जहां 42 साल का दिन... 42 साल की रात! 84 साल का एक दिन, -224°C की ठंड... पलक झपकते आता है बुढ़ापा?
punjabkesari.in Monday, Jul 21, 2025 - 12:22 PM (IST)

नेशनल डेस्क: हमारा सौरमंडल रहस्यों से भरा हुआ है, लेकिन एक ग्रह ऐसा भी है, जो आकार में तो धरती से चार गुना बड़ा है, लेकिन ठंड में इसका कोई मुकाबला नहीं। -224 डिग्री सेल्सियस की जानलेवा सर्दी, दिन जो हफ्तों नहीं पूरे 84 साल में खत्म होता है, और एक झटका ऐसा जिसने इस ग्रह को 90 डिग्री से ज्यादा झुका दिया ---- ये कहानी है यूरेनस (Uranus) की।
यूरेनस, हमारे सौरमंडल का सातवां ग्रह 98 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है, यानी लगभग पूरी तरह अपनी करवट पर लेटा हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अरबों साल पहले पृथ्वी के आकार का कोई विशाल पिंड यूरेनस से टकराया था, जिसने इसे इस असामान्य स्थिति में धकेल दिया।इस विचित्र झुकाव के कारण यूरेनस के ध्रुवों पर दिन-रात का चक्र बेहद अनोखा हो गया है --- इसके एक ध्रुव पर लगातार 42 साल तक सूरज की रोशनी पड़ती है, जबकि दूसरा ध्रुव उतने ही समय तक अंधेरे में डूबा रहता है। हालांकि इस ग्रह का एक दिन केवल 17 घंटे 14 मिनट का होता है, लेकिन इसे सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में पूरे 84 पृथ्वी वर्ष लग जाते हैं। यानी जिस वक्त आप धरती पर पैदा होते हैं और बूढ़े हो जाते हैं, उस दौरान यूरेनस पर सिर्फ एक साल बीतता है।
इस ग्रह पर वक़्त जैसे थम जाता है, मौसम ऐसे बदलते हैं जैसे सदियों में कोई किताब पलटी जा रही हो। और अगर आप यहां किसी तरह ज़िंदा रह भी जाएं, तो सिर्फ एक दिन गुजारते-गुजारते आप बूढ़े हो जाएंगे। चलिए जानते हैं इस बर्फीले, रहस्यमय और चौंका देने वाले ग्रह के बारे में, जिसकी चाल भी सीधी नहीं, बल्कि टेढ़ी है --- बिल्कुल इसकी कहानी की तरह।
अनोखी बनावट और तापमान
यूरेनस को 'ice giant' यानी बर्फीला दानव कहा जाता है। इसका आकार पृथ्वी से चार गुना बड़ा है, और तापमान इतना कम (-224°C) है कि यह पूरे सौरमंडल का सबसे ठंडा ग्रह माना जाता है। इसकी सतह ठोस नहीं है, बल्कि गैसों और बर्फ की मोटी परतों से बना है, जिनमें पानी, मीथेन और अमोनिया शामिल हैं।
झुकी हुई धुरी का रहस्य
यूरेनस अपने अक्ष पर लगभग 98 डिग्री झुका हुआ है --- यानी यह लगभग पूरी तरह से 'लेटकर' सूरज की परिक्रमा करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अरबों साल पहले किसी बड़े पिंड की टक्कर ने इसकी धुरी को पूरी तरह पलट दिया। इस कारण इसके दोनों ध्रुवों पर 42-42 साल का दिन और रात चलता है।
खोज और नामकरण
यूरेनस की खोज 1781 में ब्रिटिश खगोलशास्त्री विलियम हर्शेल ने की थी। शुरू में इसे धूमकेतु समझा गया, लेकिन बाद में जर्मन वैज्ञानिक जोहान बोडे ने इसे ग्रह के रूप में प्रमाणित किया और इसका नाम ग्रीक पौराणिक देवता 'यूरेनस' के नाम पर रखा गया।
नीला रंग कैसे?
इसका अनोखा नीला-हरा रंग इसके वातावरण में मौजूद मीथेन गैस की वजह से है। मीथेन लाल रंग को सोख लेता है, जिससे नीला और हरा रंग अधिक उभरकर दिखाई देता है।
रिंग्स और चंद्रमा
यूरेनस के चारों ओर 13 रिंग्स हैं--- जिनमें से 9 बेहद पतली और धूल भरी रिंग्स हैं। इसके अलावा इसके पास 28 ज्ञात चंद्रमा हैं, जिनमें मिरांडा, टाइटेनिया, ओबेरोन, एरियल और अंब्रियल प्रमुख हैं।
वॉयेजर 2 की खोजें
1986 में नासा के वॉयेजर 2 मिशन ने यूरेनस के पास से गुजरते हुए इसकी पहली करीब से तस्वीरें भेजीं। उसने ये भी दिखाया कि इसका चुंबकीय क्षेत्र बेहद असामान्य है, जिसमें उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के बीच चुंबकीय शक्ति में भारी अंतर है।
अब भी बना है एक रहस्य
यूरेनस की उत्पत्ति, इसके झुकाव की असली वजह, और इसके अंदर छिपे संभावित रहस्य आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बने हुए हैं। आगामी अंतरिक्ष मिशन और टेलीस्कोप से जुड़ी नई खोजों से उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यूरेनस की गहराइयों से जुड़े और भी राज़ सामने आएंगे। यूरेनस केवल एक ग्रह नहीं, बल्कि अंतरिक्ष की उन रहस्यमय कहानियों में से एक है, जो हमें ब्रह्मांड की जटिलता और सुंदरता दोनों का एहसास कराती है।