Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण के मुख से जानें, त्याग का महत्व

punjabkesari.in Wednesday, Sep 06, 2023 - 09:36 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: यज्ञ बलिदान या नि:स्वार्थ कार्यों का प्रतीक है। इस संदर्भ में, श्री कृष्ण कहते हैं (4.25), ‘‘कुछ  योगी देवताओं का यज्ञ करते हैं; अन्य लोग बलिदान को ब्रह्म की अग्नि में बलिदान करते हैं।’’

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जागरूकता के बिना जीने वाले के लिए, जीना सिर्फ चीजों को इकट्ठा करना और उन्हें संरक्षित करना है। जीवन का अगला चरण चीजों, विचारों और भावनाओं का त्याग है। अहंकार के बीजों को मन की उपजाऊ भूमि पर बोने के बजाय आग में बलिदान करने जैसा है। तीसरे चरण में बलिदान का ही बलिदान करना है, यह महसूस करते हुए कि वे सभी ब्रह्म हैं।

यह कहा जा सकता है कि ‘मन उन्मुख कर्मयोगी’ कर्म की तलाश में रहता है और उसके लिए यज्ञ करना ही मार्ग है। ‘बुद्धि उन्मुख ज्ञान योगी’ शुद्ध जागरूकता के बारे में है और वह बलिदान को ही बलिदान करता है। बाद वाला दुर्लभ है। हालांकि, दोनों रास्ते एक ही मंजिल की ओर ले जाते हैं।

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श्री कृष्ण इस वास्तविकता को इंद्रियों के संदर्भ में समझाते हैं और कहते हैं कि ‘‘कुछ योगीजन समस्त इंद्रियों को संयम रूपी अग्नियों में हवन किया करते हैं और दूसरे योगी समस्त विषयों को इन्द्रिय रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं (4.26)।’’ संक्षेप में यह बलिदान को बलिदान करने का मार्ग है।

श्री कृष्ण कई बार इंद्रियों और इंद्रियों के बीच के संबंध की व्याख्या करते हैं। प्रमुख व्याख्या यह है कि ‘‘इंद्रियों के द्वंद्व के बारे में हमें जागरूक होना चाहिए।’’

विशिष्ट प्रयास से कर्मयोगी इंद्रियों और विषयों के बीच के सेतु को तोड़ता है जो कि पहले भाग में वर्णित बलिदान है। दूसरा भाग एक ज्ञान योगी के लिए है जो जागरूकता के माध्यम से साक्षी बन कर बलिदान को ही बलिदान देता है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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