डोकलाम विवादः भारत से चीटिंग कर रहा चीन

punjabkesari.in Saturday, Jul 08, 2017 - 03:08 PM (IST)

बीजिंगः डोकलाम विवाद को लेकर चीन भारत से असली तथ्यों को छुपा कर चीटिंग रहा है। बात है 'सिक्किम-तिब्बत संधि 1890' के दस्तावेजों की जिसमें चीन डोकलाम पर अपना दावा पेश करता है जबकि तिब्बत सरकार ने इस पर कोई हस्ताक्षर नहीं किए थे। बीते 16 जून से भारत और चीन के बीच डोकलाम में सड़क बनाने को लेकर नोक झोक चल रही है। वहीं, भूटान भी इस इलाके पर अपना दावा कर रहा है। 

विश्लेषकों की माने तो चीन ने 1960 तक भूटान-तिब्बत और सिक्किम-तिब्बत सीमाओं को लेकर किसी संधि पर सहमति नहीं दी थी। डोकलाम विवाद पर चीन ने ऐसे किसी दस्तावेजों का हवाला तक नहीं दिया। तिब्बत मामलों के जानकार और इतिहासकार क्लॉड आर्पी कहते हैं, 'तिब्बत सरकार ने 1890 के समझौते को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था क्योंकि उसे इसकी जानकारी नहीं दी गई थी या इसका हिस्सा नहीं बनाया गया था।' 

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आर्पी के मुताबिक, 1890 की संधि से पहले ब्रिटिश और तिब्बत सेना की बीच भारी जंग हुई थी जो कि तिब्बत की इस संधि पर हस्ताक्षर ना करने की सबसे बड़ी वजह  है। वहीं, चीन के मन में यह था कि इस संधि पर तिब्बत के हस्ताक्षर ना करना उसके लिए कोई मायने नहीं रखता।क्योंकि इस पर हस्ताक्षर करने के लिए केंद्र सरकार ने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अपना राजदूत भेज दिया था। लेकिन इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। क्योंकि 1890 में चीन का तिब्बत पर कोई नियत्रंण नहीं था बस एक स्थाई प्रतिनिधित्व ही था। 

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सच्चाई ये है कि तिब्बत ने संधि पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था जिसके जवाब में ब्रिटिश सैनिकों ने तिब्बत पर हमला बोल दिया। लेकिन चीन इस मुद्दे पर चुप रहा है कि 1960 तक विवादित इलाके का हल नहीं निकला था। इस पर आर्पी कहते हैं, '1960 में अधिकारियों की बातचीत में चीन ने भूटान-तिब्बत सीमा और सिक्किम-तिब्बत सीमा पर बात करने से इनकार कर दिया।' चीन के विदेश मंत्रालय ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के एक पत्र के कुछ अंश यह दिखाने के लिए पेश किए थे कि भारत सरकार ने 1890 की संधि को स्वीकार किया था जो डोकलाम के इलाके को भी कवर करती है।
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लेकिन चीनी मंत्रालय ने यह तथ्य छुपाया कि नेहरू के समय भारत, भूटान और चीन के बीच सिक्किम-तिब्बत-भूटान तिराहे को लेकर कोई हल नहीं निकला था। भारत की चिंता यह है कि चीन जो सड़क बना रहा है वह इस तिराहे के काफी नजदीक है और इससे सीमा के इस इलाके के हल के लिए भविष्य की कोशिशों को नुकसान हो सकता है।इस पर क्लॉडे आर्पी का कहना है, 'नेहरू ने केवल सिक्किम की उत्तरी सीमा के मुद्दे पर 1890 की संधि को स्वीकार किया था। तिराहे को लेकर कभी कोई सहमति नहीं दी गई।' उन्होंने बताया, 'इसका सबूत यह है कि इसे लेकर भारत और चीन के बीच 2012 में बातचीत हुई थी।' इस मुद्दे पर दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई। वे इस बात पर सहमत हुए थे कि जब तक इलाके को लेकर कोई निर्णायक हल नहीं निकाला जाता तब तक मौजूदा स्थिति में कोई बदल नहीं होना चाहिए।


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