यायालय पहुंची और केंद्रीय कर्मियों की जांच को लेकर दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) को शक्ति प्रदान करने से संबद्ध केंद्र की 1993 की अधिसूचना को चुनौती दी थी।
8 मई : केंद्र ने मंत्रियों के खिलाफ प्राथमिकी का विरोध करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उसने दलील दी कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के पास जांच करने का अधिकार नहीं है और यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।       
9 मई : मंत्रियों के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया। उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दी।
20 मई : उच्च न्यायालय ने केंद्र, आरआईएल को इस जांच में सहयोग करने के लिये कहा।  
9 अगस्त : एसीबी ने उच्च न्यायालय को बताया कि उसे गैस दर मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार है।   

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19 अगस्त : एसीबी ने उच्च न्यायालय को बताया वह आरआईएल एवं संप्रग के पूर्व मंत्री के खिलाफ गैस दर मामले में जांच नहीं कर सकती क्योंकि 23 जुलाई , 2014 की केंद्र की अधिसूचना ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों की जांच को उसके अधिकार क्षेत्र से हटा दिया था।  
16 अक्तूबर : दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि उसका भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को आरआईएल एवं मंत्रियों पर मुकदमा कर सकता है।  
28 अक्तूबर : उच्च न्यायालय ने एसीबी के अधिकारों पर स्पष्टीकरण के लिये केंद्र को समय दिया।  
4 दिसंबर : आरआईएल ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि गैस दर पर राज्य द्वारा केंद्र के फैसले की जांच बेतुकी है।  
25 मई , 2015 : उच्च न्यायालय ने कहा कि केंद्र के अंतर्गत आने वाले पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करना एसीबी के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसने कहा कि एसीबी की शक्तियों को सीमित करने से संबद्ध केंद्र की 21 मई की अधिसूचना ‘‘ संदिग्ध ’’ है।
26 मई : दिल्ली में नौकरशाहों की नियुक्ति के लिये उपराज्यपाल को शक्तियां देने वाली केंद्र की 21 मई को जारी अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी।  
28 मई : दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल की शक्तियों पर केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटकटाया। केंद्र ने उसकी अधिसूचना को ‘‘ संदिग्ध ’’ बताने वाले उच्च न्यायालय के 25 मई के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
29 मई : उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल को नौ नौकरशाहों के तबादले के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव पर विचार करने के लिये कहा। 
10 जून : उच्च न्यायालय का एसीबी के अधिकार पर गृह मंत्रालय की अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार।     
27 जून : उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त एसीबी प्रमुख एम के मीणा को ब्यूरो के कार्यालय में प्रवेश पर रोक लगाने पर दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय का रुख किया।       
27 जनवरी , 2016 : केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि दिल्ली केंद्र के अधीन है और यह पूर्ण राज्य नहीं है।  
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5 अप्रैल : आप सरकार ने उच्च न्यायालय से दिल्ली के शासन पर उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर अर्जियां वृहद पीठ को हस्तांतरित करने का अनुरोध किया।  
6 अप्रैल : दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि वह सीएनजी फिटनेस टेस्ट के लिये लाइसेंस देने में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को लेकर आयोग गठन करने में सक्षम है। 19 अप्रैल : आप सरकार ने उच्च न्यायालय में वृहद पीठ के गठन की मांग वाली अपनी याचिका उच्चतम न्यायलय से वापस ली।       
24 मई : उच्च न्यायालय ने याचिकाओं पर कार्रवाई से रोक वाली आप सरकार की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा। ये याचिकाएं राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों की नियुक्ति एवं अन्य मुद्दों पर अधिकारों के संबंध में उपराज्यपाल के साथ तनातनी के चलते दायर की गयी थीं।       
30 मई : उच्च न्यायालय ने आप सरकार की रोक वाली अर्जी पर पहले सुनवाई के उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।  
1 जुलाई : उच्चतम न्यायालय आप सरकार की उस याचिका पर सुनवाई के लिये सहमत हुआ, जिसमें न्यायालय से अनुरोध किया गया था कि वह उच्च न्यायालय को इन मुद्दों पर फैसला सुनाने से रोके। 
4 जुलाई : तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ ने एक राज्य के तौर पर दिल्ली के अधिकारों की घोषणा से संबंधित आप सरकार की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया। 
5 जुलाई : उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने भी दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया। 
8 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। 
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4 अगस्त : उच्च न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मुखिया हैं। 
15 फरवरी , 2017 : उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली- केंद्र विवाद संविधान पीठ को सौंपा। 
2  नवंबर : उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की।       
8 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने माना कि उपराज्यपाल को सौंपी गयी जिम्मेदारियां संपूर्ण नहीं हैं। 
14 नवंबर : न्यायालय ने यह सवाल किया कि क्या केंद्र एवं राज्यों के बीच कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे की संविधानिक योजना केंद्र प्रशासित दिल्ली पर भी लागू होती है। 
21 नवंबर : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में आप सरकार की दलील का यह कहकर विरोध किया कि केंद्र प्रशासित राज्यों में दिल्ली को ‘‘ विशेष दर्जा ’’ प्राप्त है लेकिन यह उसे एक राज्य का दर्जा प्रदान नहीं करता। 
6 दिसंबर : उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली-केंद्र के अधिकारों की रस्साकशी को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई पूरी की। 
4 जुलाई, 2018 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल को स्वतंत्र फैसले लेने का अधिकार नहीं है और वह मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करने के लिये बाध्य हैं।  
 


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vasudha

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