Tapkeshwar Mahadev Mandir: अद्भुत है टपकेश्वर महादेव मंदिर, शिवलिंग पर चट्टान से टपकती है पानी की बूंदे
punjabkesari.in Thursday, Mar 20, 2025 - 07:07 AM (IST)

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Tapkeshwar Mahadev Mandir uttarakhand: भोलेनाथ के कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनका इतिहास महाभारत और रामायण से जुड़ा है। इनमें से भगवान शिव का एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में है, जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार आदिकाल में भोले शंकर ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे। इस मंदिर के शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदें टपकती रहती हैं।
मंदिर का नाम टपकेश्वर कैसे पड़ा
भोलेनाथ को समर्पित इस मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक गुफा के अंदर है, जिसमें शिवलिंग पर पानी की बूंदें लगातार गिरती रहती हैं। इसी कारण भगवान शिव के इस मंदिर का नाम टपकेश्वर पड़ा। टपक एक हिंदी शब्द है, जिसका अर्थ है बूंद-बूंद गिरना।
मंदिर के नाम के पीछे है यह पौराणिक कथा
टोंस नदी के तट पर स्थित टपकेश्वर मंदिर की एक पौराणिक कथा के अनुसार, यह गुफा द्रोणाचार्य (महाभारत के समय कौरवों और पांडवों के गुरु) का निवास स्थान मानी जाती है। इस गुफा में उनके बेटे अश्वत्थामा पैदा हुए थे। बेटे के जन्म के बाद उनकी मां दूध नहीं पिला पा रही थी।
उन्होंने भोलेनाथ से प्रार्थना की, जिसके बाद भगवान शिव ने गुफा की छत पर गऊ थन बना दिए और दूध की धारा शिवलिंग पर बहने लगी, जिसकी वजह से प्रभु शिव का नाम दूधेश्वर पड़ा। कलियुग में इस धारा ने पानी का रूप ले लिया, इस कारण इस मंदिर को टपकेश्वर कहा जाता है।
महत्व
इस मंदिर में भगवान शिव टपकेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। यहां दो शिवलिंग हैं। ये दोनों गुफा के अंदर स्वयं प्रकट हुए थे। शिवलिंग को ढकने के लिए 5151 रुद्राक्षों का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर के आस-पास मां संतोषी की गुफा भी है। यह मंदिर जिस टोंस नामक नदी के तट पर स्थित है, द्वापर युग में यह नदी तमसा नाम से प्रसिद्ध थी। मंदिर परिसर के आस-पास कई खूबसूरत झरने हैं। यहां शाम को भगवान शिव का बहुत ही सुंदर शृंगार किया जाता है।
गुरु द्रोणाचार्य ने गुफा में की भगवान शिव की तपस्या
मान्यता है कि इस गुफा में कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य भगवान शिव की तपस्या करने के लिए आए थे। 12 साल तक उन्होंने भोलेनाथ की तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दर्शन दिए, उनके अनुरोध पर ही भगवान शिव यहां लिंग के रूप में स्थापित हो गए। लोक मान्यता के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य को भगवान शिव ने इसी जगह पर अस्त्र-शस्त्र और धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था। इस प्रसंग का महाभारत में उल्लेख है।
कहां पर स्थित है प्रभु का धाम
ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट में है। सावन के महीने में यहां मेला लगता है। दर्शन के लिए लंबी लाइनें लगी रहती हैं। मान्यता है कि मंदिर में सावन के महीने में जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है। टपकेश्वर मंदिर में देश ही नहीं, विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। मंदिर जाने के लिए सबसे नजदीक देहरादून रेलवे स्टेशन और बस अड्डा है।
वास्तुकला
प्रसिद्ध टपकेश्वर मंदिर की वास्तुकला प्राकृतिक और मानव निर्मित का खूबसूरत संगम है। यह मंदिर दो पहाड़ियों के बीच है। गुफा की वास्तुकला प्रकृति का अद्भुत नजारा है। महादेव टपकेश्वर का द्वार सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तक और 1:30 से शाम के 5:30 बजे तक खुला रहता है। उत्तराखंड में पहाड़ की गोद में भगवान टपकेश्वर मंदिर स्वयं शिवजी की महिमा का गुणगान करता है।