इस कहानी से जानें, कैसे बचपन में ही सुभाषचंद्र बोस ने सीखी मदद और सेवा की आदत
punjabkesari.in Tuesday, Dec 02, 2025 - 12:20 PM (IST)
Subhash Chandra Bose story : नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बचपन का प्रसंग है। एक दिन उनकी मां उनके अध्ययन कक्ष में गईं। सुभाष कमरे में नहीं थे। माता ने देखा कि चींटियों की लम्बी कतारें सुभाष की मेज से होती हुई किताबों की अलमारी की ओर जा रही हैं। उन्होंने फर्श और अलमारी के चारों तरफ ध्यान से देखा। वहां पर चींटियों का आना-जाना लगा था।

माता ने सोचा कि हो सकता है कि अलमारी में कोई कीड़ा मर गया हो। इस अनुमान से उन्होंने अलमारी खोली और किताबें उलट-पलट कर देखने लगीं। तभी पुस्तकों के पीछे दो सूखी रोटियां पड़ी दिखीं। चींटियां रोटियों के कण तोड़-तोड़कर ले जा रही थीं। मां को समझते देर न लगी कि अवश्य ही रोटियां उनके बेटे ने किसी वजह से रखी होंगी। तभी सुभाष आ गए।
मां ने कहा, ‘‘तूने अलमारी में रोटियां क्यों रखी हैं?’’ सुभाष ने दुखी हृदय से कहा, ‘‘तुमने वे रोटियां फैंक दीं न मां? ठीक ही किया।’’

कमजोरों के प्रति दया भाव के चलते उनकी आंखें छलछला आईं। फिर उन्होंने कहा, ‘‘बात यह है कि मैं रोज अपने खाने से दो रोटियां बचाकर एक बूढ़ी भिखारिन को दिया करता था। वह मेरे स्कूल के रास्ते में खड़ी होती थी। कल जब मैं रोटियां देने गया तो वह अपनी जगह पर नहीं थी। इसीलिए उसके हिस्से की रोटियां मैंने यहां रख दीं कि फिर किसी समय जाकर दे आऊंगा। मैं दोबारा वहां गया तो पता चला कि उस बेचारी का स्वर्गवास हो गया है।’’ सुभाष का यह दया भाव जीवन भर बना रहा।

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