मां बेटी को करती थी गैर मर्द के साथ सोने को मजबूर, फिर खुद भी उसके सामने करते आपत्तिजनक हरकतें, चिल्लाती रहती वो और...

punjabkesari.in Friday, Oct 03, 2025 - 04:30 PM (IST)

नेशनल डेस्क। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक दिल दहला देने वाले मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए अपनी ही 11 वर्षीय बेटी के साथ बार-बार बलात्कार में सहायता करने वाली एक मां की 25 साल की सज़ा को बनाए रखा है। कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि जिस मां का कर्तव्य अपनी बेटी की रक्षा करना था उसने इसके उलट अपराध को आसान बनाया जिससे पीड़ित बच्ची को जीवन भर रहने वाला गंभीर मानसिक आघात पहुंचा है।

पिता की शिकायत से खुला मामला

यह जघन्य मामला जनवरी 2020 में तब शुरू हुआ जब पीड़ित बच्ची के पिता ने अपनी पत्नी और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में कहा गया कि जब पिता रात की शिफ्ट में काम करने जाते थे तब उसकी पत्नी और सह-आरोपी पुरुष बच्ची के सामने आपत्तिजनक हरकतें करते थे। पिता ने आरोप लगाया कि मां अपनी ही बेटी को उनके बगल में सोने के लिए मजबूर करती थी जिससे सह-आरोपी बच्ची के साथ यौन शोषण करता था। जब बच्ची इन हरकतों का विरोध करती थी तो उसकी मां उसे मारती थी और जबरदस्ती अपराधी के सामने झुकने के लिए कहती थी। इस मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) और POCSO एक्ट की गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया।

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ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी 25 साल की सज़ा

फरवरी 2024 में ट्रायल कोर्ट ने सह-आरोपी पुरुष को बलात्कार और गंभीर यौन शोषण का दोषी ठहराया। मां को यौन शोषण में सहायता करने और नाबालिग के खिलाफ अपराध की जानकारी न देने का दोषी पाया गया। ट्रायल कोर्ट ने मां के इस घिनौने कृत्य के लिए उसे 25 साल की जेल की सजा सुनाई थी।

हाई कोर्ट का सख्त रुख

मां ने अपने वकील के माध्यम से दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दायर कर सज़ा को झूठा और आधारहीन बताया लेकिन 18 सितंबर 2025 को जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की बेंच ने मां की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने मौखिक और दस्तावेजी सबूतों को ध्यान में रखते हुए कहा कि यह मां का व्यवहार निष्क्रिय सहमति से कहीं आगे है। मां ने बच्ची को चुप रहने के लिए मजबूर किया और सह-आरोपी को बच्ची के साथ एक ही बिस्तर पर सोने की इजाजत दी। कोर्ट ने कहा कि मां ने न केवल अपने कर्तव्य में असफलता दिखाई बल्कि सक्रिय रूप से अपराध को बढ़ावा दिया जो स्पष्ट रूप से अपराध में सहायता करने की श्रेणी में आता है।

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दिल्ली पुलिस की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक मनोज पंत ने कोर्ट में तर्क दिया था कि यह मामला 'बेहद गंभीर और संगीन' है। हाई कोर्ट के इस फैसले ने समाज में सुरक्षा और विश्वास के उल्लंघन के इस मामले में न्याय को सुनिश्चित किया है।


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Content Editor

Rohini Oberoi

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