‘कलेजे के टुकड़े’ को बोझ लगने लगे पिता, फादर्स डे पर...वृद्धाश्रम में कट रही जिंदगी
punjabkesari.in Sunday, Jun 15, 2025 - 06:08 PM (IST)

नेशनल डेस्क: बरेली के काशीधाम वृद्धाश्रम और लाल फाटक स्थित वृद्धजन आवास गृह की गलियों में इन दिनों खामोशी कुछ ज्यादा ही बोझिल हो गई है। वजह है- फादर्स डे। जिस दिन हर बच्चा अपने पिता के लिए उपहार और प्रेम के शब्दों से सोशल मीडिया भर देता है, वहीं ये बुजुर्ग पिता अपने ही बच्चों के लौट आने की अधूरी आस में बैठे रहते हैं।
गोपाल कृष्ण भल्ला: 10 साल से बेटे की राह तकते
काशीधाम वृद्धाश्रम में रह रहे 75 वर्षीय गोपाल कृष्ण भल्ला कभी एक सम्मानित शिक्षक थे। अपनी सारी पूंजी बेटे की पढ़ाई-लिखाई और विदेश भेजने में लगा दी। बेटे ने विदेश जाकर जीवन संवारा, लेकिन अपने पिता को उम्र के उस मोड़ पर छोड़ गया जहां उन्हें सबसे ज़्यादा सहारे की जरूरत थी। गोपाल बाबू आज भी दरवाजे पर बैठकर उसी की राह तकते हैं—"शायद आज वो लौट आए..."
राकेश अग्रवाल: इंतज़ार अब भी बाकी है
इसी आश्रम में एक और चेहरा है—राकेश अग्रवाल। पत्नी के निधन के बाद उनका बेटा उन्हें आश्रम छोड़ गया। जाते समय कहा, “कुछ ही दिनों में आऊंगा।” लेकिन वो दिन आज तक नहीं आया। राकेश जी कहते हैं, “फोन की घंटी बजती है तो दिल धड़कता है कि शायद बेटा हो... लेकिन हर बार गलत नंबर निकलता है।”
श्याम प्रसाद: रिश्ते अब लेन-देन तक सिमटे
लाल फाटक क्षेत्र के वृद्धजन आवास गृह में रहने वाले श्याम प्रसाद की कहानी रिश्तों के बाजारू हो जाने की गवाही देती है। बेटा एक बार आया, वृद्धावस्था पेंशन के ₹17,000 लिए और फिर कभी नहीं लौटा। दूसरा बेटा कभी हालचाल तक पूछने नहीं आया। अब श्याम प्रसाद हर सुबह इस आस में जागते हैं कि शायद कोई बेटा आवाज़ दे।
प्रेम प्रकाश: जिस बेटे को पाला, उसने ही नाता तोड़ लिया
प्रेम प्रकाश की आंखों में आज भी बेटे की पहली स्कूल ड्रेस की तस्वीरें तैरती हैं। गली-गली फेरी लगाकर बेटे को पढ़ाया, लेकिन जब सहारे की बारी आई, तो वही बेटा और पत्नी उन्हें वृद्धाश्रम छोड़कर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। प्रेम प्रकाश कहते हैं, “जिसे जिंदगी दी, उसी ने मुझे ज़िंदगी से काट दिया।”
‘पिता जी जिंदा हैं या नहीं?’—एक सवाल जो रिश्तों की सच्चाई खोलता है
काशीधाम के प्रबंधक गोपाल कृष्ण अग्रवाल बताते हैं कि कई बेटियाँ सिर्फ यह पूछने के लिए फोन करती हैं कि, “पिता जी जिंदा हैं या नहीं?” लेकिन उनकी सेहत, ज़रूरतें या देखभाल के बारे में कभी बात नहीं करतीं। यह वाक्य सुनकर किसी का भी कलेजा कांप जाए।
आश्रम बन गया है नया परिवार
वृद्धाश्रम की प्रबंधक कांता गंगवार बताती हैं कि यहां 147 बुजुर्ग रह रहे हैं, जिनमें से 80% से अधिक को उनके बच्चों ने त्याग दिया है। अब ये बुजुर्ग एक-दूसरे और स्टाफ को ही अपना परिवार मानने लगे हैं। कोई किसी नर्स को ‘बेटा’ कहता है, तो कोई किसी सफाईकर्मी को ‘बेटी’ बना चुका है।
फादर्स डे: जब यादें और दर्द साथ आते हैं
हर साल फादर्स डे इनके लिए कोई उत्सव नहीं, बल्कि एक याद दिलाने वाला दिन बन जाता है। वो दिन जब उन्होंने पहली बार अपने बच्चे को उंगली पकड़कर चलना सिखाया था... आज वही बच्चे उनकी बुजुर्ग उंगली को पकड़ने से कतराते हैं।