Colour Therapy Healing: हम जो रंग पहनते हैं, वही जिंदगी जीते हैं- पढ़ें फैशन, आस्था और आत्मचिकित्सा की एक यात्रा

punjabkesari.in Sunday, Jun 08, 2025 - 10:20 AM (IST)

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Colour Therapy Healing: दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में आई.पी कॉलेज के एक फेस्ट के दौरान, मैं कॉलेज के दिनों में एक ऐसी स्थिति से गुजरी, जिसे उस वक्त मामूली समझा जा सकता था क्या पहनूं ? मैं अलमारी के सामने खड़ी हो गई, एक के बाद एक कपड़े निकालती, बिस्तर पर फेंकती और यह सोचती कि ऐसा क्या पहनूं जिससे मैं आत्मविश्वासी लगूं, सहज महसूस करूं पर कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था। न कोई रंग, न कोई कपड़ा मैं जैसा लगा। देर हो गई, मन चिढ़ गया और मैं सोचने लगी कपड़े जैसी छोटी सी चीज भी जिंदगी को इतना प्रभावित कैसे कर सकती है ? पर यह सिर्फ फैशन की बात नहीं थी, यह मेरी पहचान, मेरी ऊर्जा और मेरे दुनिया के सामने अपने को प्रस्तुत करने के तरीके से जुड़ी बात थी। उसी क्षण एक मौन प्रश्न ने मेरे मन में जन्म लिया: क्या रंग सच में हमारी जिंदगी में फर्क डालते हैं ?

कुछ समय बाद, मैंने रंग चिकित्सा (Colour Therapy) पर एक किताब पढ़ी। यह विषय मुझे आकर्षित करने लगा। जो शुरुआत में सिर्फ़ जिज्ञासा थी, वह धीरे-धीरे एक गहरी खोज में बदल गई। मैंने और पढ़ना शुरू किया- पुस्तकें, लेख, आध्यात्मिक ग्रंथ और धीरे-धीरे एक अद्भुत दुनिया खुलने लगी, जहां रंग केवल देखने की चीज़ नहीं थे, बल्कि हमारी भावनाओं, संस्कृति, अध्यात्म और ईश्वर से जुड़ाव के प्रतीक थे। रंग सिर्फ़ दृश्य नहीं हैं, वे हमारे अनुभवों को आकार देते हैं।

मनोवैज्ञानिक रूप से, रंग हमारे भीतर भावनात्मक प्रतिक्रियाएं पैदा करते हैं। लाल रंग ऊर्जा, साहस या जल्दी के संकेत देता है। नीला रंग शांति और भरोसे का प्रतीक है। हरा रंग प्रकृति और उपचार से जुड़ा है। पीला खुशी और स्पष्टता लाता है जबकि बैंगनी सृजनात्मकता और रहस्य की अनुभूति कराता है। ये संबंध केवल फैशन तक सीमित नहीं हैं, ये ब्रांडिंग, इंटीरियर डिज़ाइन और चिकित्सा केंद्रों तक को प्रभावित करते हैं। जैविक दृष्टिकोण से, हमारी आंखें तीन प्रकार की कोन कोशिकाओं से लाल, हरे और नीले प्रकाश को पहचानती हैं, और उससे हम रंगों को देख पाते हैं परंतु जो लोग रंगों के अंधत्व (Colour Blindness) से ग्रसित हैं, उनकी दुनिया ही अलग नज़र आती है।

संस्कृतिक रूप से, रंगों का अर्थ देश और समाज के अनुसार बदलता है। पश्चिमी देशों में सफेद रंग को विवाह और पवित्रता से जोड़ा जाता है जबकि भारत और अन्य पूर्वी संस्कृतियों में सफेद रंग शोक और विदाई का प्रतीक है। आध्यात्मिक रूप से, रंगों का अर्थ और भी गहराई लिए होता है। ईसाई चित्रकला में नीला रंग ईश्वरीय कृपा और वर्जिन मैरी की पोशाक का प्रतीक है। लाल रंग आत्मा और प्रेम का है। हिंदू धर्म में रंग और भी जीवंत हैं कृष्ण का नीला रंग अनंत आकाश और समुद्र का प्रतीक है, केसरिया त्याग और शुद्धता का और सोना दिव्यता का। बौद्ध धर्म में रंग मानसिक अवस्थाओं और आत्मज्ञान के चरणों से जुड़े होते हैं।

सबसे अधिक आकर्षक बात मुझे यह लगी कि हिंदू परंपरा में सप्ताह के सातों दिनों को एक रंग, एक ग्रह और एक देवता से जोड़ा गया है। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि वैदिक ज्योतिष, ग्रंथों और परंपराओं पर आधारित है।

रविवार: सूर्य देव का दिन, लाल या नारंगी रंग- ऊर्जा और बल का प्रतीक
सोमवार: चंद्रमा और शिव जी का दिन- श्वेत या हल्का नीला रंग—शांति और शुद्धता
मंगलवार: हनुमान जी और मंगल ग्रह- लाल या गुलाबी—शक्ति और साहस
बुधवार: बुध ग्रह और श्रीकृष्ण- हरा रंग—संतुलन और विकास
गुरुवार: बृहस्पति और विष्णु भगवान- पीला रंग—बुद्धि और आशीर्वाद
शुक्रवार: लक्ष्मी जी- सफेद या हल्का नीला—सौंदर्य और समृद्धि
शनिवार: शनि देव- काला या गहरा नीला—अनुशासन और सुरक्षा

मैंने धीरे-धीरे इस पद्धति को अपनाना शुरू किया। अब मेरी सुबहें उलझनभरी नहीं रहीं। बुधवार हो तो हरा पहनना, शुक्रवार हो तो हल्का नीला। ये रंग चुनना सिर्फ़ सौंदर्य की बात नहीं रह गई थी, बल्कि एक आध्यात्मिक अभ्यास बन गया था। समय के साथ मेरा वार्डरोब भी साधारण हो गया, मन भी स्थिर और सधा हुआ लगने लगा। मैं अब कम कपड़े खरीदती थी, सोच-समझकर चुनती थी और हर दिन से एक नया जुड़ाव महसूस करती थी।

जो बात कभी कॉलेज की उलझन थी, वही अब मेरी ज़िंदगी का संतुलन और उद्देश्य बन गई। रंग अब मेरे लिए सिर्फ़ देखने की चीज़ नहीं थे वे मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति और ईश्वर से जुड़ने का माध्यम बन गए। वे अब मेरे लिए एक तरह का कंपास बन गए केवल पहनने के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए।

 एक आत्मानुभव पर आधारित कहानी

PunjabKesari Dr Tanu Jain Civil Servant and Spiritual Speaker

Dr. Tanu Jain, Civil Servant and Spiritual Speaker
Ministry of defence


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Content Editor

Prachi Sharma

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