62 साल बाद मिग-21 को भारतीय वायुसेना से विदाई, तेजस जेट की डिलीवरी में देरी बनी बड़ी चुनौती
punjabkesari.in Tuesday, Jul 22, 2025 - 04:38 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारतीय वायुसेना अपने सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित लड़ाकू विमान मिग-21 को 19 सितंबर 2025 को चंडीगढ़ एयरबेस पर एक विशेष समारोह में विदा करने जा रही है। 62 वर्षों तक भारत के आसमान की सुरक्षा करने वाला यह विमान अब इतिहास बन जाएगा। मिग-21 की विदाई भारतीय वायुसेना के लिए एक युग का अंत है, लेकिन तेजस Mk1A जेट की डिलीवरी में देरी के कारण सेना को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
मिग-21: भारत का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान
मिग-21 एक सोवियत युग का लड़ाकू विमान था जिसे 1963 में भारतीय वायुसेना ने अपनाया था। यह भारत का पहला सुपरसोनिक जेट था, जो ध्वनि की गति से तेज उड़ान भर सकता था। मिग-21 की कुल 874 विमान भारतीय वायुसेना में शामिल हुए, जिनमें से लगभग 600 भारत में ही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने लाइसेंस के तहत बनाए। इस विमान ने 1965, 1971, 1999 और 2019 के महत्वपूर्ण युद्धों में सक्रिय भूमिका निभाई।
मिग-21 ने कई युद्धों में दिया योगदान
मिग-21 ने भारतीय वायुसेना के इतिहास में कई अहम युद्धों और ऑपरेशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मिग-21 ने पहली बार सक्रिय भागीदारी करते हुए दुश्मन के कई विमानों को मार गिराया था। इसके बाद 1971 के युद्ध में इस विमान ने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान मिग-21 ने रात के समय दुश्मन के ठिकानों पर सटीक और प्रभावी हमले किए। 2019 के बालाकोट हमले में ग्रुप कैप्टन अभिनंदन ने मिग-21 बाइसन उड़ाकर पाकिस्तानी F-16 विमान को मार गिराने का ऐतिहासिक कारनामा किया। और सबसे आखिरी बार, 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मिग-21 ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में हिस्सा लिया। इन सभी घटनाओं ने मिग-21 को भारतीय वायुसेना की ताकत और बहादुरी का प्रतीक बना दिया।
‘उड़ता ताबूत’ क्यों कहा गया?
मिग-21 का इतिहास बहुत गौरवशाली रहा है, लेकिन इसके कई हादसों ने इसे विवादित भी बना दिया है। पिछले 62 वर्षों में मिग-21 के 400 से ज्यादा विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, जिनमें 200 से अधिक पायलटों की जान गई है। इन हादसों के पीछे कई कारण थे, जिनमें सबसे प्रमुख था इसका पुराना डिजाइन और तकनीक, जो आधुनिक लड़ाकू विमानों के मुकाबले कमज़ोर साबित हुआ। इसके अलावा मेंटेनेंस की जटिलताएं और पुराने पुर्जों की उपलब्धता में दिक्कतें भी दुर्घटनाओं का कारण बनीं। कभी-कभी पायलटों की गलतियां और प्रशिक्षण की कमी ने भी हादसों को बढ़ावा दिया। इसके अलावा पक्षियों से टकराने की घटनाएं भी मिग-21 की दुर्घटनाओं में एक बड़ा कारण रही हैं। इन तमाम वजहों से मिग-21 को ‘उड़ता ताबूत’ का उपनाम भी मिला। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि मिग-21 की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण हादसों की संख्या भी अपेक्षाकृत ज्यादा दिखती है।
मिग-21 की विदाई और वर्तमान स्थिति
भारतीय वायुसेना ने 2025 तक सभी मिग-21 विमानों को रिटायर करने का निर्णय लिया है। पहले वायुसेना में मिग-21 के चार स्क्वाड्रन सक्रिय थे, लेकिन अब केवल दो स्क्वाड्रन ही बचे हैं। इनमें नंबर 3 स्क्वाड्रन, जिसे कोब्रास कहा जाता है, बिकानेर में तैनात है, जबकि नंबर 23 स्क्वाड्रन, जिसे पैंथर्स कहा जाता है, चंडीगढ़ में स्थित है और यह 19 सितंबर 2025 को मिग-21 की अंतिम उड़ान भरेगा। बाकी दो स्क्वाड्रन पहले ही रिटायर हो चुके हैं। 2025 के अंत तक शेष मिग-21 बाइसन विमानों को भी पूरी तरह से सेवामुक्त कर दिया जाएगा, जिससे इस ऐतिहासिक विमान का युग समाप्त हो जाएगा।
तेजस Mk1A की देरी ने बढ़ाई मुश्किलें
मिग-21 की जगह आधुनिक और स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस Mk1A को लाने की योजना बनाई गई थी, लेकिन इसके डिलीवरी में कई कारणों से देरी हुई। सबसे बड़ी समस्या इंजन की कमी रही, क्योंकि तेजस Mk1A में इस्तेमाल होने वाला GE F404 इंजन अमेरिका से आता है, और उसकी सप्लाई में बाधाएं आईं। इसके अलावा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने कई तेजस विमान तो बना लिए हैं, लेकिन इंजन की कमी के कारण वे अभी जमीन पर खड़े हैं और उड़ान भर नहीं पा रहे। इसके साथ ही तेजस Mk1A में नए तकनीकी सिस्टम जैसे AESA रडार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम की टेस्टिंग में भी ज्यादा समय लगा, जिससे सर्टिफिकेशन में देरी हुई। इन कारणों से मिग-21 को 2025 तक उड़ाना पड़ा, जबकि तेजस Mk1A की नियमित डिलीवरी 2026 से शुरू होने की उम्मीद है।
तेजस Mk1A की खासियतें
तेजस Mk1A विमान में 50 से 60 प्रतिशत तक पुर्जे स्वदेशी हैं, जिससे यह भारत का एक सशक्त स्वदेशी लड़ाकू विमान बनता है। इसमें उन्नत AESA रडार और आधुनिक मिसाइल सिस्टम लगाए गए हैं, जो इसे मिग-21 की तुलना में कहीं अधिक ताकतवर बनाते हैं। इसके साथ ही तेजस Mk1A बेहतर सुरक्षा उपायों से लैस है, जिससे दुर्घटना दर भी काफी कम हुई है। यह विमान इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम से भी युक्त है, जो लड़ाई के दौरान दुश्मन के सिस्टम को बाधित करने में मदद करता है। भारतीय वायुसेना ने इस विमान के लिए 83 तेजस Mk1A के खरीद आदेश दिए हैं, जिनकी कीमत लगभग 48,000 करोड़ रुपये है, और भविष्य में 97 और विमानों को खरीदने की योजना भी बनाई जा रही है।
वायुसेना के सामने 29 स्क्वाड्रन की चिंता
मिग-21 के रिटायर होने से वायुसेना के पास सिर्फ 29 स्क्वाड्रन बचेंगे, जो 1965 के युद्ध के समय के मुकाबले भी कम हैं। वर्तमान में वायुसेना को 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है। इसके अलावा, पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन नई पीढ़ी के विमान विकसित कर रहे हैं, जिससे भारत की हवाई सुरक्षा पर दबाव बढ़ रहा है।
कैसे भरेगी वायुसेना यह कमी?
भारतीय वायुसेना अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कई नए विमान और तकनीकों पर काम कर रही है। तेजस Mk1A की डिलीवरी 2026 से हर साल 16 विमानों की होगी, जिससे मिग-21 के बाद की कमी को पूरा किया जाएगा। तेजस Mk2, जो बड़ा और अधिक शक्तिशाली विमान है, इसका प्रोडक्शन 2029 से शुरू होगा और यह मिराज-2000 की जगह लेगा। इसके अलावा, MRFA योजना के तहत 114 नए मल्टी-रोल फाइटर विमान खरीदने की योजना है, जिसमें राफेल, F/A-18 और यूरोफाइटर जैसे विमान शामिल हैं। साथ ही, AMCA नाम का 5वीं पीढ़ी का स्वदेशी स्टेल्थ विमान भी विकसित किया जा रहा है, जो 2035 तक वायुसेना को मिल जाएगा। सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाने के लिए वायुसेना 30 से 50 ड्रोन और सैटेलाइट तकनीक का भी इस्तेमाल बढ़ा रही है, जिससे आधुनिक युद्ध प्रणाली और निगरानी क्षमता बेहतर होगी।
मिग-21 की विरासत
मिग-21 ने भारत को कई ऐतिहासिक विजय दिलाई हैं। यह विमान कई वायुसेना प्रमुखों का हिस्सा रहा और महिला पायलट्स को भी पहली बार उड़ान भरने का मौका दिया। इसके अलावा भारत ने अन्य देशों के पायलटों को ट्रेनिंग भी दी। लेकिन अब समय आ गया है कि यह विमान अपनी आखिरी उड़ान भरकर विदा हो।