अफगानिस्तान में मासूमों के लिए घातक रहा सदी का दूसरा दशक, 27 प्रतिशत बच्चे हुए हताहत: यूनिसेफ
Tuesday, Jan 04, 2022 - 02:10 PM (IST)
न्यूयार्क: पूरी दुनिया में इस सदी का दूसरा दशक बच्चों के लिए काफी घातक साबित हुआ है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के अनुसार पिछले 10 सालों में बच्चों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा और उनकी जिंदगी झटके में बर्बाद हो गई। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह रहा खूनी संघर्ष । टोलो न्यूज में जारी UNICEF रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में 2005 से अब तक 28,500 से अधिक बच्चे संघर्षों में मारे गए हैं, जो दुनिया भर में सभी सत्यापित बाल हताहतों का 27 प्रतिशत है।
रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में पिछले 16 वर्षों में सबसे ज्यादा बच्चों के हताहत होने की पुष्टि हुई है। यूनिसेफ के मुताबिक अफगानिस्तान, यमन, सीरिया और उत्तरी इथियोपिया ऐसे स्थान हैं जहां बच्चों ने विनाशकारी कीमत चुकाई है क्योंकि सशस्त्र संघर्ष, अंतर-सांप्रदायिक हिंसा और असुरक्षा जारी है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फोर के मुताबिक इस दशक के दौरान हिंसक संघर्ष पहले की अपेक्षा अधिक लंबे समय तक चलते दिखाई दिए। इसका सीधा असर वहां पर रहने वाले खासतौर पर युवाओं पर पड़ा है। फोर का यहां तक कहना है कि ये संघर्ष अधिक संख्या में युवाओं की मौत का कारण बने हैं।
आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में यूनीसेफ ने बाल अधिकार हनन के चौबीस हजार से अधिक मामलों का सत्यापन किया था। इनमें हत्या, अपंगता, यौन हिंसा, बाल सैनिकों की भर्ती और स्कूलों व अस्पतालों पर हमले, अपहरण, मानवीय राहत का अभाव शामिल हैं। वर्ष 2010 की तुलना में बच्चों के खिलाफ हुए मामलों की संख्या तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2019 में भी बच्चों के ऊपर हुई हिंसा और उन पर हुए हमलों के मामले में कोई कमी नहीं आई। 2021 में ही जून तक यूएन ने करीब 10 हजार मामले दर्ज किए हैं। ये मामले कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, यूक्रेन और सीरिया में दर्ज किए गए हैं।
यूनीसेफ के मुताबिक वर्ष 2010 की शुरुआत से लेकर अब तक के दरमियान बच्चों के अधिकार हनन के मामलों में भी जबरदस्त उछाल देखा गया है। इस दौरान करीब 70 हजार मामले सामने आए हैं। इसका अर्थ है हर रोज 45 मामले दर्ज किए गए हैं। ये अपने आप में गहरी चिंता का विषय है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने इस पर चिंता जताते हुए विश्व को इस तरफ ध्यान देने और इसकी रोकथाम के उपायों पर विचार करने की अपील की है। उनका कहना है कि बच्चों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं। संघर्ष में शामिल गुट खुलेतौर पर उनके बुनियादी हकों और युद्ध के बुनियादी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।