धर्मेंद्र की मौत के बाद खुलासा: भतीजों को दे गए 19 कनाल 11 मरले पुश्तैनी जमीन

punjabkesari.in Thursday, Nov 27, 2025 - 09:07 AM (IST)

नेशनल डेस्क: बॉलीवुड के चमकते सितारों में नाम शुमार धर्मेंद्र को बड़े पर्दे पर लोग उनके ताकतवर किरदारों के लिए याद करते हैं, लेकिन पर्दे के बाहर उनकी पहचान बिल्कुल अलग थी—एक ऐसे इंसान की, जो शोहरत की ऊंचाइयों पर पहुंचकर भी अपनी मिट्टी और अपने लोगों से दूर नहीं गया। फिल्मी ग्लैमर के बीच भी उनका दिल हमेशा पंजाब की उस धरती में धड़कता रहा, जहां से उन्होंने अपने सपनों की शुरुआत की थी।

परिवार और जड़ों के प्रति धर्मेंद्र का गहरा जुड़ाव
डांगो गांव, जिसे धर्मेंद्र अपने जीवन का असली घर मानते थे, उनके लिए सिर्फ एक ठिकाना नहीं था बल्कि भावनाओं की गठरी था। फिल्मों की व्यस्तता के बावजूद वे रिश्तों को निभाने में पीछे नहीं रहे। खासकर अपने चाचा और उनके बेटों पर वह वैसा ही स्नेह बरसाते थे, जैसा अपने बच्चों पर।

भतीजों को सौंप दी पुश्तों की धरोहर
धर्मेंद्र के उदार स्वभाव का सबसे बड़ा प्रमाण वह फैसला है, जब उन्होंने अपनी पैतृक जमीन का बड़ा हिस्सा अपने भतीजों के नाम कर दिया। जन्म भले ही नसराली में हुआ हो, लेकिन दिल हमेशा डांगो की गलियों में बसा रहा। पिता की एक सीख—“ये जमीन हमारे पुरखों की निशानी है”—धर्मेंद्र ने जीवनभर अपने दिल में बसाए रखी।

इसी भावनात्मक जुड़ाव के चलते उन्होंने करीब 19 कनाल 11 मरले जमीन अपने भतीजों को सौंप दी, ताकि परिवार गांव से जुड़ा रहे और जड़ों की यह निशानी सुरक्षित रहे। परिवार के लोग बताते हैं कि आज के समय में मुट्ठी भर जमीन भी कोई आसानी से नहीं छोड़ता, मगर धर्मेंद्र ने अपनापन दिखाते हुए इतनी बड़ी संपत्ति रिश्तों के नाम कर दी।

मुंबई में भी गांव का स्वाद नहीं छोड़ा
धर्मेंद्र भले ही मुंबई में रह रहे हों, पर उनकी थाली में गांव का स्वाद हमेशा बना रहा।उन के रिश्तेदार बताते हैं कि दादा जी ट्रेन से 24 घंटे की यात्रा करके उनके लिए घर में बना खोया, देसी बर्फी और साग लेकर जाते थे। धर्मेंद्र हर बार यही कहते— “घर का खोया जरूर भेजना, वह स्वाद कहीं नहीं मिलता।” गांव और शहर की दूरियाँ उनके रिश्तों को कभी कम नहीं कर पाईं।

साल 2013 में वापसी—पुराने घर की मिट्टी माथे से लगाई
2013 में एक शूटिंग के दौरान जब वे 78 साल की उम्र में दोबारा डांगो पहुंचे, तो गांव का स्वागत देखकर भावुक हो उठे। अपने पुराने मिट्टी के घर में प्रवेश करते ही उन्होंने दरवाजे के पास की मिट्टी उठाकर माथे पर लगाई—जैसे वर्षों बाद कोई अपनी आत्मा से मिलने आया हो। अंदर जाते ही वह आँसुओं में डूब गए और करीब 10–15 मिनट तक रोते रहे। यह दृश्य देखकर गांव वाले भी खुद को रोक नहीं पाए।


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Content Editor

Anu Malhotra

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