वैसाख मास में पड़ने वाली वरूथिनी एकादशी का क्यों है इतना महत्व?
punjabkesari.in Thursday, Apr 16, 2020 - 11:08 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
यूं तो हिंदू धर्म में प्रत्येक एकादशी को महत्व दिया गया है परंतु अगर बात वैसाख मास की वरुथिनी एकादशी की हो तो इसका महत्व अधिक माना जाता है। बता दें एकादशी को पुण्य कार्य और भक्ति के लिए खास माना जाता है। प्रत्येक मास में दो बार एकादशी पड़ती हैं जिसका व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार वैशाख मास की वरुथिनी एकादशी 18 अप्रैल को मनाई जाएगी। धार्मिक शास्त्रों, ग्रंथों व पुराणों में एकादशी को बहुत ही विशेष माना गया है। ऐसी मान्यताएं हैं कि इस एकादशी को व्रत व पूजा करने वाले जातक को जीवन में पुण्य और सौभाग्य प्रदान होता है। साथ ही साथ यह भी बताया गया है एकादशी का व्रत धारण करने से 1 दिन पहले अर्थात दशमी तिथि से ही उपवास रखने वालों को कुछ नियमों का अनुपालन करना चाहिए। परंतु बहुत से लोगों को इस बारे में जानकारी न होने के कारण वह इनका पालन नहीं कर पाते। तो चलिए जानते हैं इस एकादशी की विशेषता इससे जुड़ी पौराणिक कथा-
सबसे पहले जानते हैं शास्त्रों में इस एकादशी को इतना महत्व क्यों प्रदान है-
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है। उसकी जीवन के सभी दुख कष्ट कट जाते हैं- अर्थात दुखी यारों को इस व्रत को करने से सुख की प्राप्ति होती है। तो वहीं राजा के लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं।
ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल मिलता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। जो भी चातक इस व्रत को पूरी निष्ठा शुद्ध भाव से करता है उसे मनुष्य लोग के साथ-साथ परलोक में भी सुख की प्राप्ति होती है तथा अंत में वह स्वर्ग के द्वार जाता है।
बताते चलें जो व्यक्ति इस दौरान हाथी का दान या भूमिका दान करता है उसे अत्यंत शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ब्रिटनी शब्द संस्कृत भाषा का है जिसका मतलब प्रति रक्षक, कवच या रक्षा करने वाला बताया गया है इसीलिए यह मान्यता है कि जो भी एकादशी का व्रत करता है। भगवान् श्री हरी विष्णु उसके सभी कष्टों और संकटों से उसकी रक्षा करते हैं।
यहां जानें वरुथिनी एकादशी व्रत कथा-
प्राचीन समय के अनुसार पूर्व नर्मदा नदी के किनारे राजा मांधाता का राज्य हुआ करता था जो बेहद दानी व तपस्वी राजा थे। एक समय की बात है वह जंगल में तपस्या कर रहे थे परंतु उसी वक्त वहां एक भालू आया और उनके पैर को खाने लगा मांधाता तपस्या में लीन थे उन्होंने भालू करना तो क्रोध किया ना ही उसे मारने की कोशिश की। उन्होंने काफी देर तक दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश की परंतु जब दर्द असहनीय हो गया तब उन्होंने भगवान विष्णु को याद किया। कथाओं के अनुसार तब भगवान विष्णु ने स्वयं वहां प्रकट होकर राजा की उस भालू से रक्षा की। परंतु ऐसा कहा जाता है जब कृष्ण भगवान ना प्रकट हुए तब तक भालू ने राजा के पैरों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया था। जिसे देख कर आजा बहुत दुखी हुए। तब भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि ही राजन आप दुख ना करें बालों ने जो तुम्हें काटा है यह तुम्हारे पूर्व जन्म के पूरे कर्मों का नतीजा है। इसके लिए तो मथुरा जाओ और वहां वरुथिनी एकादशी का व्रत विधि विधान से करो इससे तुम्हारे पैर ठीक हो जाएंगे। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद राजा ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और वह मथुरा गए जिसके बाद उनके पैर ठीक हो गए।