असमय बनाए संबंधों से पैदा होती है राक्षसी संतान, पढ़ें पौराणिक कथा

punjabkesari.in Saturday, Jul 30, 2022 - 03:20 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Varaha Avatar Story: सनकादि ऋषियों के शाप से जय-विजय का असुरयोनि में जन्म होना निश्चित हो चुका था। सायंकालीन संध्या-वंदन का समय था। महर्षि कश्यप अपनी यज्ञशाला में नित्यकर्म-पूजा पाठ की तैयारी कर रहे थे। उसी समय उनकी पत्नी दिति सर्वश्रेष्ठ पुत्र प्राप्ति की कामना से उनके समीप पहुंची। तपोनिष्ठ महर्षि ने असमय जान कर दिति को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयत्न किया किन्तु उसके दुराग्रह के कारण वह विवश हो गए।

PunjabKesari Varaha Avatar

प्रभु की इच्छा जानकर उन्होंने दिति को संतुष्ट किया। तदनन्तर दिति के क्षमा याचना करने पर उन्होंने कहा, ‘‘देवी! तुम्हारा अपराध अक्षम्य है। कामासक्त होने के कारण तुम्हारा चित्त मलिन हो गया था। तुमने असमय का ध्यान नहीं रखा, मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया और रुद्रगणों का तिरस्कार किया है। इसके कारण तुम्हारे गर्भ से दो अत्यंत पराक्रमी और क्रूर कर्म करने वाले पुत्र उत्पन्न होंगे। उनका वध करने के लिए भगवान नारायण स्वयं अवतार लेंगे।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

PunjabKesari Varaha Avatar

अपने पति के तेज को दिति ने सौ वर्षों तक धारण किया। सौ वर्ष पूरे होने पर दिति के दो जुड़वां पुत्र हुए। पहला पुत्र हिरण्याक्ष और दूसरा हिरण्यकशिपु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनके पृथ्वी पर पांव रखते ही पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग में अनेक प्रकार के उपद्रव होने लगे। सर्वत्र अमंगल सूचक दृश्य दिखाई देने लगे। जन्म लेते ही दोनों दैत्य पर्वताकार रूप में हो गए। उन्होंने सर्वत्र उपद्रव मचाना शुरू कर दिया।

वे आसुरी राज की स्थापना के लिए कृत संकल्प थे। हिरण्याक्ष ने देवलोक पर आक्रमण करके देवताओं को खदेड़ दिया। उसने सोचा कि ‘ये देवगण पृथ्वी पर होने वाले यज्ञ से पुष्ट होते हैं। इन्हें दुर्बल करने के लिए मैं इस पृथ्वी को ही रसातल में पहुंचा दूंगा।’’

ऐसा विचार कर वह पृथ्वी को ही लेकर रसातल में चला गया। वरुण से भगवान के पराक्रम की बात सुन कर वह उनसे युद्ध करने के लिए उन्हें सर्वत्र ढूंढने लगा।

PunjabKesari Varaha Avatar

हिरण्याक्ष के अत्याचार से सभी देवता, ऋषि-महर्षिगण अत्यंत दुखी थे। उसी समय ब्रह्मा जी के संकल्प से स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा उत्पन्न हुआ जो मनु-शतरूपा के नाम से विख्यात हुआ। ब्रह्मा जी ने उन्हें मैथुनी सृष्टि की आज्ञा दी। मनु ने कहा, ‘‘प्रभो! आप मेरी भावी मानवी प्रजा के रहने योग्य स्थान बतलाइए, क्योंकि पृथ्वी तो जल में डूबी हुई है।’’

पृथ्वी के उद्धार तथा हिरण्याक्ष के वध के लिए ब्रह्मादि देवगणों ने भगवान का स्मरण किया। प्रभु की स्मृति से अकस्मात ब्रह्मा जी की नासिका से अंगूठे के बराबर एक श्वेत वराह शिशु प्रकट हुआ। प्रकट होते ही वह विशाल आकार वाला हो गया। सभी लोगों ने वराह रूपी श्री हरि की वंदना की।

सबके देखते-देखते भगवान वराह समुद्र में कूद पड़े और जल को चीरते हुए रसातल में जा पहुंचे। भगवान को अपने उद्धार के लिए आया जान कर पृथ्वी देवी ने उनकी स्तुति की। तदनन्तर भगवान ने बड़ी भयंकर गर्जना की और अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को रख कर समुद्र से बाहर निकालने लगे। उनकी गर्जना सुन कर हिरण्याक्ष उनसे युद्ध के लिए आ धमका। 

भगवान वराह और हिरण्याक्ष का घमासान युद्ध हुआ। अंत में वह भगवान के हाथों मारा गया। उस समय देवताओं ने भगवान वराह पर पुष्पवृष्टि करते हुए उनकी तरह-तरह से स्तुति की। भगवान वराह पृथ्वी को स्थापित करके अंतर्धान हो गए। इस प्रकार श्वेत वराह कल्प की सृष्टि प्रारंभ हुई।

PunjabKesari kundli

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News