Muni Shri Tarun Sagar: घरवाली को मनाते चलो और किस्मत को बनाते चलो
punjabkesari.in Monday, Apr 29, 2024 - 03:28 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
बहस की नस अहंकार
बहस मत कीजिए, बहस से जीवन तहस-नहस होता है। बहस अक्सर खोखली होती है, बहस करने से सिर्फ समय नष्ट होता है और हासिल कुछ नहीं होता। किसी बहस में जीत जाने से अगर आपको लगता है कि आपने जंग जीत ली, तो आप गलत हैं। बहस की बजाय आपको अपने काम से खुद को साबित करना चाहिए। जब आपका काम बोलेगा तो बहस की जरूरत ही नहीं होगी। बहस की नस अहंकार है। अहंकार मर जाए तो बहस सरस हो जाया करती है।
किस्मत बनाते चलो
घरवाली और किस्मत कब रूठ जाए, पता नहीं। अत: घरवाली को मनाते चलो और किस्मत को बनाते चलो। किस्मत किसी कारखाने में नहीं बनती। किस्मत बनती है किए हुए शुभाशुभ कर्मों से। खोटे कर्मों से किस्मत भी ‘खोटी’ ही बनेगी और खरे (शुभ) कर्मों से किस्मत सफलता की ‘चोटी’ चढ़ेगी।
याद रखना : चोट खाकर ही आदमी चोटी पर पहुंचता है। मतलब ‘ठोकर’ सह कर ही आदमी ठाकुर बनता है।
दुर्योधन और दुशासन
महाभारत में हजारों पात्र हुए। पर उनमें से दो पात्र आज भी जिंदा हैं-दुर्योधन और दुशासन। ये दोनों पात्र हमारे आसपास ही हैं या यूं कहें कि हम ही हैं। अनीति का धन ही दुर्योधन है और भ्रष्टाचार का शासन ही दुशासन है।
ध्यान रखना: अन्याय और अनीति से कमाया हुआ धन खाया तो जा सकता है लेकिन पचाया नहीं जा सकता। अनीति का धन घर में प्रवेश करता है तो दो चीजें अदृश्य हो जाती हैं : नींद और भूख।
संसार में रहने की कला
मावे का व्यापारी यदि मावे में आटा मिलाए और पकड़ा जाए तो जेल जाए। व्यापारी मावे में आटा मिलाए तो दोष है और हलवाई मावे में आटा मिलाए तो संतोष है। हलवाई कलाकार है। संसार में रहने की कला आनी चाहिए। अगर हमें ढंग से रहने, ढंग से कहने और वक्त पर सहने की कला आ जाए तो परिवार में बल्ले-बल्ले हो जाए। आदमी दिमाग की गर्मी हटाए, जुबान में नरमी लाए तो परिवार में स्वर्ग उतर आए।