क्यों ‘किस ऑफ लव’ समूह भेजने लगा सैनिटरी नैपकिन?

punjabkesari.in Saturday, Jan 03, 2015 - 06:25 PM (IST)

नई दिल्ली। नायाब किस ऑफ लव कैंपेन से चर्चा में आए समूह ने अब एक और चौंकाने वाला अभियान शुरू कर दिया है। किस ऑफ लव शुरू करने वाले अब मासिक धर्म को लेकर महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को मिटाना चाहते हैं। 
 
इसके लिए जो कैंपेन केरल में शुरू किया गया है कि उसका नाम है रेड अलर्ट: यू हैव गॉट अ नैपकिन। यानी खतरा- आपको नैपकिन मिला है। कोच्चि के कारखाने में महिलाओं के स्ट्रिप सर्च किए जाने की खबरों के बाद यह अभियान शुरू करने का फैसला किया गया है। 
 
ऐसा लगता है यह 2009 के पिंच चड्डी कैंपेन से प्रेरित है, जो मोरल पुलिसिंग के खिलाफ मंगलोर में शुरू किया गया था। रेड अलर्ट कैंपेन में आस्मा रबर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजर को ‘इस्तेमाल किया हुआ’ और बगैर इस्तेमाल किया हुआ सैनिटरी नैपकिन भेजा जा रहा है। दरअसल, इसी कंपनी में काम करने वाली 40 से अधिक महिलाओं की कपड़े उताकर तलाशी इसलिए ली गई थी ताकि पता चल सके कि किसने इस्तेमाल किया नैपकिन वहां छोड़ा था। 
 
यह मामला दिसंबर के दूसरे हफ्ते का था। लेकिन तब मैनेजर ने महिलाओं की तलाशी लेने वाली महिला सुपरवाइजर के खिलाफ कार्रवाई करने से मना कर दिया था। केरल राज्य महिला आयोग की ओर से हस्तक्षेप किए जाने पर 27 दिसंबर को पुलिस ने यह मामला दर्ज कर लियाऔर इसी के बाद विरोध बढ़ने लगा।  
 
द रेड अलर्ट फेसबुक पेज पर कैंपेन करने वाले युवाओं ने उस फैक्ट्री का पूरा पता लिखा है जहां सैनिटरी नैपकिन भेजा जा रहा है। फेसबुक पेज पर लिखा गया है कि कंपनी के अमानवीय कार्रवाई के लिए मैनेजिंग डायरेक्टर को इस्तेमाल किया हुआ या नया सैनिटरी नैपकिन भेजें और विरोध दर्ज कराएं। 
 
केरल की एक कैंपेनर माया लीला ने कहा कि कई लोग पहले ही कंपनी के पास नैपकिन भेजकर विरोध दर्ज करा चुके हैं। माया फिलहाल स्पेन में पीएचडी कर रही है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के साथ इसलिए भेदभाव नहीं होना चाहिए कि उनका शरीर अलग तरह से काम करता है। पुरुषवादी समाज को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए।
 
हालांकि यह कैंपेन सिर्फ अस्मा फैक्ट्री विवाद के लिए शुरू नहीं किया गया है बल्कि केरल में हाल ही के दिनों में ऐसी और भी घटनाएं हो चुकी है। कुछ ही दिन पहले एक मंदिर जा रही सरकारी बस से कुछ महिलाओं को इसलिए उतार दिया गया क्योंकि बस ड्राइवर को उस महिला के ''शुद्ध'' होने पर शक था। बस मंं सिर्फ उन्हीं महिलाओं को शामिल किया गया था जो मासिक धर्म से नहीं गुजर रही हो।

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