ग्राऊंड रिपोर्ट: वोट देने में भी व्यापारी दृष्टिकोण!

punjabkesari.in Tuesday, Dec 12, 2017 - 10:22 AM (IST)

अहमदाबाद (अकु श्रीवास्तव): अहमदाबाद के सरदार पटेल समाज विज्ञान केन्द्र का सैंकड़ों एकड़ का वीरान परिसर इस बहस में उलझा है कि आपको कौन-सा गुजरात चाहिए। जी.एस.टी. वाला या 2002 के पहले वाला। पहले चरण की वोटिंग के बाद अब गुरुवार को  अंतिम चरण के लिए 93 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। देश-दुनिया में इन चुनावों की चर्चा है। वजह भी है। इन चुनावों से केवल यह फैसला ही नहीं होना कि राज्य की सत्ता की बागडोर किसके हाथ आएगी बल्कि गृह राज्य होने के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा भी इससे जुड़ी है। वहीं कांग्रेस की औपचारिक कमान संभालने जा रहे राहुल गांधी के लिए यह पहली अग्निपरीक्षा है। दशकों बाद कांग्रेस पूरे दमखम के साथ मैदान में है। राहुल गांधी नए तेवरों में नजर आ रहे हैं। सत्ता विरोधी लहर को हवा देने के लिए उन्होंने जमीनी मुद्दे उठाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने भावनात्मक मुद्दों से हवा का रुख अपने पक्ष में मोडऩे की कोशिश की है।   

राज्य में चुनाव प्रचार की शुरूआत से 3 मुद्दों की विशेष चर्चा रही-पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग, कारोबार पर नोटबंदी व जी.एस.टी. की मार और दलितों का उत्पीडऩ। राहुल गांधी ने इन मुद्दों को भुनाने की पुरजोर कोशिश की। उन्होंने गुड्स एंड सॢवसेज टैक्स (जी.एस.टी.) के लिए ‘गब्बर सिंह टैक्स’ का जुमला गढ़ा, जिसकी चर्चा समय के साथ तो कम हुई पर नोटबंदी-जी.एस.टी. राज्य में बड़े मुद्दे हैं क्योंकि उद्योग-धंधे यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। देश के कुल करघों में से करीब 30 फीसदी गुजरात में हैं। देश के कुल कपड़ा उत्पादन में इस प्रदेश की हिस्सेदारी एक-तिहाई और निर्यात में 60 फीसदी है। 

उद्यमियों का कहना है कि नोटबंदी और जी.एस.टी. ने कारोबार की हालत पतली कर दी। फैडरेशन ऑफ गुजरात वीवर्स एसोसिएशन का तो दावा है कि एक लाख से अधिक लोग बेरोजगार हो गए। इनमें छोटे उद्यमी से लेकर कामगार तक शामिल हैं। हालांकि बाद के दिनों में जी.एस.टी. की दरों में कटौती कर सरकार ने कारोबारियों के गुस्से को कम करने का प्रयास भी किया। वोट देने के सवाल को अहमदाबाद के कई कारोबारी इसे निवेश के तौर पर गिनाते हैं। अपना वजन कम करने की कोशिश में जुटे स्थानीय कारोबारी वरजू भाई पटेल इस बारे में कहते हैं कि वोट जिसे भी दें, पर यह तो देखना होगा कि वापस क्या मिलेगा। हमारी परेशानी जी.एस.टी. से है और वोट भी मैं उसी को दूंगा जो इस परेशानी को दूर कर सके।  साबुन के कारोबार से जुड़े हितेन घावरी कहते हैं कि काम-धंधा मंदा हुआ है। 

हालांकि कुछ परेशानियां तो कम हुई हैं परंतु खत्म नहीं हुईं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी मानते हैं कि यह बात कांग्रेसी भी मानते हैं कि वोटर सिर्फ  एक मुद्दे पर वोट नहीं डालता। सुरक्षा और वसूली और काम करने के माहौल भी बड़ा मुद्दा हैं। भाजपा शासन से पहले यही बड़ी ङ्क्षचता हुआ करती थी। जी.एस.टी. की तुलना में पहले का नुक्सान काफी ज्यादा बड़ा है। यह बात  दिल्ली में बैठकर कम यहां ज्यादा समझी जा सकती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे बिहार में लालू राज के बाद नीतीश राज में होता था। जब भी नीतीश संकट में होते लालू राज के अत्याचार का वॉल्यूम नीतीश कुमार और उनके कारिंदे बढ़ा देते और बिगड़ा माहौल फिर उनके पक्ष में हो जाता। यही तरकीब गुजरात में भी अपनाई जा रही है। बस देखना है कि असर कितना होना है।

वैसे गुजरात में पिछले दिनों आरक्षण आंदोलन की धमक पूरे देश में सुनाई दी। राज्य में पटेलों की सख्यां 12 से 15 फीसदी है और यही वजह है कि सभी दल इन्हें लुभाने के लिए प्रयत्नशील रहे हैं। वे कृषि क्षेत्र में तो अगुवा बने हुए हैं पर सरकारी सेवाओं में भागीदारी कम है। इनके आंदोलन की जड़ भी यही है। वहीं अनुसूचित जातियों की 7 फीसदी आबादी अब दलित उत्पीडऩ को लेकर मुखर है। इन्हीं मसलों को लेकर हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश जैसे युवा सत्ताधारी भाजपा को चुनौती दे रहे हैं। 

राहुल गांधी इन युवा चेहरों को साधने में सफल हुए पर भाजपा इनकी काट निकालने में लगी है। पटेल और दलित बिरादरी के कई दूसरे नेता भगवा खेमे में जा चुके हैं। इन सबसे अलग भावनात्मक मुद्दे हैं जिन्हें मोदी ने अपने तरीके से उठाकर विरोधी खेमे में खलबली मचा दी है। वह चाहे औरंगजेब राज्य का मामला हो या नीच शब्द का इस्तेमाल, इन पर मोदी के प्रहार के चलते ही कांग्रेस को अपने वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा।


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