9 साल की अमायरा सुसाइड केस में CBSE रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, 45 मिनट मिन्नतें करती रही....
punjabkesari.in Friday, Nov 21, 2025 - 01:41 PM (IST)
नेशनल डेस्क: जयपुर और दिल्ली में हाल की घटनाओं ने स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्थिति पर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। जयपुर में 9 साल की छात्रा अमायरा ने स्कूल की चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। वहीं, दिल्ली में दसवीं कक्षा के छात्र शौर्य पाटिल ने मेट्रो स्टेशन से छलांग लगाकर आत्महत्या की। इन दोनों घटनाओं की साझा वजह यह रही कि बच्चों की बार-बार की गई शिकायतों और मानसिक तनाव के संकेतों को स्कूल प्रशासन ने गंभीरता से नहीं लिया।
जयपुर में अमायरा की घटना
CBSE की जांच समिति ने पाया कि अमायरा ने करीब 45 मिनट तक किए जाने की जानकारी दी, लेकिन स्कूल ने कोई कार्रवाई नहीं की। स्कूल प्रशासन ने सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया, ऊपरी मंजिलों पर सुरक्षा जाल नहीं लगाए और घटना स्थल पर फोरेंसिक सबूतों से छेड़छाड़ भी हुई।
Rajasthan: CBSE’s inquiry into the death of a 9-year-old student at Neerja Modi School in Jaipur found serious lapses in safety, child protection and school response. The report said the Class 4 student, who died after jumping from the fourth floor, had faced sustained bullying,…
— ANI (@ANI) November 21, 2025
जांच में सामने आए महत्वपूर्ण बिंदु:
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एंटी-बुलिंग कमिटी ने शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की।
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बाल सुरक्षा और POCSO नियमों का पालन नहीं हुआ।
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मानसिक तनाव के संकेत मिलने के बावजूद काउंसलिंग नहीं कराई गई।
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स्कूल में स्टाफ की अनुपस्थिति और अवैध फ्लोर संरचना ने खतरे को बढ़ाया।
अमायरा के माता-पिता ने स्कूल की एफिलिएशन रद्द करने और सख्त कार्रवाई की मांग की है।
दिल्ली में शौर्य पाटिल की मौत
दिल्ली के शौर्य पाटिल मानसिक रूप से तनाव में थे और टीचर्स के लगातार अपमान का सामना कर रहे थे। उनके क्लासमेट्स ने उनकी परेशानियों को स्कूल काउंसलर तक पहुंचाया, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। घटना वाले दिन शौर्य को स्कूल में डांटा गया और सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया। उनके पिता प्रदीप पाटिल ने बताया कि स्कूल ने केवल घटना के बाद मदद का आश्वासन दिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर सबक
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बच्चों की छोटी-छोटी बातें अनसुनी नहीं करनी चाहिए।
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स्कूलों में नियमित काउंसलिंग और मेंटल हेल्थ मॉनिटरिंग अनिवार्य हो।
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एंटी-बुलिंग नीतियों और सुरक्षा नियमों का पालन कड़ाई से होना चाहिए।
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टीचर्स और अभिभावकों को बच्चों के व्यवहार और मानसिक स्थिति पर ध्यान देना चाहिए।
ये दोनों घटनाएं यह दर्शाती हैं कि बच्चों की भावनाओं और शिकायतों की अनदेखी सिर्फ संवेदनहीनता नहीं, बल्कि जानलेवा भी साबित हो सकती है।
