''इधर कुआं - उधर खाई'', ईरान-इजरायल जंग बनी ट्रंप के गले की हड्डी, अब क्या करेगा अमेरिका?
punjabkesari.in Friday, Jun 20, 2025 - 05:46 PM (IST)

नेशनल डेस्क : अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी पारी को आज छह महीने पूरे हो चुके हैं। लेकिन इन छह महीनों में उन्होंने जिस तरह से वैश्विक मोर्चों पर कमजोर स्थिति दिखाई है, उससे उनकी अंतरराष्ट्रीय साख को झटका लगा है। और अब जब इजरायल और ईरान के बीच युद्ध भड़क चुका है, तो ट्रंप के सामने ऐसी स्थिति आ खड़ी हुई है, जिसे न वे टाल सकते हैं और न ही पूरी तरह से स्वीकार कर सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर ट्रंप की असफलताएं
ट्रंप ने सत्ता संभालते ही दावा किया था कि वह अमेरिका को फिर से वैश्विक शक्ति बनाएंगे। लेकिन पहले ही छह महीने में:
- टैरिफ वॉर का कोई स्पष्ट नतीजा नहीं निकला,
- रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की मध्यस्थता विफल रही,
- यूरोपीय यूनियन में अमेरिका की साख गिरती चली गई,
- भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाना ट्रंप को पड़ा भारी
और अब, इजरायल-ईरान युद्ध ने ट्रंप की विदेश नीति को सबसे कठिन मोड़ पर ला खड़ा किया है।
ट्रंप की रणनीतिक दुविधा: इधर कुआं, उधर खाई
इजरायल ने ईरान पर आरोप लगाते हुए उसके परमाणु ठिकानों पर हमला शुरू किया, जिसके बाद ईरान ने भी जवाबी मिसाइल हमले किए। अब अमेरिका के सामने यह सवाल खड़ा है कि क्या वह इस युद्ध में सीधे कूदे या नहीं?
इजरायल अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, और अमेरिकी नीति के अनुसार उसे समर्थन मिलना तय है। लेकिन ट्रंप चुनाव के समय यह वादा कर चुके हैं कि अमेरिका अब 'दूसरों की लड़ाई' नहीं लड़ेगा और अपने सैनिकों को खतरे में नहीं डालेगा।
अब अगर अमेरिका युद्ध में उतरता है, तो उसे ईरान के पर्वतीय क्षेत्रों में सैन्य कार्रवाई करनी होगी, जहां बमबारी का कोई असर नहीं होता। ईरान ने अपने परमाणु संसाधन फार्द के जिन पहाड़ों के नीचे छुपाए हुए हैं, वहां तक पहुंचने के लिए जमीनी सैनिक कार्रवाई ही विकल्प है, जो कि बेहद खतरनाक और खून-खराबे से भरी होगी।
नेतन्याहू ने बिगाड़ा ट्रंप का शांति प्लान
ट्रंप का असल मकसद यह था कि वह ईरान के साथ ओमान के जरिए एक नई परमाणु डील करें और खुद को 'शांति दूत' के रूप में पेश करें। लेकिन इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्रंप की सलाह की परवाह किए बिना ईरान पर हमला कर दिया।
अब ट्रंप के पास दो ही विकल्प हैं:
- या तो वह इजरायल का साथ छोड़ें (जो अमेरिकी नीति के खिलाफ है),
- या युद्ध में कूदें (जो उनके खुद के वादों के खिलाफ है)।
ट्रंप ने दो हफ्तों का समय क्यों मांगा?
यह सवाल अब चर्चा का विषय बन गया है कि ट्रंप ने फैसला करने के लिए ठीक दो हफ्ते का वक्त क्यों मांगा है। विश्लेषकों का मानना है:
- वे देखना चाहते हैं कि युद्ध में कौन मजबूत होता है – ईरान या इजरायल।
- अगर इजरायल को भारी नुकसान होता है, तो ट्रंप के पास युद्ध में उतरने का ‘जनता को दिखाने लायक’ कारण होगा।
- साथ ही, वे चाहते हैं कि नेतन्याहू खुद आकर अमेरिका से सार्वजनिक रूप से मदद मांगे, ताकि ट्रंप की 'कूटनीतिक ताकत' साबित हो सके।
अमेरिका पर्दे के पीछे से पहले ही एक्टिव है
हालांकि अमेरिका आधिकारिक रूप से युद्ध में शामिल नहीं हुआ है, लेकिन पर्दे के पीछे वह इजरायल को पूरी सहायता दे रहा है:
- अमेरिकी हथियार सप्लाई अब भी इजरायल को जारी है।
- अमेरिकी टैंकर विमान, इजरायली फाइटर जेट्स को ईंधन आपूर्ति कर रहे हैं ताकि वे लंबी दूरी तक ईरान पर हमला कर सकें।
इजरायल की कमजोरियां और ईरान की रणनीति
अब तक के युद्ध में इजरायल ने ईरान के कई सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमला किया है, लेकिन ईरान ने पूरी ताकत से जवाब नहीं दिया। ईरान के पास हाइपरसॉनिक मिसाइलें हैं, और अगर उसने ये इस्तेमाल कीं तो इजरायल को बड़ा नुकसान हो सकता है।
दरअसल, इजरायल की ज्यादातर आबादी कुछ बड़े शहरों में केंद्रित है। जबकि ईरान का भौगोलिक फैलाव कई गुना बड़ा है। इसलिए जवाबी हमलों में ईरान की पकड़ मजबूत हो सकती है।
युद्ध का असर अमेरिका की साख पर भी
यदि ईरान ने इजरायल को बड़ा नुकसान पहुंचा दिया, तो दुनिया यही मानेगी कि अमेरिका अपने सबसे करीबी सहयोगी को नहीं बचा सका। इसका सीधा असर खाड़ी देशों में मौजूद अमेरिकी सैन्य अड्डों की सुरक्षा पर भी पड़ेगा।
- इराक, कुवैत, बहरीन और अन्य देशों में मौजूद अमेरिकी बेस ईरानी मिसाइलों की रेंज में हैं।
- यदि अमेरिका युद्ध में शामिल हुआ और निर्णायक जीत नहीं मिली, तो पूरे मिडिल ईस्ट में अमेरिका की साख गिर सकती है।
ट्रंप की सबसे कठिन स्थिति
यह पहला मौका है जब अमेरिका को किसी और के फैसले के चलते युद्ध के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया गया है। अब अमेरिका ना तो इजरायल को अकेला छोड़ सकता है, ना ही खुद जंग में फंसा सकता है। इस स्थिति में ट्रंप की 'दुविधा' और 'मौन' को रणनीति माना जाए या असमर्थता – यह तो आने वाले दो हफ्तों में साफ हो जाएगा। लेकिन एक बात तय है – इजरायल का ईरान पर हमला, ट्रंप के लिए गले की हड्डी बन गया है।