33 साल बाद फिर होगा बड़ा धमाका, ट्रंप करवाने जा रहे हें परमाणु बम टेस्ट! जानें वजह
punjabkesari.in Friday, Oct 31, 2025 - 06:15 PM (IST)
नेशनल डेस्क : अमेरिका एक बार फिर अपनी परमाणु ताकत का प्रदर्शन करने की तैयारी में जुट गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) को जल्द से जल्द न्यूक्लियर टेस्ट शुरू करने का आदेश दिया है। इस कदम का उद्देश्य चीन और रूस जैसी परमाणु शक्तियों के बराबर अपनी क्षमता को प्रदर्शित करना है।
33 साल बाद हो सकता है फिर टेस्ट
अमेरिका ने आखिरी बार 23 सितंबर 1992 को परमाणु परीक्षण किया था, जिसका नाम 'डिवाइडर (Divider)' रखा गया था। यह उसका 1,030वां न्यूक्लियर टेस्ट था। यह परीक्षण नेवादा रेगिस्तान की रेनियर मेसा पहाड़ियों के नीचे करीब 2,300 फीट गहराई में किया गया था, ताकि रेडिएशन का असर बाहर न पहुंचे। इस विस्फोट की ताकत इतनी जबरदस्त थी कि नीचे की चट्टानें पिघल गईं और जमीन करीब एक फुट ऊपर उठकर फिर नीचे धंस गई। आज भी उस स्थान पर लगभग 150 मीटर चौड़ा और 10 मीटर गहरा गड्ढा मौजूद है, जो उस धमाके की याद दिलाता है।
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न्यूक्लियर टेस्ट कैसे होते हैं?
परमाणु परीक्षण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं —
- हवा में
- जमीन के नीचे
- समुद्र के भीतर
1996 में हुए CTBT (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty) के बाद ज़्यादातर देशों ने वायुमंडलीय और समुद्री परीक्षण बंद कर दिए। अब अधिकतर भूमिगत (Underground) या सिमुलेशन टेस्ट किए जाते हैं, ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।
दुनिया में हो चुके हैं 2000 से ज्यादा टेस्ट
1945 से अब तक दुनिया में 2000 से अधिक परमाणु परीक्षण हो चुके हैं। इनमें अमेरिका, रूस (पूर्व सोवियत संघ), ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे देश शामिल हैं।

परमाणु परीक्षण का उद्देश्य
न्यूक्लियर टेस्ट का मकसद किसी देश की सैन्य शक्ति दिखाना नहीं बल्कि वैज्ञानिक जांच करना होता है — जैसे बम की डिजाइन, शक्ति, सुरक्षा और विश्वसनीयता का मूल्यांकन। इसे ऐसी जगहों पर किया जाता है जो आबादी से दूर हों — जैसे रेगिस्तान, समुद्री द्वीप या भूमिगत स्थान।
टेस्ट से पहले की तैयारियां
परीक्षण से 24 से 48 घंटे पहले पूरा इलाका खाली करा दिया जाता है। वायुसेना की निगरानी बढ़ा दी जाती है और रेडिएशन मॉनिटरिंग टीमें तैनात होती हैं। वैज्ञानिक और अधिकारी करीब 5 से 10 किलोमीटर दूर बने बंकरों में चले जाते हैं। वहां मोटी दीवारें, CCTV कैमरे और ऑक्सीजन सप्लाई की सुविधा होती है।
विस्फोट कैसे किया जाता है
सभी तैयारियों के बाद इलेक्ट्रॉनिक ट्रिगर से विस्फोट किया जाता है। इसमें प्लूटोनियम को संकुचित कर “क्रिटिकल मास” तक पहुंचाया जाता है, जिससे चेन रिएक्शन शुरू होती है। यह प्रक्रिया लाखों डिग्री तापमान और तेज रोशनी पैदा करती है, लेकिन चूंकि यह भूमिगत होती है, इसलिए सतह पर सिर्फ हल्का भूकंप जैसा कंपन महसूस होता है।
टेस्ट के बाद की प्रक्रिया
विस्फोट के तुरंत बाद सेंसर डेटा सुपरकंप्यूटर तक भेजते हैं, जिससे हथियार की ताकत का विश्लेषण किया जाता है। कुछ घंटे बाद रोबोट और ड्रोन वहां भेजे जाते हैं जो मिट्टी और हवा के नमूने लेकर रेडिएशन लेवल की जांच करते हैं। इसके बाद उस क्षेत्र को सील कर दिया जाता है और कई महीनों तक पर्यावरण की निगरानी (Monitoring) जारी रहती है।
