स्वामी प्रभुपाद : भक्ति में स्थिर रहने वाला ही पाता है भगवद्धाम का सुनिश्चित मार्ग

punjabkesari.in Monday, Dec 29, 2025 - 06:35 PM (IST)

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नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन॥8.27॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : हे अर्जुन! यद्यपि भक्तगण इन दोनों मार्गों को जानते हैं, किन्तु वे मोहग्रस्त नहीं होते। अत: तुम भक्ति में सदैव स्थिर रहो। कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे हैं कि उसे इस जगत से आत्मा के प्रयाण करने के विभिन्न मार्गों को सुनकर विचलित नहीं होना चाहिए। भगवद्भक्त को इसकी चिंता नहीं होनी चाहिए कि वह स्वेच्छा से मरेगा या दैववशात्।

Swami Prabhupada

भक्त को कृष्णभावनामृत में दृढ़तापूर्वक स्थित रह कर हरे कृष्ण का जप करना चाहिए। उसे यह जान लेना चाहिए कि इन दोनों मार्गों में से किसी की भी चिंता करना कष्टदायक है।

कृष्णभावनामृत में लीन होने की सर्वोत्तम विधि यही है कि भगवान की सेवा में सदैव रत रहा जाए। इससे भगवद्धाम का मार्ग स्वत: सुगम, सुनिश्चित तथा सीधा होगा।

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इस श्लोक का योगयुक्त शब्द विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। जो योग में स्थिर है, वह अपनी सभी गतिविधियों में निरंतर कृष्णभावनामृत में रत रहता है। श्री रूप गोस्वामी का उपदेश है ‘अनासक्तस्य विषयान् यथार्हमुपयुञ्जतः:’ अर्थात मनुष्य को सांसारिक कार्यों से अनासक्त रहकर कृष्णभावनामृत में सब कुछ करना चाहिए।

इस विधि से, जिसे युक्त वैराग्य कहते हैं, मनुष्य सिद्धि प्राप्त करता है। अतएव भक्त कभी इन वर्णनों से विचलित नहीं होता क्योंकि वह जानता रहता है कि भक्ति के कारण भगवद्धाम तक का उसका प्रयाण सुनिश्चित है।  

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Content Editor

Prachi Sharma

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