Srinagar Baikunth Chaturdashi Mela 2025: श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी मेले का हुआ भूमि पूजन, 4 नवंबर से शुभ आरंभ
punjabkesari.in Monday, Nov 03, 2025 - 02:41 PM (IST)
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Srinagar Baikunth Chaturdashi Mela 2025: भगवान विष्णु और भगवान शिव के पावन मिलन पर्व बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर श्रीनगर के आवास विकास मैदान में 2 नवंबर रविवार 2025 को बैकुंठ चतुर्दशी मेला एवं विकास प्रदर्शनी के भूमि पूजन किया गया। 4 नवंबर से मेले का शुभ आरंभ होगा। विधिवत वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच नगर निगम की ओर से इस वर्ष मेले को अधिक भव्य, सुरक्षित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने का संकल्प लिया गया।
बैकुंठ चतुर्दशी का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
पुराणों में वर्णन मिलता है कि बैकुंठ चतुर्दशी वह पावन तिथि है जब भगवान विष्णु ने काशी में भगवान शिव को शालिग्राम प्रदान किया और बदले में भगवान शिव ने विष्णु को दिव्य ज्ञान का वरदान दिया। यह दिन वैष्णव और शैव परंपरा के अद्भुत संगम का प्रतीक है। हिंदू संस्कृति में इसे आध्यात्मिक जागरण, पवित्रता और मोक्ष की साधना का पर्व माना जाता है। श्रीनगर जैसे प्राचीन नगरों में, जो स्वयं आदिकालीन तीर्थ परंपराओं से जुड़ा है, यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक विरासत का उत्सव भी बन गया है।
मेले की तैयारियां और विशेषताएं
यह मेला श्रीनगर की पहचान, लोककला और सामूहिक आस्था का उत्सव है। इस बार मेले में स्थानीय उत्पादों और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी, सांस्कृतिक मंचों पर लोकनृत्य व लोकगीत प्रस्तुतियां, विकास प्रदर्शनी के माध्यम से नगर की प्रगति का प्रदर्शन और स्वच्छता, सुरक्षा व पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यह मेला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम है।
पौराणिक शहर में आधुनिक आयोजन
मेला मैदान की सजावट, मंदिरों की रोशनी, स्टॉल व्यवस्था, झूला-चर्खी और सुरक्षा प्रबंधन की तैयारियां तेजी से चल रही हैं। अधिकारियों ने बताया कि इस बार मेला “हरित और स्वच्छ आयोजन” के रूप में प्रस्तुत होगा। यह प्रयास देवभूमि की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करेगा।
आस्था से विकास की ओर
बैकुंठ चतुर्दशी मेला अब केवल पूजा या दर्शन तक सीमित नहीं बल्कि यह लोकसंस्कृति, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण जागरूकता का संगम बन चुका है। जैसे-जैसे मेले की तैयारियां पूर्णता की ओर बढ़ रही हैं, श्रीनगर एक बार फिर धर्म, कला और विकास के अद्भुत उत्सव का साक्षी बनने जा रहा है।
बैकुंठ चतुर्दशी मेला श्रीनगर की आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक है, जहां शिव और विष्णु का संगम, लोक और परंपरा की झंकार, और नवभारत के विकास की ध्वनि एक साथ सुनाई देती है।
यह आयोजन केवल एक मेला नहीं, बल्कि आस्था और आधुनिकता के बीच सेतु का कार्य करता है जैसा कि ऋग्वेद कहता है,
“यत्र धर्मो तत्र विजयः।” जहां धर्म है, वहीं सच्ची विजय है।
