भारत को ‘धर्मशाला’ समझने की भूल न करें: सुप्रीम कोर्ट
punjabkesari.in Monday, May 19, 2025 - 07:55 PM (IST)

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत कोई "धर्मशाला" नहीं है जो पूरी दुनिया से आए शरणार्थियों को जगह देता रहे। कोर्ट ने कहा कि भारत को ‘धर्मशाला’ समझने की भूल न करें। यह टिप्पणी उस समय आई जब एक श्रीलंकाई नागरिक ने अपनी निर्वासन प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज कर दी और साफ कहा कि वह देश के कानून का उल्लंघन कर चुका है और उसे अब भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
कौन है याचिकाकर्ता?
यह व्यक्ति श्रीलंका का नागरिक है जिसे 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से कथित संबंधों के कारण गिरफ्तार किया गया था। LTTE एक उग्रवादी संगठन है जिसे भारत सरकार ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। 2018 में ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA के तहत दोषी पाया और उसे दस साल की सजा सुनाई। हालांकि, मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर सात साल कर दिया और जेल से रिहा होते ही देश छोड़ने का आदेश दिया।
क्यों मांगी सुप्रीम कोर्ट से राहत?
सजा पूरी होने के बाद यह व्यक्ति तीन साल से एक शरणार्थी शिविर में रह रहा है। उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि अगर उसे श्रीलंका वापस भेजा गया तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। उसने यह भी कहा कि वह वैध वीजा पर भारत आया था और अब उसकी पत्नी और बच्चे भारत में "बस" चुके हैं। उसका कहना था कि निर्वासन की प्रक्रिया में देरी हो रही है और उसे भारत में रहने की अनुमति दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने उसकी याचिका खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की- "क्या भारत दुनिया भर के शरणार्थियों की मेजबानी करने के लिए है? हम पहले से ही 140 करोड़ लोगों से जूझ रहे हैं। भारत कोई धर्मशाला नहीं है।" अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 — जिसमें बोलने की आज़ादी, यात्रा और रहने का अधिकार शामिल है — केवल भारतीय नागरिकों के लिए ही है।
संविधान और विदेशी नागरिकों के अधिकार
याचिकाकर्ता ने अपने अधिकारों की बात करते हुए संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का हवाला दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि:
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अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होता है।
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अनुच्छेद 21 के तहत "जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता" का अधिकार सभी को है, लेकिन यह अधिकार कानूनी प्रक्रिया के अनुसार सीमित किया जा सकता है।
इस व्यक्ति को कानून के मुताबिक हिरासत में लिया गया और सजा पूरी करने के बाद उसके निर्वासन का आदेश पहले से ही मौजूद था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर उसे अपने देश श्रीलंका में खतरा है तो वह किसी अन्य देश में शरण मांग सकता है। लेकिन भारत में बसने का उसके पास कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।