श्रीमन नित्यानंद प्रभु के मंत्र शिष्य कहलाते हैं यह महापुरुष
punjabkesari.in Thursday, Jun 02, 2016 - 02:00 PM (IST)

श्रील वृंदावन दास ठाकुर जी ने परम पतित पावन श्रीनित्यानंद प्रभु की कृपा प्राप्त की थी, इसलिए आपको श्रीमन् नित्यानंद प्रभु का मंत्र शिष्य भी कहा जाता है। आपने 1457 शकाब्द में ''श्रीचैतन्य भागवत'' नामक अतुलनीय ग्रंथ की रचना की थी।
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी ने श्रीचैतन्य चरितामृत में लिखा है-
श्रीचैतन्य लीलार व्यास-दास वृंदावन ।
मधुर करिया लीला करिला रचन॥ (चै-चै-आ / 48)
अर्थात् श्रीवृंदावन दास ठाकुर सनातन धर्म के मूल गुरु श्रीकृष्ण द्वैपायन वेद व्यास जी के अवतार हैं। इस अवतार में आपने जो श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीला का वर्णन किया है उसे अति मधुर और अतुलनीय कहना होगा। ग्रंथ रचना के समय श्रीनित्यानंद प्रभु जी की लीला वर्णन करने में ही खो जाने के कारण श्रीवृंदावन दास ठाकुर जी ने श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की किसी-किसी लीला का सूत्र रूप में ही वर्णन किया है।
विशेषतः श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की अंतिम लीला असंपूर्ण रह गई। श्रील वृंदावन दास ठाकुर जी द्वारा जो सूत्र रूप में वर्णित है और श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की असंपूर्ण अंतिम लीला को ही श्रीचैतन्य चरितामृत में विस्तार रूप से वर्णन किया है।
ग्रंथ विस्तार भय छाड़िला ये ये स्थाने।
सेइ सेइ स्थाने किछु करिब ब्याख्याने॥ (चै-चै-आ / 49)
अतः श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु एवं श्रीमहाप्रभु की संपूर्ण लीलाओं के रसास्वादन के लिए हमें श्रील वृंदावन दास ठाकुर द्वारा रचित श्रीचैतन्य भागवत तथा श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी द्वारा रचित श्रीचैतन्य चरितामृत ग्रंथों को पढ़ना चाहिए।
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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