Kundli Tv- क्या वाकई रावण ने किया था सीता का हरण?
punjabkesari.in Thursday, Sep 27, 2018 - 06:23 PM (IST)
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श्लोक-
लक्ष्मणहुं यह मरम ना जाना।
जा कुछ चरित रचा भगवाना।।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक कन्या पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की तपस्या करती थी। रावण उस कन्या से जबरदस्ती शादी करना चाहता था। इसी के चलते वेदवती ने योग क्रिया द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया और रावण को श्राप दिया कि मेरे ही द्वारा तेरा सर्वनाश होगा। तुझे मारने के लिए हमारा अवतार होगा। इसके बाद अग्नि देव ने वेदवती की आत्मा को अपने तन में समाहित कर लिया।
मान्यातओं के मुताबिक एक दिन पंचवटी में मारीच नामक राक्षस (हिरण के वेश में रावण का मामा) का वध करने के लिए भगवान राम आश्रम से बाहर गए। अपनी भाभी सीता जी के कठोर वचन सुनके लक्ष्मण जी भी राम जी के पीछे-पीछे चले गए।
जिसके बाद लंकापति रावण सीता को हर ले जाने के लिए आश्रम के समीप आया उस समय अग्नि देव भगवान राम के अग्नि होत्र-गृह में विद्यमान थे। अग्नि देव ने रावण की चेष्टा जान ली और असली सीता को साथ में लेकर पाताल लोक अपनी पत्नी स्वाहा के पास चले गए और सीता जी को स्वाहा की देख रेख में सौंप कर लौट आए।
अग्नि देव ने वेदवती की आत्मा को अपने तन से अलग करके सीता के समान रूप वाली बना दिया और पर्णशाला में सीता जी के स्थान पर उसे बिठा दिया। रावण ने उसी का अपहरण कर लिया और उसे लंका ले गया। रावण के मारे जाने पर अग्नि परीक्षा के समय उसी वेदवती ने अग्नि में प्रवेश किया। उस समय अग्नि देव ने स्वाहा के समीप सुरक्षित जनक नंदनी सीतारूपा लक्ष्मी को लाकर पुन: श्री राम जी को सौंप दिया और वेदवती रूपी छाया सीता के अपने तन में समाहित कर लिया।
भगवान राम ने माता सीता से कहे ये वचन:-
प्रभु! इस वेदवती ने बड़े दुख सहे हैं। ये आप को पती रूप में पाना चाहती है इसलिए आप इसे अंगीकार कीजिए।
जिसके बाद श्रीराम ने कहा, समय आने पर मैं इसे पत्नी रूप में ज़रूर स्वीकार करूंगा।
समय बीतता चला गया:- राजा आकाश राज यज्ञ करने के लिए आरणी नदी के किनारे भूमि का शोधन कराया गया। सोने के हल से पृथ्वी जोती जाने लगी तब बीज की मुट्ठी बिखेरते समय राजा ने देखा, पृथ्वी से एक कन्या प्रकट हुई है, जो कमल की शय्या पर सोई हुई है। सोने की पुतली सी शोभा पा रही है। राजा ने उसे गोद में उठा लिया और कहा, यह मेरी पुत्री है।
ऐसा बार-बार कहते हुए वह महल की ओर चल दिए, तभी आकाश बाणी हुई, राजन! वास्तव में ये तुम्हारी ही पुत्री है। इस कन्या का तुम पालन-पोषण करो।
यह कन्या वही वेदवती है। राजा के कुलगुरू ने इस कन्या का नाम पदमावती रखा। धीरे-धीरे समय बीता कन्या युवा हो गई। कन्या का विवाह वेंकटाचल निवासी श्री हरि से हुआ। यह वही वेदवती छाया रूपी सीता है जिसे संसार, पद्मिनी, पदमावती, पद्मालया के नाम से जानते हैं।
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