आखिर क्यों दुनिया का कोई भी देश इस जमीन को नहीं अपनाना चाहता? खुद का झंडा गाड़ बन सकते हैं राजा
punjabkesari.in Sunday, Dec 28, 2025 - 11:06 AM (IST)
इंटरनेशनल डेस्क: धरती पर मौजूद देशों और उनकी सीमाओं के बीच एक ऐसी भी जगह है, जिस पर आधिकारिक रूप से किसी भी देश का शासन नहीं है। न वहां जाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत होती है, न वीजा की बाध्यता लागू होती है और न ही तकनीकी रूप से किसी सरकार का कानून वहां प्रभावी है। इस अनोखी जगह का नाम बीर ताविल है। यह अफ्रीका महाद्वीप का एक बंजर और निर्जन रेगिस्तानी इलाका है, जो आधुनिक विश्व के राजनीतिक नक्शे से लगभग बाहर ही माना जाता है।
बीर ताविल क्या है और कहां स्थित है?
बीर ताविल करीब 2,060 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला एक रेगिस्तानी इलाका है। यह क्षेत्र मिस्र और सूडान की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के बीच स्थित है। आमतौर पर सीमावर्ती इलाकों पर दो या उससे अधिक देशों के बीच विवाद देखने को मिलता है, लेकिन बीर ताविल इस मामले में बिल्कुल अलग है। इस क्षेत्र पर न तो मिस्र का शासन है और न ही सूडान का। यहां कोई शहर नहीं है, कोई स्थायी आबादी नहीं रहती और न ही किसी तरह की सरकारी व्यवस्था मौजूद है।
कोई भी देश बीर ताविल पर दावा क्यों नहीं करता?
बीर ताविल पर किसी देश के दावे के अभाव की जड़ें औपनिवेशिक काल के सीमा विवाद में छिपी हैं। वर्ष 1899 में ब्रिटिश शासन के दौरान मिस्र और सूडान के बीच एक सीधी रेखा के आधार पर सीमा तय की गई थी। इस सीमा के अनुसार बीर ताविल सूडान के हिस्से में आता था। इसके बाद 1902 में एक संशोधित प्रशासनिक सीमा बनाई गई, जिसके तहत बीर ताविल को मिस्र के प्रशासनिक नियंत्रण में रखा गया।
आज स्थिति यह है कि मिस्र 1899 की सीमा रेखा को वैध मानता है, जबकि सूडान 1902 की प्रशासनिक सीमा को सही ठहराता है। दोनों देश पास के हलायिब ट्रायंगल क्षेत्र पर दावा करते हैं, जो संसाधनों से भरपूर एक महत्वपूर्ण तटीय इलाका है। ऐसे में यदि मिस्र या सूडान बीर ताविल पर दावा करता है, तो हलायिब ट्रायंगल पर उसका कानूनी दावा कमजोर पड़ सकता है। इसी वजह से दोनों देश बीर ताविल से दूरी बनाए हुए हैं।
कुछ लोगों ने देश बनाने की कोशिश भी की
बीर ताविल की यह कानूनी शून्यता कई साहसी लोगों और सपने देखने वालों को आकर्षित करती रही है। वर्ष 2014 में एक अमेरिकी नागरिक जेरेमिया हीटन ने बीर ताविल पहुंचकर वहां झंडा गाड़ा और खुद को “किंगडम ऑफ नॉर्थ सूडान” का शासक घोषित कर दिया। बताया गया कि उन्होंने यह कदम अपनी बेटी को राजकुमारी बनाने के उद्देश्य से उठाया था।
इसी तरह 2017 में भारतीय खोजकर्ता सुयश दीक्षित ने भी बीर ताविल जाकर वहां झंडा फहराया और उस क्षेत्र पर अपना दावा पेश किया। इन घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सुर्खियां बटोरीं, लेकिन इन दावों को न तो किसी देश की सरकार ने और न ही संयुक्त राष्ट्र ने कभी मान्यता दी।
देश घोषित करना इतना आसान नहीं
अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार किसी क्षेत्र पर झंडा गाड़ देना या खुद को शासक घोषित कर देना ही किसी देश की स्थापना नहीं कहलाता। किसी देश के अस्तित्व के लिए स्थायी आबादी, स्पष्ट सीमाएं, कार्यशील सरकार और अंतरराष्ट्रीय मान्यता का होना अनिवार्य है। बीर ताविल इन सभी शर्तों पर खरा नहीं उतरता, यही कारण है कि यह इलाका आज भी दुनिया का एक दुर्लभ “नो मैन्स लैंड” बना हुआ है।
