नेपाल ने 2 साल की मासूम को नई जीवित ‘कुमारी देवी' के रूप में चुना, जानें कैसी होगी अब बच्ची की जिंदगी
punjabkesari.in Tuesday, Sep 30, 2025 - 07:33 PM (IST)

International Desk: नेपाल की नयी जीवित देवी के रूप में चुनी गई दो वर्षीय बच्ची को देश के सबसे लंबे और सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार के दौरान मंगलवार को काठमांडू की एक गली में स्थित उनके घर से परिवार के सदस्य मंदिर ले गए। दो वर्ष और आठ महीने की उम्र में आर्यतारा शाक्य को नयी कुमारी या "कुमारी देवी" के रूप में चुना गया, जो उस वर्तमान कुमारी का स्थान लेंगी जिसे परम्परा के अनुसार यौवन प्राप्त करने पर सामान्य इंसान माना जाता है। हिंदू और बौद्ध दोनों ही जीवित देवियों की पूजा करते हैं। इन बच्चियों का चयन दो से चार साल की उम्र के बीच किया जाता है और उनकी त्वचा, बाल, आंखें और दांत बेदाग़ होने चाहिए।
उन्हें अंधेरे से डरना नहीं लगना चाहिए। धार्मिक उत्सवों के दौरान, जीवित देवी को भक्तों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर घुमाया जाता है। वे हमेशा लाल वस्त्र पहनती हैं, बालों में चोटी बांधती हैं और माथे पर "तीसरी आंख" अंकित होती है। मंगलवार को परिवार, मित्रों और भक्तों ने शाक्य की काठमांडू की सड़कों पर सवारी निकाली, जिसके बाद उन्हें मंदिर के महल में प्रवेश कराया गया, जो कई वर्षों तक उनका घर रहेगा। भक्तों ने कन्याओं के चरण स्पर्श करने के लिए कतारों में खड़े होकर उन्हें फूल और धन भेंट किया। नयी कुमारी बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति सहित भक्तों को आशीर्वाद देंगी।
Two-year-old Aryatara Shakya, the newly selected Living Goddess Kumari, is carried by family members to the Kumari Residence at Basantapur Darbar Square on Tuesday. She succeeds outgoing Kumari Trishna Shakya, continuing the centuries-old Newar tradition.
— Nepali Times (@NepaliTimes) September 30, 2025
Photos: SUMAN NEPALI pic.twitter.com/sUnwgJyxwg
आर्यतारा शाक्य के पिता अनंत शाक्य ने कहा, "कल तक वह मेरी बेटी थी, लेकिन आज वह देवी है।" उन्होंने कहा कि आर्यतारा के जन्म से पहले ही संकेत मिल रहे थे कि वह देवी बनेगी। अनंत ने कहा, "गर्भावस्था के दौरान मेरी पत्नी ने सपना देखा था कि वह एक देवी है और हम जानते थे कि वह एक बहुत ही खास इंसान बनने वाली है।" पूर्व "कुंवारी देवी" तृष्णा शाक्य, जो अब 11 वर्ष की हो चुकी हैं, अपने परिवार और समर्थकों द्वारा उठायी गयी पालकी पर सवार होकर पिछले द्वार से रवाना हुईं। 2017 में वह जीवित देवी बनी थीं। मंगलवार को दशईं का आठवां दिन है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का 15 दिवसीय उत्सव है। इस दौरान कार्यालय और स्कूल बंद रहते हैं और लोग अपने परिवारों के साथ जश्न मनाते हैं।
कुमारी देवियां एकांत जीवन जीती हैं। उनके कुछ ही चुनिंदा सहपाठी होते हैं और उन्हें साल में केवल कुछ ही बार त्योहारों पर बाहर जाने की अनुमति होती है। पूर्व कुमारी देवियों को सामान्य जीवन में ढलने, घर के काम सीखने और नियमित स्कूल जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। नेपाली लोककथाओं के अनुसार, जो पुरुष पूर्व कुमारी देवियों से विवाह करते हैं, उनकी मृत्यु कम उम्र में हो जाती है, और कई लड़कियां अविवाहित रह जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों में, परंपरा में कई बदलाव हुए हैं और अब पूर्व कुमारी देवियों को मंदिर प्रांगण में निजी शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त करने और एक टेलीविजन सेट रखने की अनुमति है। सरकार अब सेवानिवृत्त कुमारी देवियों को मासिक पेंशन भी देती है।