मोदी का हिन्दी प्रेम उड़वा रहा खिल्ली

punjabkesari.in Friday, Feb 27, 2015 - 10:54 AM (IST)

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो हिन्दी के पुजारी मानें जाते हैं उन्हीं के मंत्री उनकी खिल्ली उड़वाने में लगे हुए हैं। जब-जब मोदी को वोट की जरुरत थी तो वे हिन्दी के भाषणों की गड़गड़ाहट से लोगों को अाकर्षित करते थे अाज जब अाम जनता सुनने बैठी है तो रेल बजट अंग्रेजी में क्यों ? मोदी जी बताएं अाखिर हर बार की तरह उन्हीं के चहेते मंत्री उनकी बात क्यों नहीं मानते।

जैसा कि सुनने में अाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  अब से विदेशी सचिवों या प्रतिनिधियों से हिन्दी में बात किया करेंगे। हिन्दी में बात करने के लिए दुभाषिये का इस्तेमाल होगा, लेकिन उनके मंत्री तो अंग्रेजी ही बोलते है। वहीं 16वीं लोकसभा में सुषमा स्वराज, उमा भारती और डा. हर्षवर्धन संस्कृत में शपथ लेते नजर आए।  जब प्रधानमंत्री हर जगह हिन्दी को तवज्जों देते हैं तो उनके मंत्री दूसरी भाषाअों का इस्तेमाल क्यों करते हैं।

भाषा अपना गर्व या अपना वर्चस्व अपने देश की अर्थव्यवस्था से हासिल करती है। जैसे हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा है, अंग्रेजी का मूल यूरोप में है, पर इसे लोकप्रिय करने का श्रेय अमेरिका को जाता है। मुमकिन है अगर जापान सुपरपावर होता तो शायद जापानी अंग्रेजी की तरह लोकप्रिय होती। हिन्दुस्तान के भीतर भी यही बात देखी जा सकती है। भोजपुरी और तमिल के सम्मान में अंतर तो है ही। बीजेपी के ही सांसद मनोज तिवारी भी कह चुके हैं कि भोजपुरी को संविधान में स्थान दिलाएंगे। भाषा को इस समय संविधान में जगह मिले ना मिले, यह गैर-ज़रूरी मुद्दा है। हिन्दी जैसी भाषाएं कॉर्पोरेट दुनिया में अपनी जगह खो चुकी हैं।

ज्ञात हो लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान भले नरेंद्र मोदी ने  दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों सहित पूरे देश में हिन्दी में ही भाषण दिए थे। राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान जदयू सदस्य के सी त्यागी, सपा के रामगोपाल यादव और राकांपा सदस्य डी पी त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री के हिन्दी में भाषण देने की सराहना की थी। त्रिपाठी ने तो उनकी सराहना करते हुए यहां तक कहा कि वह ‘‘पहले ऐसे गैर अंगे्रजीदां व्यक्ति’’ हैं जो देश के प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष पद तक पहुंचे हैं। 


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