दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला, यौन इच्छा के बिना नाबालिग के होठों को दबाना, छूना पॉक्सो के तहत अपराध नहीं
punjabkesari.in Friday, Mar 07, 2025 - 05:36 PM (IST)

नेशनल डेस्क: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन प्रेरित प्रयासों के बिना नाबालिग लड़की के होठों को छूना और दबाना तथा उसके बगल में सोना पॉक्सो (यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत ‘‘गंभीर यौन उत्पीड़न'' नहीं है, जिसके लिए आरोपी के खिलाफ अभियोजन चलाया जाए।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि ये कृत्य नाबालिग की गरिमा का उल्लंघन और उसे ठेस पहुंचा सकते हैं, लेकिन ‘‘प्रकट या यौन इरादे की मंशा'' के बिना पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत आरोप तय करने के लिए आवश्यक वैधानिक सीमा को पूरा करना मुश्किल होगा। न्यायमूर्ति ने अपने फैसले में कहा कि प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 के तहत ‘महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग' करने का स्पष्ट मामला बनता है। अदालत ने 24 फरवरी को 12 वर्षीय नाबालिग लड़की के चाचा की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत आरोप तय किए जाने के खिलाफ दलील दी गई थी।
आईपीसी की धारा 354 के तहत आरोपी दोषी
अदालत ने धारा 354 के तहत आरोप बरकरार रखा, लेकिन पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत उसे बरी कर दिया। शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि न्यायालय ने बार-बार कहा है कि आईपीसी की धारा 354 के संदर्भ में महिला की गरिमा की व्याख्या किसी महिला या नाबालिग लड़की की गरिमा और शरीर पर उसके अधिकार के सदंर्भ में की जानी चाहिए।
अदालत ने कहा, ‘‘(हालांकि) पीड़िता ने किसी भी तरह के यौन प्रकृति के कृत्य का आरोप नहीं लगाया है, न ही उसने अपने किसी भी दर्ज बयान में चाहे वह मजिस्ट्रेट, पुलिस या बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष बयान हो, उसने यौन उत्पीड़न किए जाने या ऐसे अपराध के प्रयास की संभावना से इनकार किया है... जो कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत अपराध का एक अनिवार्य तत्व है।'' फैसले में कहा गया कि नाबालिग लड़की को उसकी मां ने छोटी उम्र में ही छोड़ दिया था और वह बाल देखभाल संस्थान में रहती थी। घटना के समय वह अपने परिवार से मिलने गई थी।