... तो इस प्रकार भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ

punjabkesari.in Wednesday, Nov 02, 2022 - 09:02 AM (IST)

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Importance of soil in Hindu scriptures: आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे प्राचीन रीति रिवाज पीछे छूट रहे हैं, पर मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है। दिवाली पर बड़ी मात्रा में दीपक खरीदे जाते हैं। मिट्टी के कलाकार बड़े उत्साह के साथ दीए तैयार करते हैं। भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में मिट्टी के दीयों की मांग हर साल बढ़ जाती है। मिट्टी का छोटा सा दीया दुनिया को रोशन करने की क्षमता रखता है।

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Clay pots made famous in every era हर काल में प्रसिद्ध हुए मिट्टी से बने मृदभांड
ग्रामीण भारत में आज भी मिट्टी के बर्तनों की परंपरा है। दुनिया के अन्य देश की तुलना में, भारत में सबसे अधिक कुम्हार रहते हैं, जो मिट्टी का बखूबी इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि हमारे आराध्य देवताओं की मूर्तियां भी मिट्टी की बनी रहती हैं। मिट्टी को धरती मां कहा गया है, इसलिए बिना पकी हुई मिट्टी से बनाई गई छवियों को देवताओं को बनाने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

कुम्हारों के बनाए मिट्टी के बर्तन हर युग में मौजूद रहे हैं। फिर चाहे बात हड़प्पा काल में चित्रित मृदभांड की हो या लोथल से मिले मृदभांड में प्यासे कव्वे की कहानी का चित्र। महाजन पदकाल के मृदभांड आज भी लोकप्रिय हैं। माना जाता है कि ग्लेज्ड पॉटरी की शुरुआत 12वीं सदी से है और राजस्थान में इसका सबसे पहले प्रयोग हुआ। उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी और राजघाट, मथुरा, हस्तिनापुर, अयोध्या, श्रावस्ती, वाराणसी और बिहार में वैशाली, राजगीर, पाटलिपुत्र और चंपा, मध्यप्रदेश में उज्जैन व विदिशा में खुदाई के दौरान मिट्टी के बर्तनों के प्रमाण मिले हैं। इससे जाहिर होता है, कि मिट्टी से हमारा सदियों पुराना और पीढ़ियों का नाता रहा है।

Mythological legend related to the potter's craft कुम्हार के शिल्प से जुड़ी पौराणिक किंवदंती
एक कहानी के अनुसार, विनाश के देवता भगवान शिव, हिमालय की पुत्री पार्वती से शादी करना चाहते थे। लेकिन उनके पास कोई कुम्भ या मिट्टी का घड़ा नहीं था, इसके बिना विवाह नहीं हो सकता था। तब उन्हें एक ब्राह्मण व्यक्ति, कुललुक ने अपनी सेवा प्रदान करने की पेशकश की। लेकिन, बर्तनों के निर्माण के लिए उन्हें औजारों की आवश्यकता थी। इसलिए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र कुम्हार के पहिए के रूप में दिया। शिव ने पहिया घुमाने के लिए अपना भांग घोटने का मूसल दिया।

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साथ ही उन्होंने पानी पोंछने के लिए अपना लंगोट और बर्तन को काटने के लिए अपना जनेऊ या पवित्र धागा भी दिया। सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने अपने आदि-कुर्मा (कछुए) को एक खुरचनी के रूप में उपयोग करने के लिए दिया। माता पार्वती ने अपने शरीर से मिट्टी दी। इन उपकरणों से कुललुक ने बर्तन तैयार किए और इस प्रकार भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ।

Man's relationship with soil after birth मिट्टी से मानव का जन्म-जन्मांतर का नाता
प्राचीन काल से ही हम प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं। मिट्टी से हमारा जन्म-जन्मांतर का नाता रहा है। इसकी झलक आज भी प्राचीन भारतीय संस्कृतियों एवं सभ्यताओं में धातु, मिट्टी के बर्तनों के अवशेषों में देखने को मिलती है। मिट्टी हमारे परिवेश का हिस्सा है लेकिन पर्यावरण की प्रतिकूलताओं का इस पर गहरा असर पड़ा है। वर्तमान दौर में मिट्टी का महत्व कम नहीं हुआ है। आज भी पूजा की सामग्री से लेकर बच्चों के खिलौनों के निर्माण में मिट्टी का उपयोग बखूबी हो रहा है।

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भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला हो या माता पार्वती के जन्म की कहानी, मिट्टी का हर युग में वर्णन मिलता है। यही वजह है कि धार्मिक अनुष्ठानों में इसका उपयोग किया जाता है। कहते है दीप प्रज्वलन की प्रक्रिया तीनों लोकों और तीनों कालों का भी प्रतिनिधित्व करती है। इसमें मिट्टी का दीया हमें पृथ्वी लोक व वर्तमान को दिखाता है जबकि उसमें जलने वाला तेल और घी भूतकाल व पाताल लोक का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं जब इसमें रुई की बाती डालकर प्रज्वलित किया जाता है तो यह लौ आकाश, स्वर्ग लोक व भविष्य काल काल का प्रतिनिधित्व करती है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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