Srimad Bhagavad Gita: भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ‘भ्रम’ से बचो, जानें कैसे

punjabkesari.in Friday, Nov 18, 2022 - 09:14 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: जीवन के सामान्य क्रम में जब हम एक ही विषय पर परस्पर विरोधी राय सुनते हैं, तो हम भ्रमित हो जाते हैं- चाहे वह समाचार, दर्शन, दूसरों के अनुभव और विश्वास हों। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हम योग तभी प्राप्त करेंगे जब विभिन्न मतों को सुनने के बावजूद बुद्धि निश्चल और समाधि में स्थिर रहेगी।

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इसके लिए सबसे अच्छा रूपक एक पेड़ है जिसका ऊपरी भाग दिखाई देता है और एक अदृश्य निचला भाग जड़ से युक्त होता है। हवाओं की ताकत के आधार पर ऊपरी भाग अलग-अलग अनुपात तक परेशान हो जाता है, दूसरी ओर जड़ इनसे प्रभावित नहीं होती। 
ऊपरी भाग बाह्य शक्तियों से निपटता रहता है, आंतरिक भाग समाधि में निश्चल रहता है और स्थिरता के साथ-साथ पोषण प्रदान करने का अपना कर्तव्य करता रहता है। 

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यह पेड़ के लिए योग के समान ही है, जहां बाहरी भाग प्रभावित होता है और आंतरिक भाग निश्चल रहता है। जब हम अज्ञानी होते हैं तो हमारी बुद्धि डगमगाती रहती है और बाहरी उत्तेजनाओं के अनुसार कम्पित होती है। ये कम्पन बाहरी दुनिया को हमारे क्रोध तथा बिना सोचे-समझे की जाने वाली प्रतिक्रियाओं के रूप में दिखाई देते हैं। ये हमारे जीवन के साथ ही परिवार के सदस्यों और कार्यस्थल को भी दयनीय बना देते हैं। 

समय के साथ कुछ लोग अगले स्तर पर पहुंच जाते हैं क्योंकि वे जीवन के अनुभवों का सामना करते हैं और इन कम्पनों को दबाने के लिए खुद को प्रशिक्षित करते हैं ताकि मौखेटे वाला चेहरा पेश किया जा सके। 

इस अवस्था में, कम्पन अंदर मौजूद रहते हैं, लेकिन हम एक सुखद चेहरा पेश करना सीख जाते हैं। हालांकि, ऐसा लंबे समय तक नहीं रह सकता। 

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श्री कृष्ण ‘समाधि में निश्चलता’ की जिस अंतिम स्थिति की बात करते हैं वह इन कम्पनों को दूर करना ही है। दूसरे शब्दों में, यह एक अहसास है कि बाहरी कम्पन क्षणिक हैं और हमें अंतरात्मा के साथ अपनी पहचान स्थापित करनी है जो समाधि में निश्चल है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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