क्या होती है मानस पूजा, इसे करने के लिए किस खास विधि की होती है ज़रूरत?
punjabkesari.in Tuesday, Sep 15, 2020 - 04:22 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
यूं तो शास्त्रों में विभिन्न प्रकार की पूजा का जिक्र किया गया है, मगर इनमें से एक ऐसी भी पूजा है, जिसे अधिक शक्तिशाली माना जाता है। बता दें इस महत्वपूर्ण व शक्तिशाली उपाय या कहें पूजा, को मानस पूजा के नाम से जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में मानस पूजा को ईश्वर की उपासना की सबसे उत्तम विधियों से एक माना जाता है। मगर आप में से ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन्हें ये पता ही नहीं होगा कि आखिर ये मानस पूजा है क्या। तो चलिए हम आपको बता देते हैं कि आखिर मानस पूजा का क्या महत्व है। साथ ही जानते हैं इससे जुड़ी विधि के बारे में-
मानस पूजा:
अक्सर आप ने कुछ लोगों के मुख से सुना होगा कि पूजा पूरे से करनी चाहिए, तभी उसका फल लगता है। तो आपको बता दें शास्त्रों में मन से किए जाने वाले अपने आराध्य के पूजन-अर्चन को ही मानस पूजा के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अपने ईष्टदेव को मन ही मन या कल्पानाओं में ही आसन, पुष्य, नैवेद्य तथा आभूषण आदि अर्पित करके उनकी पूजा की जाती है।
कहा जाता है इस पूजा में किसी भी तरह की भौतिक चीज़/वस्तु की कोई आवश्यकता नहीं होती। इसका कारण यह होता है कि ये पूजा व उपासना भावना की होती है। और अगर धार्मिक शास्त्रों की मानें तो उसमें बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट किया गया है कि भगवान केवल अपने भक्त की सच्ची श्रद्धा तथा भाव के भूखे होते हैं, जो अटूट हो ।
मानस पूजा में केवल मन का निर्मल व स्वच्छ होना आवश्यक होती है। अपनी इसी विशेषता के चलत ये पूजा अन्य होने वाली पूजा से हज़ार गुना लाभदायक मानी जाती है।
चलिए पुराणो में इसके महत्व के अलावा क्या है इसकी सटीक पूजन विधि-
मानस पूजा विधि:
मानस पूजा से सम्बंधित विधियां विस्तृत रूप में कुछ इस तरह बताई गई हैं. जिनमें से कुछ संक्षिप्त विधियां इस तरह से हैं-
ॐ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि: हे! प्रभु मैं आपको पृथ्वीरूप गंध अर्पित करता हूं.
ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि: हे! प्रभु मैं आपको आकाशरूप पुष्प अर्पित करता हूं.
ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि: हे! प्रभु मैं आपको वायुदेव के रूप में धूप अर्पित करता हूं.
ॐ रं वह्नयान्तकं दीपं दर्शयामि: हे! प्रभु मैं आपको अग्निदेव के रूप में दीपक अर्पित करता हूं.
ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि: हे! प्रभु मैं आपको अमृत के समान अर्पित करता हूं.
ॐ सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि: हे! प्रभु मैं आपको सर्वात्मा के रूप में संसार के सभी उपचारों को आपके चरणों में अर्पित करता हूं।