Tips to Boost Memory: दिमाग को तेजस्वी और पॉजिटिव बनाती है ये Technique

punjabkesari.in Wednesday, Feb 08, 2023 - 07:49 AM (IST)

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Mantra for Intelligence and Memory Power: मंत्र एक वैज्ञानिक विचारधारा है। इसकी शक्ति से वही साधक रूबरू  हो सकता है, जिसने अपने गुरु से दीक्षित होने के बाद विधि पूर्वक साधना की हो। भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार मंत्र दो रूपों में अध्ययन का विषय हैं। पहला - शब्दों की ध्वनि और दूसरा - आंतरिक विद्युत धारा।

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जब किसी मंत्र का उच्चारण किया जाता है, तो ध्वनि उत्पन्न होती है। ध्वनि उत्पन्न होने पर ईथर से कंपन उत्पन्न होता है। यह ध्वनि कंपन के कारण तरंगों में परिवर्तित होकर वातावरण में व्याप्त हो जाती है तथा इसके साथ ही आंतरिक विद्युत भी (तरंगों में) इसमें व्याप्त रहती है। यह आंतरिक विद्युत, जो शब्द उच्चारण से उत्पन्न तरंगों में निहित रहती है, शब्द की लहरों को व्यक्ति विशेष तथा दिशा विशेष की ओर भेजती है अथवा इच्छित कार्य में सिद्धि दिलाने में सहायक होती है।

अब यह प्रश्न उठता है कि यह आंतरिक विद्युत किस प्रकार उत्पन्न होती है। यह बात अनुसंधान द्वारा मान ली गई है कि ध्यान, मनन, चिंतन आदि की उस अवस्था में जब रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप शरीर में विद्युत जैसी एक धारा प्रवाहित होती है (इसे हम शारीरिक विद्युत कह सकते हैं) तथा मस्तिष्क से विशेष प्रकार का विकिरण उत्पन्न होता है, जिसका नाम अल्फा तरंग रखा गया है (इसे हम मानसिक विद्युत कह सकते हैं)।

यही अल्फा तरंग मंत्रों के उच्चारण करने पर निकलने वाली ध्वनि के साथ गमन कर दूसरे व्यक्ति को प्रभावित कर या इच्छित कार्य करने में सहायक होती है। मंत्र जिस उद्देश्य से जपा जा रहा है, उसमें सफलता दिलाने में यह सहायक सिद्ध होते हैं। इसी मानसिक विद्युत या अल्फा तरंग को ज्ञानधारा भी कह सकते हैं।

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मनोविज्ञान के विद्वानों ने प्रयोगों और परीक्षणों के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य के मस्तिष्क में बार-बार जिन विचारों अथवा शब्दों का उदय होता है, उन शब्दों की एक स्थाई छाप मानस पटल पर अंकित हो जाती है और एक समय ऐसा आता है, जब वह स्वयं ही मंत्रमय हो जाता (मंत्र की लय में खो जाता) है। यदि ये विचार आनंददायक हों, मंत्र कल्याणकारी हो, तो इन्हीं के परिणाम मनुष्य को आनंदानुभूति करवाने वाले सिद्ध होते हैं। कभी-कभी मनुष्य के जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं, जब उसका मन खिन्न एवं दुखी होता है।

ऐसा उस मनुष्य के अपने ही पूर्व संचित कर्म के परिणामस्वरूप होता है, जिन कर्मों के फलस्वरूप उसे वे परिस्थितियां या संस्कार प्राप्त होते हैं। उस प्रकार के संचित कर्म को केवल जप द्वारा ही क्षय किया जा सकता है। ऐसी अवस्था में जप ही उसके दुख रूपी कर्मफल का क्षय कर सकता और अच्छे संस्कार डाल सकता है।

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जिस प्रकार एक जलपूर्ण पात्र में बालू उंडेलने से वह बालू पात्र की तह में जाकर बैठती है। जैसे-जैसे बालू की मात्रा बढ़ती है जल का स्तर भी बढ़ता है, बालू की मात्रा अधिक होने पर जल पात्र से बाहर बहने लगता है और एक समय ऐसा आता है जब जल पूर्णत: पात्र से बाहर निकल जाता है और पात्र में ऊपर से नीचे तक बालू ही बालू रह जाती है।

इसी तरह जप साधना से साधक अपने इष्ट के गुण रूपी बालू को अपने मन के पात्र में जप और ध्यान के माध्यम से डालता है, तो अवगुण या कुसंस्कार रूपी जल बाहर निकल जाता है और जप साधना की उपयोगिता सिद्ध हो जाती है। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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