तरनतारन के ‘चिंतपूर्णी देवी द्वारा’ स्वर्ण मंदिर में साक्षात विराजती हैं माता चिंतपूर्णी

punjabkesari.in Wednesday, Feb 03, 2016 - 04:13 PM (IST)

तरनतारन के तहसील बाजार में स्थित प्राचीन मंदिर माता चिंतपूर्णी देवी द्वारा स्वर्ण मंदिर की महानता यह है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे और साफ मन से कोई भी मन्नत यहां पर मांगता है वह जरूर पूरी हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि यदि कोई श्रद्धालु चिंतपूर्णी  के दरबार से मांगी कोई अपनी मन्नत किसी कारणवश वह वहां जाकर उतार नहीं पाता तो वह तरनतारन के इस प्राचीन मंदिर में आकर उतारने पर माता चिंतपूर्णी उसे मंजूर कर लेती हैं। माता लाल देवी जी मॉडल टाऊन अमृतसर वाले अपने प्रवचनों में कहा करते थे कि तरनतारन के देवी द्वारा मंदिर में माता चिंतपूर्णी जी विराजमान हैं।

 

इस प्राचीन मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि देश की आजादी से भी पहले इस क्षेत्र के प्रसिद्ध लाला ज्ञान चंद कपूर ने अपना घर बनाने के लिए उस समय यह जगह तीन हजार रुपए में खरीदी थी। लाला जी के पोते महंत दर्शन लाल कपूर को उनकी माता जी भीखम देवी ने बताया कि जब लाला जी द्वारा इस जगह पर घर के निर्माण के लिए नींव की खुदाई आरंभ करवाई तो जमीन के नीचे से उन्हें पिंडी रूप में माता चिंतपूर्णी जी के दर्शन हुए। इन पिंडियों के इर्द-गिर्द पुरानी नानकशाही ईंटों से दीवार बनी हुई दिखाई दी, जो उस समय बहुत ही खस्ता हालत में थी। इससे यह अंदाजा हुआ कि इस स्थान पर जरूर कोई पुरातन मंदिर होगा, जिस कारण लाला जी ने अपने परिवार से फैसला कर यह जगह माता का मंदिर बनाने के लिए दान कर दी। यहां मंदिर का निर्माण हो जाने पर इस मंदिर का पंडित सीता राम को सबसे पहला पुजारी नियुक्त किया गया। धीरे-धीरे इस मंदिर की महानता फैलने पर दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर पहुंच कर अपनी मनोकामनाएं प्राप्त करने लगे। 

 

यह मंदिर इस समय श्री सनातन धर्म सभा (रजि.) तरनतारन के प्रबंध अधीन है। क्षेत्र के दानी सज्जनों के सहयोग से मंदिर के विशाल हाल, परिक्रमा आदि का निर्माण किया जा चुका है। इसके अलावा श्री शक्ति सेवक सभा ने अध्यक्ष दविंद्र गुप्ता की अगुवाई में दानी सज्जनों से सोना एकत्र करके मंदिर के अंदर वाले गुमटों, दीवारों व भवन के माथे पर सोना लगवा कर मंदिर की शोभा को चार-चांद लगा दिए हैं। मुख्य हाल के दरवाजे भी चांदी के बना दिए गए हैं। मंदिर में समय-समय पर विभिन्न धार्मिक आयोजन होते रहते हैं।

—जसविंद्र गल्होत्रा


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