पति-पत्नी के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने दी गजब की सलाह- तलाक से पहले एक डिनर डेट तो बनती है
punjabkesari.in Tuesday, May 27, 2025 - 04:30 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 26 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने न सिर्फ न्यायालय की संवेदनशीलता को उजागर किया बल्कि यह भी दिखाया कि कानून के साथ-साथ रिश्तों को बचाने की पहल भी की जा सकती है। यह मामला एक फैशन उद्यमी महिला और उसके पति से जुड़ा है, जो तलाक की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और अपने तीन साल के बेटे की कस्टडी को लेकर भी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने एक ऐसी सलाह दी जो कोर्ट की चारदीवारी से बाहर भी चर्चा का विषय बन गई।
कॉफी पर बहुत कुछ सुधर सकता है- सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने दोनों पक्षों से कहा कि वो एक बार फिर आपस में बातचीत करें और कोशिश करें कि इस रिश्ते को पूरी तरह खत्म होने से पहले थोड़ी और कोशिश की जाए। जजों ने यहां तक कह दिया कि "हमारी कैंटीन इसके लिए ठीक नहीं है, लेकिन हम आपको एक और ड्रॉइंग रूम दे सकते हैं, जहां आप शांति से बात कर सकें। डिनर पर मिलिए, सिर्फ कॉफी पर भी बहुत कुछ बात बन सकती है।" इस बात को बेहद हल्के और मानवीय लहजे में कहकर कोर्ट ने यह संदेश देने की कोशिश की कि रिश्तों को खत्म करने से पहले एक बार दिल से कोशिश जरूर करनी चाहिए। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि दंपति के बीच चल रहे विवाद का सबसे बड़ा नुकसान उनके तीन साल के मासूम बेटे को हो रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि "आपका बच्चा कोई केस नहीं है, बल्कि एक मासूम इंसान है जिसकी परवरिश को सुरक्षित रखना दोनों की पहली जिम्मेदारी है।" इसलिए कोर्ट ने माता-पिता से अपील की कि वो अपने बीच के "अहंकार" को छोड़ें और अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए मिलकर सोचें। कोर्ट की यह लाइन न सिर्फ कानूनी सुनवाई का हिस्सा बनी, बल्कि हर उस कपल के लिए सीख बन गई जो रिश्तों में आई दरारों को हमेशा के लिए खत्म करने की ओर बढ़ रहे हैं। कोर्ट ने कहा, "जो हो गया, वह अब अतीत है। उसे कड़वी गोली की तरह निगल लीजिए और भविष्य के बारे में सोचिए।" जजों का यह कहना एक सशक्त संदेश था कि कभी-कभी रिश्तों को बचाने के लिए थोड़ा झुकना, थोड़ा समझौता करना जरूरी होता है।
अगली सुनवाई से पहले बातचीत का मौका
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई मंगलवार के लिए स्थगित करते हुए दोनों पक्षों से कहा कि वे इस दौरान एक-दूसरे से आमने-सामने मिलें, बातचीत करें और हो सके तो अपने रिश्ते को एक और मौका दें। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल बताती है कि अदालतें केवल फैसले नहीं सुनातीं, बल्कि समाधान भी सुझा सकती हैं।
कोर्ट की भाषा में छुपा एक नया दृष्टिकोण
जब कोर्ट ने हल्के अंदाज़ में कहा कि "हमारी कैंटीन शायद इतनी अच्छी न हो, लेकिन हम एक और ड्रॉइंग रूम दे सकते हैं" तो यह केवल मज़ाक नहीं था। इसमें एक गहरा संदेश छिपा था कि किसी भी रिश्ते को सुलझाने के लिए सही माहौल, सकारात्मक सोच और थोड़ा समय बहुत जरूरी होता है।