Review: रिश्तों की उलझनों और आत्म-खोज की बेबाक कहानी है सीरीज ''रंगीन'', दमदार लगे विनीत कुमार
punjabkesari.in Friday, Jul 25, 2025 - 03:05 PM (IST)

सीरीज: रंगीन (Rangeen)
कास्ट: विनीत कुमार सिंह (Vineet Kumar singh) , राजश्री देशपांडे (Rajshree Deshpande) और तारुक रैना (Taruk Raina)
निर्देशक: प्रांजल दुआ (Pranjal Dua), कोपल नैथानी (Kopal Naithani)
ओटीटी: अमेजन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video)
रेटिंग: 3*
Rangeen: अमेजन प्राइम की नई पेशकश ‘रंगीन’ एक ऐसी वेब सीरीज है जो भारतीय समाज की चुप्पी साधे कई परतों को निडरता से उजागर करती है। यह सीरीज उन असहज प्रश्नों को छूती है जिन्हें अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है। विनीत कुमार सिंह और राजश्री देशपांडे जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ, ये कहानी दर्शकों को एक ऐसी यात्रा पर ले जाती है जहां रिश्तों की जटिलता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सवाल उठते हैं। आईए जानते है कैसी है सीरीज।
कहानी
‘रंगीन’ की कहानी आदर्श जौहरी (विनीत कुमार सिंह) के इर्द-गिर्द घूमती है जो एक छोटे शहर में अख़बार का संपादक है। आदर्श के जीवन में तब मोड़ आता है जब उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी नैना (राजश्री देशपांडे) एक युवक (जिगोलो) विवेक (तारुक रैना) के साथ संबंध में है। आदर्श बदले की भावना या गुस्से में नहीं, बल्कि आत्म-पहचान और गहराई से खुद को समझने की चाह में, खुद एक जिगोलो बनने का निर्णय लेता है। यह निर्णय उसकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल देता है। कहानी में उसकी जिंदगी में कौन-कौन से उतार-चढ़ाव आते हैं इसके लिए आपको पूरी फिल्म देखनी होगी।
अभिनय
विनीत कुमार सिंह इस किरदार में पूरी तरह डूब गए हैं। ‘छावा’ के योद्धा और ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ के चुलबुले किरदारों के बाद, यह भूमिका उनके लिए एक दमदार बदलाव है। तारुक रैना ने भी अपने किरदार में जान डाल दी है। वो अपने सीमित स्क्रीन टाइम में भी एक यादगार प्रभाव छोड़ते हैं। राजश्री देशपांडे की उपस्थिति गहन है और उनके अभिनय में भावनाओं की एक पूरी रेंज नजर आती है। शीबा चड्ढा और मेघना मलिक जैसे कलाकारों ने भी अपने किरदारों को गरिमा और प्रभाव के साथ निभाया है।
राइटिंग और निर्देशन
अमरदीप गलसिन और आमिर रिजवी की लेखनी में गहराई है। ये एक ऐसी कहानी कहने की हिम्मत करते हैं जिसे कहना आसान नहीं। किरदारों की मानसिकता, सामाजिक दबाव और आत्मिक द्वंद्व को बिना नाटकीयता के दिखाना बड़ी बात है।
प्रांजल दुआ और कोपल नैथानी ने इस संवेदनशील विषय को बेहद संतुलन के साथ निर्देशित किया है। ना कहानी पटरी से उतरती है और ना ही किरदारों की सच्चाई खोती है। डायलॉग्स प्रभावशाली हैं।