Srimad Bhagavad Gita: ‘बंधन’ से मुक्ति के लिए अपनाएं ये मार्ग

punjabkesari.in Saturday, Feb 25, 2023 - 10:12 AM (IST)

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स्वामी प्रभुपाद- श्रीमद्भगवद्गीता यथा रूप साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
 
त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रय:। कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति स:॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : अपने कर्मफलों की सारी आसक्ति को त्याग कर सदैव संतुष्ट तथा स्वतंत्र रहकर वह सभी प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहकर भी कोई सकाम कर्म नहीं करता।

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कर्मों के बंधन से इस प्रकार की मुक्ति तभी संभव है, जब मनुष्य कृष्णभावना भावित होकर हर कार्य कृष्ण के लिए करें। कृष्णभावना-भावित व्यक्ति भगवान के शुद्ध प्रेमवश ही कर्म करता है, फलस्वरूप उसे कर्मफलों के प्रति कोई आकर्षण नहीं रहता।

यहां तक कि उसे अपने शरीर निर्वाह के प्रति भी कोई आकर्षण नहीं रहता, क्योंकि वह पूर्णतया कृष्ण पर आश्रित रहता है। वह न तो किसी वस्तु को प्राप्त करना चाहता है और न अपनी वस्तुओं की रक्षा करना चाहता है। वह अपने पूर्ण सामर्थ्य से अपना कर्तव्य करता है और कृष्ण पर सब कुछ छोड़ देता है। ऐसा अनासक्त व्यक्त शुभ-अशुभ कर्मफलों से मुक्त रहता है, मानो वह कुछ भी नहीं कर रहा हो।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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