आसान नहीं होगा जीरो बजट फार्मिंग को लागू करना

punjabkesari.in Saturday, Jul 06, 2019 - 08:54 AM (IST)

जालंधर,(नरेश): बजट के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सुझाए गए जीरो बजट फार्मिंग को देश में लागू करना इतना आसान नहीं होगा और इसके लिए न सिर्फ सरकारी स्तर पर बड़े प्रयास करने पड़ेंगे बल्कि निजी क्षेत्र को भी इसमें निवेश करना पड़ेगा। हालांकि इसके नतीजे बड़े सकारात्मक निकलेंगे लेकिन इसे लागू करने में लम्बा समय लग सकता है। पंजाब केसरी ने वित्त मंत्री द्वारा घोषित किए गए इस कदम को लेकर पालमपुर के कृषि यूूनिवॢसटी के चांसलर अशोक कुमार सरियाल के अलावा हिसार की चौधरी चरण सिंह एग्रीकल्चर यूनिवॢसटी के वाइस चांसलर डा. के.पी. सिंह के साथ बातचीत की और यह जानने की कोशिश की किसरकार की इस महत्वाकांक्षा के जमीनी स्तर पर लागू होने में कितना समय और संसाधन लगेगा।

हम कम से कम जहर से बचेंगे: के.पी. सिंह 
वित्त मंत्री ने बजट में जिस जीरो बजट फाॄमग का जिक्र किया है वह असल में सर्कुलर बायो इकॉनमी है। इसके तहत खेत से पैदा होने वाले उत्पादों से ही कृषि में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल तैयार होता है हालांकि खेती की हर चीज में खर्च आता है। इसमें औजार से लेकर सिंचाई और तमाम अन्य संसाधन शामिल होते हैं लेकिन इसके बावजूद इस तकनीक के जरिए कृषि में इस्तेमाल होने वाली खाद, बीज और कीटनाशक कुदरती तौर पर खेत से ही तैयार हो सकते हैं लेकिन इसके लिए भी तकनीक और मशीनरी की जरूरत होगी और खेत से निकलने वाले उत्पाद में से कुछ भी फिजूल नहीं जाएगा। इसे जीरो वेस्ट जीरो इनपुट कहा जाता है, यानी फसल कटने के बाद निकलने वाले एग्रीवेस्ट में से ही खाद तैयार होती है और यही खाद फिर कृषि में इस्तेमाल होती है लेकिन इसके लिए समय लगेगा और निवेश की भी जरूरत होगी। यह निवेश सरकारी या निजी स्तर पर हो सकता है लेकिन मोटे तौर पर इसके लागू होने के बाद आम जनता तक जो कृषि उत्पाद पहुंचेगा वह जहर से मुक्त होगा। यूरोपियन देशों में पहले से इसी तकनीक के साथ उत्पादन हो रहा है। 

सरकार की योजना किसान के हित में: अशोक कुमार 
पालमपुर की कृषि यूनिवॢसटी के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरियाल ने बजट के दौरान वित्त मंत्री द्वारा घोषित किए गए जीरो बजट फाॄमग को कृषि हित में बताया है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में पहले ही प्राकृतिक रूप से कृषि हो रही है और किसानों को इसी के अनुरूप ट्रेङ्क्षनग भी दी जा रही है, इसी मकसद से यूनिवॢसटी ने प्राकृतिक कृषि केन्द्र की स्थापना भी की है। केन्द्र सरकार द्वारा इसे अन्य प्रदेशों में लागू करने से देश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी और किसानों की आय दोगुना किए जाने का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा। इससे न सिर्फ लागत कम होगी बल्कि लोगों की सेहत के लिए भी कृषि का यह माडल बेहतरीन है क्योंकि इसमें जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होगा और खेत में उपलब्ध संसाधनों के जरिए ही किसान खेती कर पाएंगे। 

एक्सपर्ट की राय
बजट में कई मिसिंग लिंक हैं। प्रधानमंत्री ने कहा था कि कॉर्पोरेट को एग्रीकल्चर में इनवैस्ट करना चाहिए लेकिन इस बारे में कोई ऐलान नहीं हुआ। यह बात अधूरी रह गई। फूड सैक्टर, निर्यात और रोजगार सृजन पर कुछ ज्यादा नहीं है। 
-पिरुज खंभात, चेयरमैन (रसना) 


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Edited By

Anil dev

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