ज्योति मल्होत्रा के बाद कई जासूस गिरफ्तार, जानें किस अदालत में चलती है इनकी सुनवाई
punjabkesari.in Thursday, Jun 05, 2025 - 03:47 PM (IST)

नेशनल डेस्क: पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख़्त रुख अपनाया और सिंधु जल समझौता रद्द कर दिया। उसी दौरान हरियाणा की ज्योति मल्होत्रा को जासूसी के आरोप में पकड़ा गया था। उनकी पूछताछ से निकले सुरागों पर काम करते हुए पुलिस ने अब पंजाबी यूट्यूबर जसबीर सिंह उर्फ जान महल को भी गिरफ़्तार कर लिया है। शुरुआती जांच में दोनों के पाकिस्तान तक पहुंचने वाले कनेक्शन की पुष्टि हुई है।
कैसे खुला पाकिस्तान कनेक्शन
पुलिस सूत्रों के मुताबिक ज्योति मल्होत्रा के डिजिटल उपकरणों से बरामद चैट, ई-मेल और वित्तीय लेन–देनों का विश्लेषण हुआ। इन रिकॉर्ड से पाकिस्तान स्थित नंबरों एवं सोशल मीडिया हैंडलों से लगातार संवाद का पता चला। उसी नेटवर्क से जुड़े खातों पर नज़र रखते हुए एजेंसियों ने जसबीर सिंह को ट्रैक किया। माना जाता है कि वह सैन्य ठिकानों और संवेदनशील प्रतिष्ठानों की वीडियो ब्लॉगिंग के बहाने तस्वीरें इकट्ठा करता था और उन्हें एन्क्रिप्टेड फ़ाइलों में विदेश भेजता था।
किस अदालत में होती है सुनवाई
जासूसी के केस संज्ञेय और गंभीर श्रेणी में आते हैं, इसलिए पुलिस को वारंट की ज़रूरत नहीं पड़ती। गिरफ्तारी के बाद आरोप पत्र आम तौर पर स्पेशल फास्ट-ट्रैक कोर्ट या नियुक्त सत्र अदालत (Designated Sessions Court) में दायर किया जाता है ताकि मामला जल्दी निपटे। आरोप सिद्ध होने पर दोषी हाईकोर्ट या सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है। पूरी प्रक्रिया—गिरफ्तारी से अंतिम अपील तक—औसतन 20 महीने में पूरी हो जाती है, लेकिन जटिल मामलों में समय बढ़ सकता है।
कानून क्या कहते हैं
भारत में जासूसी से निपटने के दो प्रमुख प्रावधान हैं—ऑफ़िशियल सीक्रेट्स एक्ट 1923 और भारतीय न्याय संहिता 2023। इनकी मुख्य धाराएं
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धारा 3 – रक्षा तथा गोपनीय सूचनाएँ शत्रु को सौंपने पर 14 साल तक कारावास, अत्यंत गंभीर परिस्थिति में आजीवन कारावास।
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धारा 4 – विदेशी एजेंटों से अनधिकृत संपर्क पर दो साल तक सजा।
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धारा 5 – गोपनीय कागज़ात लीक होने पर तीन साल तक कारावास।
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धारा 10 – कम‐गंभीर जासूसी गतिविधियों पर तीन साल या जुर्माना।
इन धाराओं के तहत सुनवाई बंद कक्ष (इन-कैमरा) में भी हो सकती है ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी सामग्री सार्वजनिक न हो।
सजा तय होने के मानदंड
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अपराध की गंभीरता – क्या लीक हुई सूचना से देश की सुरक्षा सीधी ख़तरे में आई।
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जानबूझकर या अनजाने में – आरोपी ने जानकारी स्वेच्छा से दी या धोखे में आकर।
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सबूतों की पुख़्तगी – डिजिटल लॉग, गवाह, फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट और बैंक ट्रेल।
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पुनरावृत्ति की आशंका – क्या आरोपी संगठन से जुड़ा है और आगे भी संवेदनशील जानकारियाँ दे सकता है।
गंभीर खतरा साबित होने पर अदालत अधिकतम सजा सुनाती है।
फास्ट-ट्रैक कोर्ट की प्रक्रिया
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पहला चरण – पुलिस 90 दिन में चार्जशीट दाखिल करती है।
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दूसरा चरण – गुप्त दस्तावेज़ों की जाँच जज के चैंबर में।
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तीसरा चरण – 30 दिन के भीतर नियमित गवाही शुरू।
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चौथा चरण – 6-8 महीने में फैसला।
तेज सुनवाई का मकसद यह है कि दोषी को जल्दी सजा मिले और निर्दोष बेवजह लंबे समय तक जेल में न रहे।