Nikita Roy Movie Review: निकिता रॉय जो डर नहीं दिखाती, बल्कि सोच भी बदलती है
punjabkesari.in Friday, Jul 18, 2025 - 01:41 PM (IST)

फिल्म: निकिता रॉय (Nikita Roy)
निर्देशक – कुश सिन्हा (Kussh Sinha)
कलाकार – सोनाक्षी सिन्हा (Sonakshi Sinha), परेश रावल (Paresh Rawal), अर्जुन रामपाल (Arjun Rampal), सुहैल नैयर (Suhail Nayyar)
रेटिंग – 4*
Nikita Roy: आज के समय में दर्शकों के लिए सिर्फ बड़ा स्टारकास्ट या भारी भरकम बजट मायने नहीं रखता, अब ज़माना है दमदार कहानी और सच्चे प्रस्तुतिकरण का। कुश सिन्हा की डेब्यू फिल्म ‘निकिता रॉय’ इसी कसौटी पर खरी उतरती है। बिना शोर के ये फिल्म एक गंभीर विषय और शानदार ट्रीटमेंट के साथ आती है जो सिर्फ देखने की नहीं बल्कि महसूस करने की चीज़ है। यह फिल्म आपको सिनेमाघर से बाहर निकलने के बाद भी सोचने पर मजबूर कर देती है।
कहानी
‘निकिता रॉय’ एक सुपरनैचुरल थ्रिलर और इन्वेस्टिगेटिव मिस्ट्री का बेहतरीन मिश्रण है। ये किसी आम हॉरर फिल्म जैसी नहीं है जहां भूत उड़ते हैं या चीख-पुकार होती है, बल्कि यहां डर माहौल से पैदा होता है। कहानी शुरू होती है निकिता रॉय (सोनाक्षी सिन्हा) से, जो एक प्रसिद्ध लेखिका हैं और झूठे बाबाओं व अंधविश्वास के खिलाफ लिखती हैं। उनका भरोसा हमेशा तर्क और विज्ञान में रहा है। लेकिन जब उनके भाई की लंदन में रहस्यमयी तरीके से मौत होती है, तो वह खुद एक ऐसे चक्रव्यूह में उलझ जाती हैं, जहां तर्क, भावना और डर तीनों आपस में टकराते हैं। जैसे-जैसे निकिता सच्चाई की परतें खोलती हैं, दर्शक भी उसी गहराई में उतरते जाते हैं। कहानी हर मोड़ पर एक नई सोच देती है, बिना किसी ज़ोर के दर्शकों को झकझोरती है।
एक्टिंग
इस फिल्म की आत्मा हैं सोनाक्षी सिन्हा। उन्होंने निकिता के किरदार को पूरी सच्चाई के साथ निभाया है। नाटकीयता से दूर रहकर उन्होंने जिस सहजता से उलझन, डर और जिज्ञासा को पेश किया है, वह काबिले-तारीफ है। सुहैल नैयर की भूमिका कम संवादों वाली है, लेकिन उनका स्क्रीन प्रेजेंस दमदार है। वे चुप रहते हुए भी बहुत कुछ कह जाते हैं। परेश रावल अमरदेव के किरदार में ऐसे डर पैदा करते हैं, जो शोर से नहीं, बल्कि खामोशी से उपजता है। उनका ठंडा चेहरा और रहस्यमयी मुस्कान सस्पेंस को गहराता है। अर्जुन रामपाल ने भी अपने किरदार में ईमानदारी दिखाई है और फिल्म की गंभीरता में कोई कमी नहीं आने दी।
डायरेक्शन
‘निकिता रॉय’ को निर्देशित किया है कुश सिन्हा ने और यह उनकी पहली फिल्म है। पहली ही फिल्म में उन्होंने जो आत्मविश्वास और परिपक्वता दिखाई है, वह बेहद सराहनीय है। पवन कृपलानी की लिखी स्क्रिप्ट इतनी सशक्त है कि कहीं भी फिल्म धीमी नहीं पड़ती। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी इसकी सबसे बड़ी ताकत है। लंदन की धुंध, पुराने ढांचे और उनका सन्नाटा इन सबका मेल एक ऐसा माहौल बनाता है जिसमें डर खुद-ब-खुद जन्म लेता है। बैकग्राउंड म्यूज़िक बहुत अधिक नहीं है, लेकिन जहां भी आता है, सटीक बैठता है और सीन को और प्रभावशाली बना देता है। फिल्म का निर्माण निकी विक्की भगनानी फिल्म्स, निकिता पाई फिल्म्स लिमिटेड, बावेजा स्टूडियोज, ब्लिस एंटरटेनमेंट, मूवीज पीटीई लिमिटेड और कार्मिक फिल्म्स के सहयोग से हुआ है। प्रोड्यूसर्स — निक्की भगनानी, विक्की भगनानी और अंकुर टकरानी ने जिस तरह इस तरह की कंटेंट ड्रिवन फिल्म को सहयोग दिया, वह आज के दौर के सिनेमा के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
कुल मिलाकर ‘निकिता रॉय’ एक रहस्य के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म है। यह फिल्म सिर्फ एक मर्डर मिस्ट्री नहीं बल्कि समाज, आस्था और मनोविज्ञान के गहरे सवालों को छूती है। अगर आप स्टीरियोटाइप हॉरर या एक्शन फिल्म से अलग, एक गहरी और कंटेंट-ड्रिवन फिल्म देखना चाहते हैं, तो ‘निकिता रॉय’ को मिस न करें।