आप भी श्रीकृष्ण जैसा साम्राज्य चाहते हैं तो ऐसे चलाएं अपना कारोबार

punjabkesari.in Friday, Aug 23, 2019 - 01:57 PM (IST)

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श्रीमद् भगवद् गीता मार्गदर्शन प्रदान करने का एक अद्भुत ग्रंथ है। चाहे आप आध्यात्मिक बोध प्राप्त करने के इच्छुक हों अथवा एक नैतिक दुविधा के दंश से बोझिल व्यक्ति हों अथवा सफलता के लिए कार्यरत एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के निदेशक हों, गीता आपको अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एक प्रभावी दिशा-निर्देशन प्रदान कर सकती है। भगवान श्री कृष्ण किसी भी अधिकार सम्पन्न व्यक्ति को अपनी कम्पनी का सफलतापूर्वक प्रबंध करने के लिए कुछ बहुत महत्वपूर्ण सुझाव देते हैं। एक अधिकार सम्पन्न व्यक्ति में निम्र वर्णित गुणों का होना बेहद आवश्यक है।

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ज्ञानम् : इसका तात्पर्य सम्पूर्ण संस्था के पूर्ण दर्शन, उसके लक्ष्य व उद्देश्य, देश में उसके स्थान एवं अन्य देशों के साथ उसके संबंध में सन्निहित है। एक संस्था में कई विभाग हो सकते हैं, लेकिन संस्था के प्रमुख को उन सभी के बीच एकता एवं समरसता को सुनिश्चित करना चाहिए। अंश एवं समष्टि के बीच के संबंध को भली-भांति समझना आवश्यक है।

बुद्धि : अर्थात विवेक एवं समझ-बूझ। संस्था प्रमुख को अपने दृष्टिकोण को अपने सभी कर्मचारियों में उनकी स्वयं की समझ के अनुसार एवं कार्य क्षेत्र के स्तर पर बतलाने में सक्षम होना चाहिए। यही योग्यता बुद्धि कहलाती है। हालांकि, दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदलने में अनेक समस्याएं, कठिनाइयां और अड़चनें आती हैं, जो वस्तुनिष्ठ अथवा मानव जनित हो सकती हैं।

ऐसे क्षणों में बुद्धि की आवश्यकता अनिवार्य हो जाती है- यानी ऐसी समस्याओं के अंदर के कारणों को समझने एवं उनका प्रभावी समाधान करने की योग्यता। बुद्धि की आवश्यकता दो प्रकार के लोगों को वश में करने के लिए होती है- ऐसे लोग जो कठिनाई में होते हैं और जो लोग स्वभाव से कठिन होते हैं। इस वशीकरण को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए प्रशासकीय व्यक्ति को मानव स्वभाव एवं मनोवृत्ति का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। 

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दृष्टि : यानी धैर्य अथवा सहनशीलता। अपने लक्ष्य पर निरंतर आगे बढऩे की योग्यता दृष्टि कहलाती है। यह एक सर्व प्रचलित तथ्य है कि किसी भी लक्ष्य को सरलता एवं शीघ्रता से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। हमें ऐसी अनेक अड़चनों का सामना करना पड़ता है, जो हमारे धैर्य की परीक्षा लेती हैं। इसी प्रकार, जब सभी कर्मचारियों को दृष्टिकोण नजर नहीं आता, तब वे एक सक्षम नेता को भी कुंठित करने के लिए विचित्र एवं अप्रत्याशित हरकतें करने लगते हैं। ऐसे सभी अवसरों पर नेता को ऐसे लोगों को वशीभूत करने और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अत्यंत धैर्यशील होना चाहिए। इसी योग्यता को दृष्टि कहा जाता है।

एक सफल संगठनकर्ता के लिए ये मूलभूत योग्यताएं हैं। इसका परिणाम ‘सुखम’ है- यानी आनंद, जिसे सर्वांगीण समृद्धि के कारण अनुभव किया गया है।

एक और गौरतलब महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि एक परियोजना की सफलता विभिन्न कार्यों के लिए सही व्यक्ति की नियुक्ति पर निर्भर करती है। कार्यों एवं प्रकार्यों में विविधता होनी चाहिए लेकिन उद्देश्य में एकता और इसकी प्राप्ति के लिए पूर्ण समर्पण का भाव होना चाहिए। लक्ष्य जितना ही महान होगा और प्रेरणा जितनी ही ओजस्वी होगी, सफलता उतनी ही अद्भुत और दिव्य होगी। युद्ध के समय आने वाले संकट से विचलित अर्जुन को भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया और कर्तव्य मार्ग का बोध कराया, जिससे पांडव विजय पथ पर आगे बढ़े। 

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भगवान कृष्ण द्वारा संकट प्रबंधन का यह उदाहरण प्रत्यक्ष रूप से इस तथ्य को प्रमाणित करता है। जब आप उत्पाद को देखें, तो उसके सृजनकर्ता को न भूलें। जब आप मेरे प्रति कृतज्ञता की अनुभूति करें, तब अपने ‘परम गुरु’ के प्रति अपनी कृतज्ञता को अवश्य याद रखें। 
 


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Niyati Bhandari

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