जानिए, भविष्य में कौन-से रोग आपको देने वाले हैं कष्ट
punjabkesari.in Wednesday, Aug 12, 2015 - 08:41 AM (IST)

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोग हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का फल हैं। कुंडली में षष्ठम भाव को रोग कारक व शनि को रोग जनक ग्रह माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी क्षेत्र या विद्या ऐसी नहीं है,जिसमें ज्योतिष अपना दखल न रखता हो। लगभग हर समस्या के निदान की क्षमता ज्योतिष विज्ञान में पाई गई है। रोगों का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक रोग उसके साथ चलते हैं। ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं जिसने जीवन में कभी न कभी रोग का सामना न किया हो।
जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों और इनकी दशा-महादशा में किन-किन रोगों की उत्पत्ति होती है, यह बताने की क्षमता ज्योतिष शास्त्र में है। यही कारण है कि ज्योतिष ‘वैद्यो निरंतरम्’ की परपरा हमारे देश में पुरातनकाल से चली आ रही है। जन्म कुंडली के आधार पर रोगों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
आहार-विहार की अनियमितता एवं प्रकृति-विरोधी चाल-चलन के कारण रोग उत्पन्न होते हैं और यदि मनुष्य इन पर समुचित नियंत्रण रखे तो वह स्वस्थ एवं दीर्घायु बन सकता है। ऐसा मानने वालों की संख्या कम नहीं है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र की मान्यता इससे कुछ भिन्न है। केवल आहार-विहार की अनियमितता के कारण रोगोत्पत्ति नहीं होती।
जन्मकुंडली, प्रश्नजन्म कुंडली एवं ग्रह गोचर से रोगों का कारण एवं स्वरूप जाना जा सकता है। इसी कारण जातक की जन्मकुंडली का अध्ययन करके भविष्य में उसे कौन-से रोग कष्ट देने वाले हैं इसकी जानकारी मिलती है।
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के संयोग युति प्रत्युति जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति एवं उन ग्रहों के परस्पर संबंधों को योग कहा जाता है। ग्रह, स्थान, राशि एवं भाव के आधार पर बनने वाले योग सात हैं-1. स्थान से, 2. भाव से, 3. ग्रहों से, 4. स्थान भाव एवं ग्रहों से, 5. स्थान एवं भाव से, 6. भाव एवं ग्रहों से तथा 7. स्थान एवं ग्रहों से।
स्थान से बनने वाले रोगकारक ग्रह शत्रु राशि तथा लग्न, होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश , नवमांश, दशमांश, द्वादशांश, षोड्शांश, त्रिशांश, षष्ठांश, पारिजात आदि को ग्रहों का स्थान कहते हैं।
भावों से बनने वाले योग : जन्मकुंडली में बारह भाव होते हैं। भावों का प्रारंभ लग्न से होता है। बारह भावों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं 1. तनु, 2. धन, 3. सहज, 4. सुख, 5. पुत्र, विद्या, प्रेम, 6.रोग, शत्रु, 7. जाया, पति, पत्नी, सांझेदारी, 8. मृत्यु, 9. धर्म-पिता, 10. कर्म, 11. आय तथा 12. व्यय।
ग्रहों से बनने वाले योग : ज्योतिष शास्त्र में शुभ-अशुभ फलदायक कुल नौ ग्रह हैं। 1. सूर्य, 2. चंद्र, 3. मंगल, 4. बुध, 5. बृहस्पति, 6. शुक्र, 7. शनि, 8. राहु, 9. केतु। इन ग्रहों से बनने वाले योगों को योग कहते हैं। रोग विकार के संबंध में कौन-सा ग्रह किस तत्व का है? उसका कद-रंग कैसा है? मानव शरीर पर प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में विस्तारपूर्वक विचार किया गया है। मानव शरीर में भी समुद्र के जल के अनुपात के बराबर ही जल है। अत: उस जल पर भी पूर्णमासी के चंद्र, पूर्ण चंद्र एवं अमावस्या के चंद्र का भी विशेष प्रभाव पड़ता है। अथ: जो व्यक्ति कृष्ण पक्ष में पैदा होते हैं, उनमें हृदय रोग आमतौर पर होता है। जबकि शुक्ल पक्ष में जन्मे व्यक्ति कम से कम इस हृदय रोग के शिकार होते हैं।
बहुत से जातकों की जन्म कुंडलियों में शनि, राहु एवं केतु जैसे पापी ग्रहों का दुष्प्रभाव पाया जाता है। यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा इन पापी ग्रहों से दूषित हो रहा हो तब भी चंद्रमा की शक्ति क्षीण नहीं होती है परंतु पाप पीड़ित चंद्रमा से संबंधित चीजों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूप उस व्यक्ति को हृदय रोग हो सकता है, क्योंकि हृदय रोग में चंद्रमा नीच या दूषित होता ही है।
जिस प्रकार सूर्य दिन का स्वामी है, उसी प्रकार रात्रि का स्वामी शनि होता है, इसीलिए रात्रि के समय शयन करते समय पैर दक्षिण तथा आग्नेय दक्षिण-पूर्व कोण की तरफ करना अत्यधिक अशुभ माना गया है क्योंकि दिन के समय मस्तिष्क ने कार्य किया, जब सूर्य ने सहायता प्रदान की और रात्रि के समय आत्मा ने कार्य संभाला, तब चंद्र ने सहायता की।
वैसे तो चंद्र कर्क राशि का स्वामी है,और हृदय काल पुरुष में कर्क राशि के रूप में जाना जाता है इसलिए शरीर का जो भी अंग दूषित होगा, वह उस कारक ग्रह के दूषित या नीच होने के कारण ही होगा। अत: चंद्र जब भी नीच का हो रहा हो अथवा चंद्रमा पापी ग्रहों राहु या केतु द्वारा कमजोर या प्रदूषित हो गया हो, तब हृदय रोग की संभावना होती है।
वैसे भी हृदय रोग चंद्रमा के दूषित या कमजोर होने पर ही होता है। अत: इस रोग के रोगी को चंद्रमा को शुभ रखने का सदैव प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए सोमवार के दिन ॐ नम: शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। अर्जुन की छाल का काढ़ा पिएं तथा नशीले पदार्थों के सेवन से बचने का प्रयत्न करें।
-महर्षि डा. पं. सीताराम त्रिपाठी ‘शास्त्री’
रोगों के ज्योतिषीय योग और उपचार