अमेरिका की ''लोकतंत्र डिप्लोमेसी'' खिलाफ चीन-रूस ने खोला मोर्चा, ड्रैगन ने ताइवान पर निकाली भड़ास
punjabkesari.in Monday, Nov 29, 2021 - 06:21 PM (IST)
इंटरनेशनल डेस्कः अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा लोकतंत्र पर करवाए जा रहे वर्चुअल सम्मेलन के खिलाफ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादमिर पुतिन ने संयुक्त रूप से मोर्चा खोल दिया है। हालांकि, इस सम्मेलन को लेकर चीन शुरू से अमेरिका की निंदा करता रहा है, लेकिन अब चीन के इस विरोध में रूस भी शामिल हो गया है। राष्ट्रपति बाइडेन ने 'लोकतंत्र डिप्लोमेसी' सम्मेलन के लिए करीब 110 लोकतांत्रिक देशों को न्यौता दिया है। इस बैठक में ताइवान को भी आमंत्रित किया गया है लेकिन रूस और चीन को नहीं बुलाया गया है। इस डेमोक्रेसी कार्ड के जरिए अमेरिका ने चीन को बड़ा संदेश दिया है।
दरअसल, चीन और रूस का अमेरिकी विरोध जगजाहिर है। प्रो. हर्ष वी पंत के अनुसार अमेरिका के विरोध में चीन और रूस का एक हो जाना कोई हैरानी की बात नहीं है। शीत युद्ध के बाद अमेरिका से रणनीतिक रूप से निपटने के लिए चीन और रूस का गठबंधन एक मजबूरी का मामला है। शीत युद्ध में स्थितियां एकदम उलट थी। उस वक्त पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बीच चीन कोई फैक्टर नहीं था। अक्सर कई मामलों में चीन की भूमिका तटस्थ होती थी। कई बार चीन सोवियत संघ के खिलाफ रहा है। शीत युद्ध और उसके बाद स्थितियों में बहुत बदलाव आया है।
दरअसल, चीन महाशक्ति बनने की फिराक में है। इससे चीन का अमेरिका से सीधे टकराव होता है। शीत युद्ध के पहले चीन और अमेरिका के सभी विवादित मुद्दे दबे हुए थे। फिर चाहे वह ताइवान का मामला हो या हांगकांग का दक्षिण पूर्व एशिया हो या प्रशांत महासागर के सभी मामले दबे हुए थे। हाल के वर्षों में अमेरिका और रूस के बीच तनाव बढ़ा है। दरअसल, सोवियत संघ के विखंडन के बाद रूस कमजोर हुआ है। रूस यह जानता है कि चीन के सहयोग के बिना अमेरिका को रणनीतिक रूप से चुनौती नहीं दे सकता है। यही स्थिति चीन की भी है। चीन की क्षमता अभी इतनी नहीं है कि वह अकेले अमेरिका को टक्कर दे सके। ऐसे में चीन भी रूस का साथ चाहता है। रूस और चीन भले ही एक कम्युनिस्ट देश हो, लेकिन शीत युद्ध के समय दोनों में निकटता नहीं रही है।