Swami Vivekananda: जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है "एकाग्रता"

punjabkesari.in Sunday, Jun 27, 2021 - 12:05 PM (IST)

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स्वामी विवेकानंद और जर्मनी के संस्कृत भाषा के विद्वान प्रोफैसर पाल डायसन संस्कृत साहित्य पर चर्चा कर रहे थे। किसी कारणवश प्रोफैसर साहब को उठकर बाहर जाना पड़ा। स्वामी जी पास पड़ी एक किताब उठाकर उसके पन्ने पलटने लगे। वह उसे पढऩे में लीन हो गए। थोड़ी देर बाद प्रोफैसर डायसन अपना काम निपटाकर लौट गए। लेकिन स्वामी जी किताब पढऩे में इस कदर खोए थे कि डायसन के लौटने का उन्हें पता ही नहीं चला।

कुछ देर बाद डायसन को लगा कि स्वामी जी जान-बूझकर उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं। पूरी किताब पढऩे के बाद जब स्वामी जी ने अपनी गर्दन ऊपर उठाई तो डायसन को सामने बैठकर इंतजार करता पाया। वह बोले, ‘‘क्षमा कीजिएगा, मैं पढ़ रहा था। इसलिए आप कब आए, इसका पता ही नहीं चला।’’ 

वहीं डायसन को यही लगता रहा कि स्वामी जी ने जानबूझ कर उनकी उपेक्षा की। स्वामी जी उनके मन का भाव जान गए।  डायसन को यकीन दिलाने के लिए वह किताब की कुछ कविताएं सुनाने  लगे। लेकिन इसका उलटा असर हुआ। कविता की पंक्तियां सुनने के बाद डायसन ने कहा, ‘‘लगता है, आपने यह किताब पहले भी पढ़ी है।’’

डायसन के इस तरह सोचने का कारण यह था कि 200 पन्नों वाली किताब कोई व्यक्ति इतने कम समय में नहीं पढ़ सकता था। 

इस पर स्वामी विवेकानंद ने कहा, ‘‘मिस्टर डायसन, जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है-एकाग्रता। एकाग्रता जितनी अधिक होगी, आपका समय उतना ही कम लगेगा या काम का परिणाम उतना ज्यादा होगा।’’


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Content Writer

Jyoti

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