भारत-इसराईल संबंध: एशियाई क्षेत्र में शांति बनाए रखने की एक नई पहल

punjabkesari.in Friday, Jan 19, 2018 - 04:01 AM (IST)

हमारा भारत वैश्विक मंच पर एक इतिहास रचने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत और इसराईल एक-दूसरे के नजदीक आने से पूरी दुनिया को चरखा, पतंग और रोड शो के जरिए यह वैश्विक संदेश देते हैं कि हम विश्व में एक ताकत के रूप में कम नहीं हैं और किसी भी संकट की घड़ी का मुकाबला करने में सक्षम हैं। यह शत्रु को चेतावनी है और मित्र देशों को प्रेम की सौगात है। 

सच तो यह है कि भारत और इसराईल एक-दूसरे के पूरक हैं और देर से ही सही, कम-से-कम दोनों देश अपनी-अपनी जरूरतों के मुताबिक विकास और शांति के पायदान पर मिलकर चलेंगे। याद रहे कि इसराईल के पास अग्रिम कतार के हथियारों की तकनीक और अपने 9 सैटेलाइट हैं जो वह किसी भी देश से सांझा नहीं करता है। उसने एक साथ 17 मुस्लिम देशों के हमले को भी नकारा बना दिया और अपना लोहा मनवाया। आज चीन और भारत जैसे मुल्क भी उसकी डिफैंस तकनीक को लेने के कायल हैं और लेन-देन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर जैविक खेती की तरफ उसकी तकनीक कम पानी से अधिकतम फसल ने भी पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है और इसमें वह भारत की तकनीकी सहायता कर रहा है। 

यह वक्त का तकाजा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इसराईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की दोस्ती और रणनीति की पहल संपूर्ण विश्व के लिए एक कूटनीतिक झटका है और इसे कई मुल्कों द्वारा पचा पाना कठिन है। इधर दूसरी ओर भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट चाहिए तो उसे मुस्लिम देशों का भी अधिक से अधिक समर्थन चाहिए तथा इसके लिए उसे एक-दूसरे देशों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बनाने का रास्ता अपनाना होगा। इस तरह नरेंद्र मोदी अपनी रणनीति और समझ से एकदम ठीक ट्रैक पर चल रहे हैं और उसके सुखद परिणाम भी तेजी से सामने आ रहे हैं। 

भारत और इसराईल के मध्य जो 9 ऐतिहासिक समझौते हुए हैं उनमें साइबर सुरक्षा, तेल और गैस, सांझा फिल्म निर्माण, होम्योपैथी में अनुसंधान, अंतरिक्ष, परस्पर निवेश, मैटल एयर बैटरी तकनीक, सोलर थर्मल तकनीक तथा एयर ट्रांसपोर्टेशन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं। यह गौरतलब है कि दोनों देश एक-दूसरे की जरूरत के अनुरूप विकास के पथ पर अग्रसर होना चाहते हैं। इसी भावना से ये महत्वपूर्ण समझौते किए गए हैं जिनका भविष्य में दोनों देशों के क्रांतिकारी विकास में अहम योगदान होगा, इसमें संदेह नहीं। 

उल्लेखनीय है कि इसराईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत में अपनी गुजरात यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि मोदी युवा भारत में क्रांतिकारी सार्थक बदलाव ला रहे हैं, पूरे भारत को दुनिया के शक्तिशाली देशों की श्रेणी में पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने अहमदाबाद जिले के बावला इलाके के देव धोलेरा गांव में नवाचार तथा नई पीढ़ी के उद्यमियों को बढ़ावा देने वाली संस्था ‘आई क्रिएट’ के औपचारिक उद्घाटन के मौके पर मोदी की मौजूदगी में यह बात कही। उन्होंने कहा कि आई पैड और आई पाड के बाद अब दुनिया को आई क्रिएट को भी  जानने की आवश्यकता है जिसकी नींव मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में रखी थी। 

इस अवसर पर मोदी ने कहा कि 100 साल पहले इसराईल के हाइफा शहर की मुक्ति के लिए लड़ी गई लड़ाई में अनेक भारतीय सैनिक भी शामिल थे जिनमें कई गुजराती भी थे। नेतन्याहू ने अपने अंग्रेजी में दिए गए भाषण को ‘जय हिंद, जय भारत, जय इसराईल’ कह कर विराम दिया जो इस बात का संकेत देते हैं कि हम भारतवासी तथा इसराईलवासी कदम से कदम मिलाकर चलेंगे और एक बेहतर भविष्य बनाएंगे। पिछले साल भारत-इसराईल संबंधों को नई दिशा तब मिली जब भारत और इसराईल के बीच हुए महत्वपूर्ण  समझौते से यह मित्रता मजबूत संबंधों में बदल गई। नरेंद्र मोदी जब इसराईल दौरे के आखिरी दिन हाइफा शहर पहुंचे थे तो उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में काम आए 44 भारतीय सैनिकों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। तब नरेंद्र मोदी सैनिकों से भी मिले। यह ऐतिहासिक अवसर था जब यहां किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने श्रद्धांजलि दी हो। 

इतिहास के पन्ने बताते हैं कि 100 साल पहले भारतीय सैनिकों ने इस शहर को तुर्कों से मुक्त कराया था। उनके पास केवल तलवार और भाले ही थे और वे तुर्की सेना पर टूट पड़े थे। शत्रु सेना के पास बंदूकें और मशीनगन्स थीं। फिर भी भारतीय सैनिकों ने साहस नहीं छोड़ा, युद्ध आखिरकार जीत ही लिया। भारतीय घुड़सवार सैनिकों की यह बहादुरी इसराईल के स्कूलों में भी पढ़ाई जाती है। असल में भारत के सैनिकों ने हाइफा को तुर्की के ओटोमन साम्राज्य से आजाद कराया था। इतिहास बताता है कि तब 400 साल से इस पर तुर्की का कब्जा था। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने बहाई समुदाय के आध्यात्मिक नेता अब्दुल-बाहा को भी कुशलता से बचाया था। 

भारत में उस वक्त अंग्रेजों की हुकूमत थी और उन्होंने भारत की 3 रियासतों- जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद के घुड़सवार सैनिकों को जनरल एडमंड एलेन्बी की अगुवाई में वहां लडऩे भेजा था। कैसा रोमांचकारी है हमारा साहस भरा इतिहास, जिस पर संपूर्ण विश्व गर्व करता है। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस की हार के बाद भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आते ही भारत और इसराईल के मध्य दोस्ती और सहयोग की भावना जागृत हुई और दोनोंं की इस्लामिक कट्टरपंथी के प्रति एक जैसे भाव एवं मानसिकता होने की वजह से और मध्य पूर्व में यहूदी समर्थक नीति की वजह  से भारत और इसराईल के सम्बन्ध मजबूत हुए। यकीनन आज इसराईल, रूस के बाद भारत का सबसे बड़ा सैनिक सहायक और निर्यातक है। 

मौजूदा वैश्विक दौर देखें तो नेपाल में चीन की प्रेतछाया का निरंतर प्रसार भी चिंता का विषय है। उधर बंगलादेश और म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों की समस्या भारत के लिए भी सिरदर्द बनी हुई है। श्रीलंका के चीन की ओर झुकाव की वजह से हमारी समुद्री सीमा पर चीन के जहाजों की अक्सर अनचाही उपस्थिति से भी माहौल अशांत बना रहता है। उधर अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा पर चीन की बेवजह दखल तथा बार-बार डोकलाम, रास्तों और चौकियों को लेकर छोटे-छोटे विवाद आए दिन बने ही रहते हैं। 

गौरतलब है कि बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में  अंदरूनी विवाद के चलते उसमें चीन की दिलचस्पी वहां के संसाधनों का उपयोग करना और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बलूचिस्तान के आंतरिक आजादी के आंदोलन को समर्थन देना पानी में आग लगाने जैसा है। अब वहां नरेंद्र मोदी की जय-जयकार हो रही है। इससे चीन भी बौखलाया हुआ है। यह मोदी की दूरगामी कूटनीतिक सूझ-बूझ है कि आज पाकिस्तान वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ गया है। यहां तक कि अमरीका ने भी उसकी मदद को रोक दिया है।

अमरीका भी समझ गया है कि उसे ताजा वैश्विक परिवेश में भारत का साथ जरूरी है और भविष्य में भारत की अनदेखी करना मुश्किल है, इसे चीन के साथ संतुलित रखने में सहज महसूस करेगा। भारत और इसराईल की दोस्ती सही मायनों में एशिया में शांति बनाए रखने में एक नई पहल के द्वार खुलने के रूप में देखी जा रही है जो चीन और अमरीका को भी संतुलित रहने का संदेश देती है, वहीं पाकिस्तान को भी सावधान रहने का पैगाम देती है।-देवराज सिरोहीवाल


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